उपवाक्य पदों का ऐसा समूह है, जिसका अपना अर्थ होता है, जो एक वाक्य का भाग होता है और जिसका उद्देश्य और विधेय होता है।
वाक्य और उपवाक्य
सामान्यतया वाक्य सार्थक शब्द का समूह है, जिसमें कर्ता और क्रिया दोनों होते हैं। जैसे—
- ‘मोहन, सोहन, सीता, गीता, बाग, घर, मैदान।’
यह एक शब्द-समूह है, परन्तु क्रियापद एक भी नहीं है। अतः इसे हम वाक्य नहीं कह सकते। इसी तरह, ‘खाता है, रोता है, पढ़ता है, नाचता है’ आदि क्रियापदों के समूह को भी वाक्य नहीं कह सकते। वाक्य उसी शब्दसमूह को कहेंगे, जब उसमें क्रिया (विधेय) और कर्त्ता (उद्देश्य) दोनों होंगे; जैसे—
- मनमोहन (कर्ता) खेलता है। (क्रिया)
- सोहन (कर्ता) पढ़ता है। (क्रिया)
पहले वाक्य में ‘मनमोहन’ कर्ता के रूप में है और ‘खेलता है’ क्रिया। दूसरे वाक्य में ‘सोहन’ कर्ता के रूप में है और ‘पढ़ता है’ क्रिया। इन वाक्यों से पूर्ण अर्थबोध होता है। अतएव, ये एक वाक्य हैं।
कभी-कभी हम देखते हैं कि एक वाक्य में अनेक वाक्य होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि उसमें एक वाक्य तो प्रधान वाक्य होता है और शेष उपवाक्य। उदाहरणार्थ—
- मनमोहन ने कहा, कि मैं खेलूँगा।
इस वाक्य में ‘मनमोहन ने कहा’ प्रधान वाक्य है और ‘कि मैं खेलूँगा’ उपवाक्य। इस प्रकार हम देखते हैं कि उपवाक्य भी दो या दो से अधिक पदों का समूह है, जो किसी वाक्य का एक अंश है और उसमें उद्देश्य और विधेय भी हैं।
अतः “उपवाक्य ऐसा पदसमूह है, जिसका अपना अर्थ हो, जो एक वाक्य का भाग हो और जिसमें उद्देश्य और विधेय हों।”
उपवाक्यों के आरम्भ में सामान्यतः कि, जिससे, ताकि, जो, जितना, ज्यों-ज्यों, चूँकि, क्योंकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ इत्यादि होते हैं।
उपवाक्य के भेद
उपवाक्यों को अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं—
- प्रधान उपवाक्य
- आश्रित उपवाक्य : इसके तीन भेद हैं—
- संज्ञा-उपवाक्य
- विशेषण-उपवाक्य
- क्रियाविशेषण-उपवाक्य
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प्रधान उपवाक्य
किसी वाक्य का ऐसा उपवाक्य, जो दूसरे के आश्रित नहीं होता, प्रधान उपवाक्य कहलाता है। संज्ञा उपवाक्य प्रधान उपवाक्य का ही कर्म अथवा पूरक होता है, विशेषण उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की ही किसी संज्ञा की विशेषता बतलाता है तथा क्रियाविशेषण उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की क्रिया का ही स्थान, काल, रीति, कारण आदि बतलाता है; जैसे—
- मेरे इस परिश्रम का उद्देश्य है, कि परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करूँ।
- उस पुस्तक का नाम क्या है, जिसकी तुम प्रशंसा कर रहे थे।
- जब भी उस भिखारी को देखता हूँ, मेरा मन करुणा से भर जाता है।
आश्रित उपवाक्य
जो उपवाक्य दूसरे उपवाक्य के आश्रित हो, अर्थात् प्रधान न होकर गौण हो, उसे आश्रित उपवाक्य कहते हैं; जैसे—
- उस व्यक्ति को कोई नहीं पसंद करता, जो झूठ बोलता है।
उपर्युक्त वाक्य में दो उपवाक्य हैं; ‘उस व्यक्ति को कोई नहीं पसंद करता’ तथा ‘जो झूठ बोलता है।’ इसमें ‘जो झूठ बोलता है’ उपवाक्य आश्रित उपवाक्य है, क्योंकि यह दूसरे उपवाक्य के आश्रित है। यह वाक्य दूसरे उपवाक्य की संज्ञा, ‘व्यक्ति’ की विशेषता बता रहा है।
आश्रित उपवाक्य तीन के तीन भेद होते है; एक, संज्ञा उपवाक्य; दो, विशेषण उपवाक्य और तीसरा, क्रियाविशेषण उपवाक्य। इसका विवरण अधोलिखित है—
संज्ञा-उपवाक्य
जो आश्रित उपवाक्य संज्ञा की तरह व्यवहृत हों, उसे ‘संज्ञा-उपवाक्य’ (Noun Clause) कहते हैं। यह कर्म (सकर्मक क्रिया) या पूरक (अकर्मक क्रिया) का काम करता है, जैसा संज्ञा करती है। ‘संज्ञा-उपवाक्य’ की पहचान यह है कि इस उपवाक्य के पूर्व ‘कि’ होता है या संज्ञा उपवाक्य प्रायः ‘कि’ से जुड़ा होता है।
उदाहरण—
- ‘राम ने कहा कि मैं पढूँगा।’ इस वाक्य में ‘मैं पढ़ूगा’ संज्ञा-उपवाक्य है।
- ‘मैं नहीं जानता कि वह कहाँ है।’ इस वाक्य में ‘वह कहाँ है’ संज्ञा-उपवाक्य है।
कुछ और उदाहरण लेते हैं—
- ‘संतोष कब चाहता है कि वह डाकू बने।’ इसमें ‘चाहना’ सकर्मक क्रिया है, जिसका कर्म है ‘वह डाकू बने’। यह ‘वह डाकू बने’ ‘डाकू बनना’ के स्थान पर आया है : संतोष ‘डाकू बनना’ कब चाहता है?
- ‘तुम्हें यह सुनकर खुशी होगी कि मुझे पुरस्कार मिला है।’
- ‘मेरे इस परिश्रम का उद्देश्य है कि परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करूँ।’
उपर्युक्त वाक्यों में स्थूल टंकित अंश संज्ञा उपवाक्य हैं।
विशेषण-उपवाक्य
जो आश्रित उपवाक्य विशेषण की तरह व्यवहृत हो, उसे ‘विशेषण-उपवाक्य’ (Adjective Clause) कहते हैं। विशेषण उपवाक्य सम्बन्धवाचक विशेषण ‘जो’ के ‘ज’ अंशयुक्त शब्दों (जो, जिसे, जैसा, जितना आदि) के द्वारा प्रधान उपवाक्य से जुड़ा होता है तथा उसका विशेष्य प्रधान उपवाक्य में होता है। अर्थात् इसमें ‘जो’, ‘जैसा’, ‘जितना’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे—
- ‘वह आदमी, जो कल आया था, आज भी आया है।’ इस वाक्य में ‘जो कल आया था’ विशेषण-उपवाक्य है।
कुछ और उदाहरण लेते हैं—
- वह विद्यार्थी स्कूल छोड़कर चला गया, जो खेल में बहुत अच्छा था।
- उस पुस्तक का नाम क्या है, जिसकी तुम प्रशंसा कर रहे थे।
- जो स्वयं निर्धन है, वह दूसरों की सहायता क्या करेगा?
उपर्युक्त वाक्यों में स्थूल टंकित अंश (उपवाक्य) क्रमशः ‘विद्यार्थी’, ‘पुस्तक’ तथा ‘वह’ की विशेषता बता रहे हैं, अतः विशेषण उपवाक्य हैं।
क्रियाविशेषण-उपवाक्य
जो उपवाक्य क्रियाविशेषण की तरह व्यवहृत हो, उसे ‘क्रियाविशेषण-उपवाक्य’ (Adverb Clause) कहते हैं। अर्थात् ‘क्रियाविशेषण उपवाक्य’ क्रियाविशेषण के स्थान पर आते हैं। इसमें प्रायः ‘जब’, ‘जहाँ’, ‘जिधर’, ‘ज्यों’, ‘यद्यपि’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है। इसके द्वारा समय, स्थान, कारण, उद्देश्य, फल, अवस्था, समानता, मात्रा इत्यादि का बोध होता है। जैसे—
- ‘जब पानी बरसता है, तब मेढक बोलते हैं।’ इस वाक्य में ‘जब पानी बरसता है’ क्रियाविशेषण-उपवाक्य है।
- ‘जब घटा छाती है, तब मोर नाचते हैं।’ इस वाक्य में ‘तब मोर नाचते हैं’ क्रियाविशेषण-उपवाक्य है।
कुछ और उदाहरण लेते हैं—
- ‘जब भी उस भिखारी को देखता हूँ, मेरा मन करुणा से भर जाता है।’
- ‘मोहन ऐसे चल रहा है, जैसे कोई पागल चल रहा हो।‘
- ‘जहाँ भी जाना चाहो, चले चाओ।’
- ‘तुम्हारा कहना वह नहीं मानेगा, क्योंकि उसे उतनी अक्ल नहीं है।‘
उपर्युक्त वाक्यों में स्थूल टंकित अंश (उपवाक्य) क्रियाविशेषण-उपवाक्य हैं।
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