अन्विति या अन्वय (मेल)

अन्वय (पुल्लिंग) शब्द है, जिसका स्त्रीलिंग शब्द अन्विति होता है। अन्वय का अर्थ है ‘पीछे जाना’, ‘अनुरूप होना’ अथवा ‘समानता’। व्याकरण में इसका अर्थ है ‘व्याकरणिक एकरूपता’ अर्थात् वाक्य में हो या अधिक शब्दों की आपसी व्याकरणिक एकरूपता को अन्वय कहते हैं।

अर्थात् वाक्य में पदों की परस्पर संगति को ‘अन्विति’ कहते हैं। इसमें वाक्य के किसी एक पद (संज्ञा, सर्वनाम आदि) के लिंग, वचन या पुरुष के अनुसार दूसरे पद विशेषण और क्रिया में रूप-परिवर्तन होता है। ‘अन्वय’ में लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभिन्न पदों (शब्दों) का एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया का, कर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता है; जैसे—

  1. सोहन बरफ़ी खा रहा है।
  2. शिखा आम खा रही है।
  3. रोहन ने बर्फ़ी खायी।
  4. साक्षी ने आम खाया।

उपर्युक्त वाक्यों में अन्विति का विश्लेषण अधोलिखित है—

  • वाक्य (1) में ‘सोहन’ कर्ता पुल्लिंग एकवचन के अनुसार क्रियापद ‘खा रहा है’ पुल्लिंग और एकवचन है।
  • वाक्य (2) में ‘शिखा’ कर्ता स्त्रीलिंग एकवचन है इसलिए क्रियापद ‘खा रही है’ भी उसी के अनुसार परिवर्तित हो गया है।
  • वाक्य (3) में ‘बर्फ़ी’ कर्म स्त्रीलिंग एक वचन है अतः क्रियापद ‘खायी’ स्त्रीलिंग एकवचन है।
  • वाक्य (4) में ‘आम’ कर्म पुल्लिंग एकवचन है, उसी के अनुसार ‘खाया’ क्रियापद पुल्लिंग एकवचन में परिवर्तित हो गया है।

कुछ और उदाहरण लेते हैं—

  • शिखा घर गयी। (दोनों स्त्रीलिंग एकवचन)
  • लड़का घर गया। (दोनों पुल्लिंग एकवचन)
  • वह नेता है। (दोनों अन्य पुरुष एकवचन)
  • सिपाही काले घोड़े पर बैठा है। (दोनों विकृत रूप)

अन्विति के प्रकार

हिंदी में अन्विति को हम निम्न शीर्षकों में बाँटकर आसानी से समझ सकते हैं—

  • संज्ञा-क्रिया अन्विति
  • विशेषण-विशेष्य अन्विति
  • संज्ञा-सर्वनाम अन्विति

संज्ञा-क्रिया अन्विति

इसके तीन मुख्य नियम हैं—

कर्ता-क्रिया अन्विति

यदि कर्ता के साथ कारक चिह्न न लगा हो तो क्रिया कर्ता के अनुसार होती है अर्थात् परसर्ग रहित कर्ता के साथ क्रिया की अन्विति कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होती है। यह उल्लेखनीय कि क्रम का प्रभाव क्रिया पर ऐसी स्थिति में नहीं पड़ता है; यथा—

  • लता रोज़ देर से सोती है।
  • लड़की खाना खा रही है।
  • रीता घर जाती है।
  • ये लड़कियाँ रोज़ देर से सोती हैं।
  • लड़का रोटी खा रहा है।
  • करीम किताब पढ़ता है।
  • रोहन मिठाई खाता है।
  • रमेश खूब काम करता है।

यदि वाक्य में एक ही (समान) लिंग, वचन और पुरुष के अनेक परसर्ग रहित (विभक्तिरहित) कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले ‘और’ या ‘तथा’ या ‘एवं’ संयोजक आया हो, तो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी; जैसे—

  • ऋषभ और रमेश सोते हैं।
  • आशा, उषा और शिखा स्कूल जाती हैं।
  • गणेश और सुरेश खूब काम करते हैं।
  • दिनेश और रमेश बहुत काम करते हैं।
  • राम, दिनेश और शुशील विदेश जा रहे हैं।
  • शीला, अलका तथा करुणा कल आएँगी।

परन्तु यदि ऐसे कई शब्द मिलकर एक ही वस्तु का बोध करा रहे हों तो क्रिया एकवचन में होगी; जैसे—

  • यह घोड़ा-गाड़ी उसकी है।

यदि वाक्य में दो भिन्न लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्व-समास के अनुसार प्रयुक्त हों, तो उनकी क्रिया पुंलिंग बहुवचन में होगी; जैसे—

  • नर-नारी गये।
  • राजा-रानी आये।
  • स्त्री-पुरुष मिले।
  • माता-पिता बैठे हैं।

यदि वाक्य में दो भिन्न-भिन्न विभक्ति रहित या परसर्ग रहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच ‘और’ संयोजक आये, तो उनकी क्रिया पुल्लिंग और बहुवचन में होगी; जैसे—

  • राधा और कृष्ण रास रचाते हैं।
  • बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं।
  • वर और वधू गये।
  • माताजी और पिताजी आएँगे।

यदि वाक्य में अनेक कर्ता हों जिनके लिंग भिन्न (पुल्लिंग व स्त्रीलिंग) हों और वचन भी अलग (एकवचन व बहुवचन) हों। तो ऐसे वाक्य में क्रिया बहुवचन में होगी और उनका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा; जैसे—

  • एक बालक, दो वृद्ध और अनेक लड़कियाँ आती हैं।
  • एक लड़‌की और कई लड़के जा रहे हैं।
  • एक लड़का और कई लड़कियाँ जा रही हैं।
  • एक बकरी, दो गायें और बहुत-से वृषभ मैदान में चरते हैं।

यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय ‘या’ अथवा ‘वा’ रहे, तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होगी; जैसे—

  • घनश्याम की पाँच दरियाँ वा एक कम्बल बिकेगा।
  • हरि का एक कम्बल या पाँच दरियाँ बिकेंगी।
  • पार्थ का बैल या अनिल की गायें बिकेंगी।

यदि वाक्य में एक साथ तीनों पुरुष हो तो उनका क्रम क्या होगा? वाक्य में पहले मध्यमपुरुष (तू, तुम, आप) प्रयुक्त होता है, उसके बाद अन्यपुरुष (यह, ये, वे, वह) और अन्त में उत्तमपुरुष (मैं, हम); जैसे—

  • तुम, वह और मैं जाऊँगा।

परन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार यदि वाक्य में एक साथ तीनों पुरुष हो तो वाक्य में पहले मध्यमपुरुष और अन्यपुरुष के क्रम का कठोरता से पालन अनिवार्य नहीं है बस यह आवश्यक है कि अन्त में उत्तमपुरुष आये; जैसे—

  • तुम, वह और मैं जाऊँगा।
  • वह, आप और मैं चलूँगा।

यदि उत्तमपुरुष (वक्ता), मध्यमपुरुष (श्रोता) और अन्यपुरुष (जिसके संबंध में बात कही जाय) एक वाक्य में कर्ता बनकर आयें तो क्रिया उत्तमपुरुष के अनुसार होगी; जैसे—

  • वह और हम जायेंगे।
  • हरि, तुम और हम सिनेमा देखने चलेंगे।
  • वह, आप और मैं चलूँगा।

कर्ता के प्रति यदि आदर सूचित करना है, तो ‘एकवचन’ कर्ता के साथ ‘बहुवचन’ की क्रिया आती है; जैसे—

  • भगवान बुद्ध महान् व्यक्ति थे।
  • गोस्वामी तुलसीदास सच्चे अर्थों में लोकमंगल के कवि थे।

अक्षत, आँसू, ओठ, दर्शन, दाम, प्राण, समाचार, हस्ताक्षर, होश आदि के कर्ता रूप में आने पर क्रिया बहुवचन में होती है; जैसे—

  • कल क्या आपके दर्शन होंगे?
  • कृपया अपने हस्ताक्षर कर दीजिए।
  • बहुत दिनों बाद आपके दर्शन हुए हैं।
  • गिरते ही उसके प्राण निकल गये।
  • शेर को देखते ही मेरे तो प्राण ही सूख गये।

जनता, वर्षा, वायु, पानी आदि शब्द के कर्ता रूप में आने पर क्रिया एकवचन में होती है; जैसे—

  • देश की जनता महँगाई से परेशान है।
  • कितनी अच्छी वर्षा हो रही है !

यदि कर्ता के लिंग का पता न हो तो क्रिया पुल्लिग होती है; जैसे—

  • अभी-अभी कौन बाहर गया है?

कर्म-क्रिया अन्विति

यदि कर्ता परसर्ग सहित या विभक्ति सहित हो और कर्म या पूरक परसर्ग रहित या विभक्ति रहित हो तो क्रिया की अन्विति कर्म या पूरक के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होगी। अर्थात् यदि वाक्य में कर्ता विभक्ति/परसर्ग से युक्त हो, कर्म की विभक्ति/परसर्ग न हो और पूरक की विभक्ति/परसर्ग न हो, तो उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होगी; जैसे—

  • आशा ने पुस्तक पढ़ी।
  • हमने लड़ाई जीती।
  • उसने गाली दी।
  • मैंने रुपये दिये।
  • तुमने क्षमा माँगी।
  • सोहन ने जलेबी खायी।
  • रोहन ने चार केले खाये।
  • शिखा ने आम खाया।

अर्थात् कर्त्ता के साथ ने, को, से आदि कारक-चिह्न लगे हों तो कर्ता और क्रिया का अन्वय नहीं होता; जैसे—

  • राम ने रोटी खायी।
  • लड़कों ने वह प्रदर्शनी देखी।
  • मोहन को जाना है।
  • सीता को जाना है।
  • लड़कों को जाना है।
  • लड़कियों को जाना है।
  • राम से चला नहीं जाता।
  • सीता से चला नहीं जाता।
  • लड़कों से चला नहीं जाता ।

शून्य अन्विति

यदि कर्ता और कर्म दोनों परसर्ग/विभक्ति सहित हों तो क्रिया की अन्विति इनमें से किसी के साथ नहीं होगी। इस स्थिति में क्रिया सदैव एकवचन और पुल्लिंग में होती है; यथा—

  • राम ने रावण को मारा।
  • माँ ने नौकरानी को डाँटा।
  • लड़कियों ने कुत्ते को भगाया।
  • पिताजी ने सभी भाइयों को बुलाया।
  • मैंने श्याम को बुलाया।
  • तुमने उसे देखा।
  • लड़कियों ने लड़कों को ध्यान से देखा।
  • लड़कों ने लड़कियों को ध्यान से देखा।
  • छात्र ने छात्रा को देखा।
  • छात्रा ने छात्र को देखा।
  • छात्रों ने छात्रा को देखा।
  • छात्राओं ने छात्रों को देखा।
  • मैंने (पुरुष) उसे (स्त्री) देखा।
  • उसने (स्त्री) मुझे (पुरुष) देखा।

यदि कर्ता ‘को’ प्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आए तो क्रिया सदैव पुल्लिंग, एकवचन और अन्यपुरुष में होगी; जैसे—

  • तुम्हें (तुमको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता।
  • अलका को रसोई बनाना नहीं आता।
  • उसे (उसको) समझकर बात करना नहीं आता।

यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक विभक्तिरहित कर्म एक साथ आयें, तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन में होगी; जैसे—

  • श्याम ने बैल और घोड़ा मोल लिए।
  • तुमने गाय और भैंस मोल ली।

यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयें, तो क्रिया भी एकवचन में होगी; जैसे—

  • मैंने एक गाय और एक भैंस खरीदी।
  • सोहन ने एक पुस्तक और एक कलम खरीदी।
  • मोहन ने एक घोड़ा और एक हाथी बेचा।

यदि वाक्य में भिन्न-भिन्न लिंग के अनेक प्रत्यय कर्म आयें तथा वे ‘और’ से जुड़े हों, तो क्रिया अन्तिम कर्म के लिंग और वचन में होगी; जैसे—

  • मैंने मिठाई और पापड़ खाये।
  • उसने दूध और रोटी खिलाई।

विशेषण-विशेष्य अन्विति

विशेषण के अन्वय का प्रश्न केवल उन्हीं विशेषणों के साथ उठता है जो आकारांत होते हैं। शेष सभी विशेषण हमेशा एकरूप रहते हैं; यथा— सुन्दर फूल, सुन्दर पत्ती, सुन्दर फूलों को, सुन्दर पत्तियाँ। इसे उदाहरण सहित समझते हैं—

आकारांत विशेषणों के रूप विशेष्य (संज्ञा) के अनुसार बदलते हैं; यथा—

  • बड़ा लड़का, छोटी लड़की, ऊँचा पहाड़।
  • बड़े लड़के, छोटी लड़कियाँ, ऊँचे पहाड़।

आकारांत विशेषण चाहे विशेष्य के पहले आये अथवा बाद में विधेय-विशेषण के रूप में, वह लिंग-वचन में विशेष्य के अनुसार ही रहता है; जैसे—

  • वह पेड़ बहुत लंबा है।
  • वह लंबा पेड़ हरा-भरा है।
  • वह लंबी डाली फूलों से लदी है।
  • वह डाली लंबी है।

यदि विशेष्य मूल रूप में है, तो आकारांत विशेषण भी मूल रूप में आता है; परन्तु यदि वह विकृत रूप में है, तो विशेषण भी विकृत रूप में आता है; जैसे—

  • लंबा लड़का गया।
  • लंबे लड़के को बुलाओ।

विशेष्य विकृत रूप में हो किन्तु परिवर्तित न हो, तब भी विशेषण परिर्वार्तत हो जाएगा; जैसे—

  • पीला फूल खिला है।
  • पीले फूल को तोड़ लो।

अकारांत विशेषणों में कोई परिवर्तन नहीं होता; यथा—

  • सुंदर लड़का, सुंदर लड़के, सुंदर लड़की।
  • सफ़ेद घोड़ा, सफ़ेद घोड़े, सफ़ेद घोड़ी।

यदि विशेषण के एक से अधिक विशेष्य हों और उनके लिंग अलग-अलग हों तो सामान्यतः अपने सबसे निकट वाले विशेष्य के लिंग, वचन के अनुसार विशेषण की अन्विति होती है; यथा—

  • अच्छे लड़के और लड़कियाँ।
  • अच्छी लड़कियाँ और लड़के।
  • टूटी खिड़की और दरवाज़ा।
  • टूटा दरवाज़ा और खिड़की।

संज्ञा-सर्वनाम अन्विति

वाक्य में लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार सर्वनाम उस संज्ञा का अनुसरण करता है, जिसके स्थान पर आता है। अर्थात् सर्वनाम उसी संज्ञा के लिंग-वचन का अनुसरण करता है, जिसके बदले उसका प्रयोग होता है; जैसे—

  • वह (सीता) गयी।
  • वह (राम) गया।
  • वे (लड़के) गये।
  • मेरे पिताजी और बड़े भाई आये हैं।
  • वे (लोग) कल जाएँगे।
  • लड़के वे ही हैं।
  • लड़कियाँ भी ये ही हैं।

यदि वाक्य में अनेक संज्ञाओं के स्थान पर एक ही सर्वनाम आये, तो वह पुंलिंग बहुवचन में होगा; जैसे—

  • रमेश और सुरेश पटना गये हैं, दो दिन बाद वे लौटेंगे।
  • सुरेश, शीला और रमा आये और वे चले भी गये।

आदर के लिए एकवचन संज्ञा के लिए बहुवचन सर्वनाम का प्रयोग होता है; जैसे—

  • पिताजी आये हैं और वे एक-दो दिन रुकेंगे। उसके बाद उन्हें अयोध्या जाना है।

किसी वर्ग या समुदाय या संगठन के प्रतिनिधि के रूप में ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’; ‘मेरा’ के स्थान पर ‘हमारा’ आदि रूपों का प्रयोग होता है। इसीलिए संपादक, प्रनिनिधि-मंडल का नेता, देश का प्रतिनिधि, देश की ओर से बोलने वाला राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि हम, हमारा आदि का ही प्रयोग करते हैं, मैं, मेरा आदि का नहीं। यदि वे मैं, मेरा आदि का प्रयोग करें तो उसका अर्थ उनका व्यक्तिगत रूप आदि होता है। जैसे—

मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार ! … इस वर्ष, हम भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मना रहे हैं। … संविधान लागू होने के बाद के ये 75 वर्ष हमारे युवा गणतंत्र की सर्वांगीण प्रगति के साक्षी हैं। स्वाधीनता के समय और उसके बाद भी देश के बड़े हिस्से में घोर गरीबी और भुखमरी की स्थिति बनी हुई थी। लेकिन, हमारा आत्म-विश्वास कभी डिगा नहीं। हमने ऐसी परिस्थितियों के निर्माण का संकल्प लिया जिनमें सभी को विकास करने का अवसर मिल सके। हमारे किसान भाई-बहनों ने कड़ी मेहनत की और हमारे देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। हमारे मजदूर भाई-बहनों ने अथक परिश्रम करके हमारे अवसंरचना और निर्माण क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया। (भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन का अंश; नई दिल्ली : 25.01.2025)

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