शब्द जब वाक्य में प्रयुक्त होते है तो वे पद कहलाते हैं। वाक्य पदों से बना होता है। जब एक से अधिक पद एक में बँधे हों तथा वे सभी मिलकर या बँधकर एक व्याकरणिक इकाई (जैसे— संज्ञा, विशेषण, क्रियाविशेषण आदि) का काम कर रहे हों, तो उस ‘बँधी इकाई’ को पदबन्ध (phrase) कहते हैं।
उदाहरण—
- वहाँ पेड़-पौधे हैं।
- सुरेश के बंगले के चारों ओर पेड़-पौधे हैं।
उपर्युक्त दोनों वाक्यों में मोटे टंकित पदबन्ध पर ध्यान दें। प्रथम वाक्य में ‘वहाँ’ और द्वितीय वाक्य में ‘सुरेश के बंगले के चारों ओर’ दोनों स्थान ही बता रहे हैं। अर्थात् पहले वाक्य में ‘वहाँ’ और दूसरे वाक्य में ‘सुरेश के बंगले के चारों ओर’ एक इकाई के रूप में समान व्याकरणिक प्रकार्य या स्थानवाचक क्रियाविशेषण का कार्य कर रहे हैं। प्रथम वाक्य में ‘वहाँ’ एक पद है। द्वितीय वाक्य में ‘सुरेश के बंगले के चारों ओर’ में कई पद हैं, अर्थात् यह कई पदों की एक इकाई है। अतः ‘वहाँ’ तो पद है, किन्तु ‘सुरेश के बंगले के चारों ओर’ ‘पदों का समूह’ अर्थात् ‘पदबंध’ है। दूसरे शब्दों में ‘वहाँ’ यदि ‘क्रियाविशेषण पद’ है, तो ‘सुरेश के बंगले के चारों ओर’ ‘क्रियाविशेषण पदबंध’ है।
अतएव हम कह सकते हैं, कि संरचनात्मक दृष्टि से वाक्य कुछ घटकों से मिलकर बनी हुई एक रचना है। जिन घटकों से मिलकर वाक्य बनता है, उन्हें पदबंध (Phrase) कहते हैं। पदबंध एक पद का भी हो सकता है, एक से अधिक पदों का भी। अर्थात् पदबन्ध, वाक्य में एक इकाई के रूप में व्याकरणिक प्रकार्य करता है।
- (लड़का) (मैदान में) (खेल रहा है)
- (मेरा दोस्त मोहन) (आज) (बीमार) (है)
- (कक्षा के छात्रों ने) (मोहन को) (अपना मॉनीटर) (चुना)
उपर्युक्त वाक्यों में कोष्ठकों () के अन्दर दिये गये पद/पद समूह वाक्य के घटक (पदबंध) हैं।
इनमें एक पद के पदबंध हैं—
- लड़का
- आज
- बीमार
- है
- चुना
- मैदान में
- मोहन को
एक से अधिक पदों/शब्दों के पदबंध हैं—
- खेल + रहा + है
- मेरा + दोस्त + मोहन
- कक्षा + के + छात्रों + ने
- अपना + मानीटर।
अतः हम कह सकते हैं कि —
- पद : वाक्य में प्रयुक्त शब्द पद कहलाता है।
- पदबंध : पदों से मिलकर पदबंध बनता है।
- वाक्य : पदबंधों से मिलकर वाक्य बनता है।
परिभाषा— “वाक्य के उस भाग को, जिसमें एक या एक से अधिक पद परस्पर सम्बद्ध होकर एक इकाई की तरह वाक्य में एक निश्चित व्याकरणिक प्रकार्य करते हैं, पदबन्ध कहते हैं।”
पदबंध का स्वरूप
उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि कोई भी शब्द जब वाक्य में प्रयुक्त होकर आता है तो वह ‘पद’ कहलाता है। ‘मेरा’, ‘बड़ा’, ‘लड़की’, ‘मकान’, ‘बनाना’ इत्यादि शब्द हैं, जिनके अपने अर्थ हैं और इनके अर्थ शब्दकोश में उपलब्ध हैं। परन्तु इन्हीं शब्दों को जब हम किसी वाक्य में प्रयुक्त करते हैं अर्थात् ‘पद’ बनाते हैं तो ये कोश में दिये गये अर्थों के अतिरिक्त और भी सूचनाएँ देते हैं। उदाहरण के लिए एक वाक्य लेते हैं—
- मेरा मित्र मकान बनवा रहा है।
- उपर्युक्त वाक्य में सामान्य अर्थ (शब्दकोश से प्राप्त अर्थ) के अलावा प्रत्येक ‘पद’ कुछ और भी सूचनाएँ देता है; जैसे—
- ‘मित्र’ वाक्य का कर्ता है, ‘मकान’ कर्म है और ‘बनवा रही है’ क्रिया है।
- ‘मेरा’ और ‘रहा’ पद लिंग सम्बन्धी सूचना देते हैं।
कुछ और उदाहरण देखते हैं—
कर्ता | कर्म | क्रिया |
सतीश | पत्र | लिखेगा। |
मेरा प्रिय मित्र | तीनमंजिला मकान | बनवा रहा है। |
बगल के मकान में रहनेवाला लड़का | अपनी नौकरी | छोड़ रहा है। |
उपर्युक्त वाक्यों में ‘सतीश’, ‘मेरा प्रिय मित्र’ और ‘बगल के कमरे में रहनेवाला लड़का’ तीनों कर्ता के रूप में समान कार्य कर रहे हैं और व्याकरणिक दृष्टि से एक इकाई हैं। इस इकाई का नाम ‘पदबंध’ है। यह ध्यान रखने की बात है कि पदबंध का हर घटक अर्थ की दृष्टि से एक दूसरे से निकट रूप से जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए, ‘मेरा प्रिय मित्र’ पदबंध में ‘मित्र’ का सम्बन्ध ‘प्रिय’ और ‘मेरा’ से है, परन्तु ‘बगल के मकान में रहनेवाला’ पदबंध में ‘बगल’ का सम्बन्ध ‘मकान’ से है, न कि ‘लड़का’ से।
अतः पदबंध के सम्बन्ध में निम्नलिखित जानकारी महत्त्वपूर्ण है—
- पदबंध एक पद का भी हो सकता है और एक से अधिक पदों का भी।
- पदबन्ध किसी वाक्य का अंश होता है।
- पदबंध वाक्य में एक निश्चित व्याकरणिक प्रकार्य करता है। इसका प्रयोग कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया-विशेषण या क्रिया के रूप में होता है।
- पदबंध के अपने घटक अर्थ की दृष्टि से परस्पर जुड़े रहते हैं। अर्थात् ये पद इस तरह से सम्बद्ध होते हैं कि उनसे एक इकाई बन जाती है।
पदबन्ध के भेद
जैसा कि हम जानते हैं कि पद (शब्द) के ८ भेद हैं। शब्द-भेदों की भाँति पदबन्ध के आठ प्रकार माने गये हैं। साथ ही यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि पदबन्ध का शब्दक्रम निश्चित होता है।
- संज्ञा पदबंध
- सर्वनाम-पदबन्ध
- विशेषण-पदबन्ध
- क्रिया-पदबन्ध
- क्रिया-विशेषण-पदबन्ध
- सम्बन्धबोधक-पदबन्ध
- समुच्चयबोधक-पदबन्ध
- विस्मयादिबोधत-पदबन्ध
संज्ञा-पदबन्ध
जो पदबंध किसी वाक्य में संज्ञा का काम करे, उसे संज्ञा पदबंध कहते हैं; जैसे—
- रात-रात भर जागकर और भूखे-प्यासे रहकर काम करनेवाला बीमार नहीं पड़ेगा तो क्या स्वस्थ रहेगा।
उपर्युक्त वाक्य में स्थूल टंकित अंश ‘पदों का समूह’ है तथा संज्ञा का काम कर रहा है, अतः यह संज्ञा पदबंध है।
- संज्ञा-पदबन्ध के कुछ उदाहरण— इतने धनी-मानी व्यक्ति, भारत के प्रधानमन्त्री, गोली से घायल बच्चे, रात को पहरा देनेवाला, मिट्टी का तेल, पनीर की सब्जी इत्यादि।
संज्ञा पदबंध मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं—
- जिसका अन्तिम शब्द ‘विशेषण’ हो; जैसे—
- ‘रात-रात भर जागकर और भूखे-प्यासे रहकर काम करनेवाला‘।
- इसमें ‘करनेवाला’ विशेषण है।
- ऐसे संज्ञा पदबंध प्रायः पूरी की पूरी एक इकाई होते हैं।
- दूसरे प्रकार का संज्ञा पदबंध वह होता है, जिसका अन्तिम शब्द संज्ञा होता है तथा उसके पहले के सारे शब्द उसी के विस्तार होते हैं, या उसी की विशेषता बतलाते हैं; जैसे—
- ‘ऊँचे-ऊँचे महलों में रहने वाले धनी-मानी व्यक्ति गरीबों का दुःख-दर्द क्या जानें?’
- यहाँ ‘व्यक्ति’ संज्ञा है, और उसके पूर्व के सारे शब्द किसी-न-किसी रूप में ‘व्यक्ति’ की विशेषता से ही सम्बन्धित हैं।
- जिसका अन्तिम शब्द क्रियार्थक संज्ञा होता है; जैसे—
- ‘रोज-रोज आपस में लड़ना कोई अच्छी बात थोड़े न है।’
- इसमें भी, पहले के सारे शब्द किसी-न-किसी रूप में अन्तिम शब्द (यहाँ लड़ना) की विशेषता बतलाने वाले या विस्तार हैं।
संज्ञा आठ कारकों में आ सकती है, अतः संज्ञा-पदबंध भी आठों में आ सकता है—
- कर्ता— इतनी लगन से कला की साधना करने वाला कलाकार अवश्य सफल होगा ।
- कर्म— पुलिस को गोली से घायल बच्चों को अस्पताल भेज दिया गया है।
- पूरक— राम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया।
- करण— थोड़ी ही और ईटों से मेरा काम चल जाएगा।
- सम्प्रदान— इतने धनी-मानी व्यक्ति को दान देने से क्या लाभ?
- अपादान— पहाड़ की इतनी ऊँची चोटी से वह गिरा कि उसकी हड्डी-पसली का भी पता नहीं चल सका।
- सम्बन्ध— अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम ने रावण को मारा।
- अधिकरण— इतनी उच्च अट्टालिकाओं वाली विशाल नगरी में उस गरीब के लिए मरने का भी स्थान न था।
- सम्बोधन— ओ रौरव नरक के कीड़े, तुम्हें यह सब सोचते क्या शर्म भी नहीं आती।
इनमें करण, अपादान तथा अधिकरण के पदबंधों को क्रियाविशेषण पदबंध तथा सम्बन्ध के पदबंध को विशेषण पदबंध कहना कदाचित् अधिक उचित है, क्योंकि ये वस्तुतः इन्हीं का काम करते हैं।
सर्वनाम-पदबन्ध
जो पदबंध सर्वनाम का काम करे, उसे सर्वनाम पदबंध कहते हैं। जैसे—
- ‘मौत से इतनी बार जूझ कर बच जाने वाला मैं भला मर सकता हूँ?’
उपर्युक्त वाक्य में स्थूल टंकित अंश सर्वनाम पदबंध है। इसमें अंत में या प्रारम्भ में प्रायः सर्वनाम आता है।
- तकदीर का मारा वह वहीं आ गया; मुझ अभागे ने भी वही गलती की।
कभी-कभी सर्वनाम पद दो खंड में बँटकर आरंभ तथा अन्त में आता है तथा बीच में विशेषता बताने वाले शब्द उस पदबंध के अंश होते हैं; जैसे—
- मुझ काम करने वाले को भी तुम टल्लेबाज कहते हो।
उपर्युक्त वाक्य में ‘मुझ… को’ सर्वनाम है, तथा ‘काम करने वाले’ उसकी विशेषता बताने वाला विशेषण।
कुछ और उदाहरण देखते हैं—
- मुझ अभागे ने…
- दैव का मारा वह…
सर्वनाम पदबंध का प्रयोग अन्य पदबंधों की तुलना में बहुत कम होता है।
विशेषण-पदबन्ध
जो पदबंध प्रत्यक्षतः किसी संज्ञा की अथवा किसी सर्वनाम के माध्यम से परोक्षतः किसी संज्ञा की विशेषता बतलाता है, उसे विशेषण पदबंध कहते हैं; जैसे—
- परिश्रम न करने वाले लड़के अच्छे अंक नहीं पा सकते।
उपर्युक्त वाक्य में ‘परिश्रम न करने वाले’ विशेषण पदबंध है।
विशेषण की तरह ही विशेषण पदबंध के भी स्वरूप, आकार, काल, स्थान, रंग, दशा, गुण, परिमाण, संख्या इत्यादि की दृष्टि से अनेक भेदोपभेद हो सकते हैं; जैसे—
- रूप— शरद पूर्णिमा के चाँद-सा सुन्दर मुखड़ा किस को नहीं मोह लेगा ?
- काल— बाबा आदम के जमाने के फ़ैशन मुझे नहीं चाहिए ।
- स्वरूप— सारस की तरह लम्बी गर्दन बड़ी अजीब लगती है।
- रंग— मोती के समान धवल दंत-पंक्ति काले चेहरे में चमक रही थी।
- परिमाण— लगभग हाथ भर का लंबा चाकू उसके हाथ में था।
- संख्या— तादाद में उतने ही लड़के वहाँ भी थे।
कहा जाता है कि सर्वनाम के पहले विशेषण नहीं आता। सामान्यतः तो यह ठीक है, परन्तु कभी आता ही न हो, ऐसी बात भी नहीं। ऐसे वाक्य कभी-कभार मिल जाते हैं; जैसे—
- बेचारा वह क्या कर सकता था?
इसी प्रकार विशेषण पदबंध भी कभी-कभी सर्वनाम के पहले आते हैं; जैसे—
- उस शहर में साम्प्रदायिक कटुता फैलाने वाले जो भी मिले, पकड़ लिये गये।
विशेषण पदबंध का प्रयोग सभी भाषाओं की तरह हिन्दी में भी सबसे अधिक होता है और यह प्रायः संज्ञा, सर्वनाम या क्रियाविशेषण पदबन्ध का अंग बन कर आता है।
कुछ और उदाहरण देखते हैं—
- नाली में बहता हुआ (पानी)
- चाँद से भी प्यारा (मुखड़ा)
- सिंह के समान बलवान् (आदमी)
- एक किलोभर (आटा)
- गज-दो गज (रस्सी)
- कुल पाँच (आदमी)
- ध्यान में मग्न (साधक)
- काम में लगा हुआ (आदमी) इत्यादि।
क्रिया-पदबन्ध
वाक्य में क्रिया का काम करनेवाला पदसमूह क्रिया-पदबन्ध कहलाता है। यह एक पद की भी क्रिया होती है और एक से अधिक पदों की क्रिया होती है; जैसे—
- ‘राम गया।’
- एक पद का क्रिया-पदबन्ध।
- ‘वह तो दिनों-दिन फलता-फूलता चला जा रहा है।’
- एक से अधिक पदों का क्रिया-पदबन्ध।
- ‘फलता-फूलता चला जा रहा है’, ‘क्रिया-पदबंध’ में पहला पद (फलता-फूलता) तो मुख्य क्रिया का, अर्थात् क्रिया पदबन्ध का केन्द्र होता है तथा बाद वाले पद (चला जा रहा है) किसी-न-किसी रूप में उसी की सहायता करते हैं, और इस रूप में उसके (मुख्य क्रिया) विस्तार हैं।
कुछ और उदाहरण देखते हैं—
- लड़का दौड़ रहा है।
- ‘दौड़ रहा है’— क्रिया-पदबंध
- दौड़ना (दौड़)— मुख्य क्रिया
- रहा है— मुख्य क्रिया का विस्तार
- तितलियाँ पुष्परस पी रही होती हैं।
- ‘पी रही होती हैं’— क्रिया-पदबंध
- पीना (पी)— मुख्य क्रिया
- रही होती हैं— मुख्य क्रिया का विस्तार
- उसका कहा मान लिया जा सकता है।
- ‘मान लिया जा सकता है’— क्रिया-पदबंध
- मान लेना (मान लिया)— मुख्य क्रिया
- जा सकता है— मुख्य क्रिया का विस्तार
कुछ क्रिया-पदबन्ध का उदाहरण और लेते हैं—
- ‘लौटकर कहने लगा’
- ‘जाता रहता था’
- ‘कहा जा सकता है’
क्रियाविशेषण-पदबन्ध
वाक्य में क्रियाविशेषण का काम करनेवाला पदसमूह क्रियाविशेषण-पदबन्ध कहलाता है; जैसे—
- मोहन तो गुस्से में बड़े जोरों से दाँत पीसता हुआ आ रहा है।
अर्थ के आधार पर इस पदबन्ध के भी कई भेद हो सकते हैं—
- स्थान— उस मकान की तीसरी मंजिल पर रोजगार का दफ्तर है।
- दिशा— अँधेरे में टिमटिमाती धुँधली रोशनी की तरफ वह चुपचाप चला गया।
- समय— यह मंदिर चोल सम्राट राजराज प्रथम के शासनकाल में बना था।
- अवधि— आगामी महीने के अन्तिम सप्ताह तक मैं अवश्य आ जाऊँगा ।
- अधिकता— सीमा आवश्कता से अधिक बोलती है।
- रीति— चोट खाये हुए सर्प की तरह फुफकारता हुआ वह फिर युद्ध में पिल पड़ा।
- तुलना— हरीश मोहन से ज्यादा तेज दौड़ता है।
कुछ उदाहरण और लेते हैं— घर से होकर (जाऊँगा), पहले से बहुत धीरे (बोलनेवाला), जमीन पर लोटते हुए (चिल्लाया), दोपहर ढले, किसी-न-किसी तरह इत्यादि।
सम्बन्धबोधक पदबन्ध
वाक्य में सम्बन्धबोधक अव्यय का काम करनेवाला पदसमूह सम्बन्धबोधक-पदबन्ध कहलाता है; जैसे—
- पुरुषार्थ के बिना जीवन नहीं।
- कृष्ण के साथ राधा का नाम पूज्य है।
- उनके बिना तुम कुछ नहीं हो।
सम्बन्धबोधक-पदबन्ध के उदाहरण हैं— के बाहर, की ओर, के भीतर से, के लिए, के संग, में से, से दूर, से परे इत्यादि।
समुच्चयबोधक पदबन्ध
वाक्य में समुच्चयबोधक अव्यय का काम करनेवाला पदसमूह समुच्चयबोधक-पदबन्ध कहलाता है; जैसे—
- राम और कृष्ण जाते हैं।
- राहुल तेज है, किन्तु उद्यमी नहीं।
- यदि वह आता, तो मैं उसके साथ चल पड़ता।
- यद्यपि वह निर्धन है, तथापि है ईमानदार।
समुच्चयबोधक-पदबन्ध के उदाहरण हैं— और, किन्तु, परन्तु, तथा, एवं, फिर, या, वा, अथवा, चाहे, नहीं तो, लेकिन, इसलिए, इसलिए कि, अतः, कि, ताकि, क्योंकि, यदि…तो, यद्यपि…तथापि; इत्यादि।
विस्मयादिबोधक पदबन्ध
वाक्य में विस्मयादिबोधक अव्यय का काम करनेवाला पदसमूह विस्मयादिबोधक-पदबन्ध कहलाता है; जैसे—
- वाह ! क्या कहना है।
- हाय री किस्मत ! वह पुनः असफल रहा।
विस्मयादिबोधक-पदबन्ध के उदाहरण हैं— बाप रे बाप !, दइया रे दइया !, अरे बाप रे !, हाय री किस्मत !, वाह !, आह !, छिः छिः ! इत्यादि।
पदबन्ध सम्बन्धित कुछ प्रमुख तथ्य
पदबन्ध की रचना के सम्बन्ध में कुछ बातें ऊपर आ चुकी हैं। सामान्य रूप से कुछ और बातें भी ध्यान देने की हैं—
- किसी भी संज्ञा के पूर्व उसका विस्तार आ सकता है और यह विस्तार विशेषण, सम्बन्ध कारक, अधिकरण कारक, सम्प्रदान कारक इत्यादि रूपों में हो सकता है; जैसे—
- संज्ञा का विस्तार विशेषण : अच्छा लड़का
- संज्ञा का विस्तार सम्बन्ध कारकीय रूप : तुम्हारा बेटा; राम की माँ
- संज्ञा का विस्तार अधिकरण कारकीय रूप : कमरे में शोर; बोलने में तेजी
- संज्ञा का विस्तार सम्प्रदान कारकीय रूप : लुटाने के लिए धन
- सर्वनाम के पूर्व उसका विस्तार आ सकता है। यह मुख्यतः विशेषण होता है; जैसे—
- बेचारा वह क्या करेगा।
- किसी भी विशेषण के पूर्व उसका विस्तार आ सकता है। विशेषण का विस्तार प्रविशेषण, प्रविशेषण + ही, तुलनात्मक प्रयुक्त पद, अधिकरण कारकीय रूप आदि हो सकते हैं; जैसे—
- प्रविशेषण : बहुत अच्छा मौक़ा
- प्रविशेषण + ही : बहुत ही अच्छा
- तुलनात्मक प्रयुक्त पद : फूल से कोमल; सबसे स्वार्थी
- अधिकरण कारकीय रूप : खाने में स्वादिष्ट
- किसी भी क्रियारूप के पूर्व उसका विस्तार आ सकता है। क्रियारूप का विस्तार क्रियाविशेषण, क्रिया के सकर्मक होने पर कर्म, धातु के अकर्मक होने पर पूरक रूप में विशेषण, संज्ञा आदि हो सकते हैं; जैसे—
- क्रियाविशेषण : धीरे-धीरे बोलता है; घर में लड़ता है; लाठी से मारता है; देर से आता है
- क्रिया के सकर्मक होने पर कर्म : खाना खाकर; पत्र लिखेगा
- धातु के अकर्मक होने पर पूरक रूप में विशेषण : स्वस्थ होने पर; सफल होकर
- संज्ञा : पुरुष होकर ऐसी बातें करते हो
- क्रियाविशेषण के पूर्व उसका विस्तार आ सकता है। क्रियाविशेषण का विस्तार प्रक्रियाविशेषण, प्रक्रियाविशेषण + ही, तुलना आदि हो सकते हैं; जैसे—
- प्रक्रियाविशेषण : बहुत धीरे-धीरे बोलता है
- प्रक्रियाविशेषण + ही : बहुत ही धीरे-धीरे लिख रहा है
- तुलना : बीमार की तरह धीरे-धीरे
- जैसा कि कहा गया है, विस्तार प्रायः पूर्व होते हैं, किन्तु कुछ प्रकार के विस्तार बाद में भी आ सकते हैं; जैसे—
- वह बेचारा क्या करे।
- लड़का बेचारा क्या करे।
- करूँगा काम किन्तु आज नहीं।
- कहानी एक दीन की।
वाक्य, उपवाक्य और पदबन्ध
- वाक्य से पूर्ण भाव प्रकट होता है, उपवाक्य से आंशिक भाव प्रकट होता है और पदबन्ध एक सुनिश्चित व्याकरणिक प्रकार्य करता है।
- वाक्य और उपवाक्य दोनों में उद्देश्य और विधेय होते हैं। परन्तु वाक्य पूर्ण होता है, जबकि उपवाक्य मिलकर एक पूर्ण वाक्य बनाते हैं।
- पदबन्ध में क्रिया नहीं होती, उपवाक्य में क्रिया रहती है; जैसे—
- ‘ज्योंही वह आया, त्योंही मैं चला गया।’
- उपर्युक्त वाक्य एक पूर्ण वाक्य है।
- उपर्युक्त वाक्य में ‘ज्योंही वह आया’ एक उपवाक्य है, जिससे पूर्ण अर्थ की प्रतीति नहीं होती।
- उपर्युक्त वाक्य में पदबन्ध हैं—
- ज्योंही, त्योंही— समुच्चबोधक-पदबन्ध
- वह, मैं— संज्ञा-पदबन्ध
- आया, चला गया— क्रिया-पदबन्ध
संबन्धित लेख—