उत्तर प्रदेश के प्राचीन नगर (ऐतिहासिक, धार्मिक व पर्यटक स्थल)

Table of Contents

भूमिका

गंगा का मैदान प्राचीन काल से ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति का रंगमंच रहा है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान काल तक अनेक नगरों का उत्थान और पतन यहाँ हुआ। द्वितीय नगरीय क्रांति (६ठी शताब्दी ई०पू०) यहीं हुई। तत्कालीन बौद्ध ग्रंथों में उल्लिखित ६ महानगरों में से चार वर्तमान उत्तर प्रदेश में ही स्थित थे। ये चार हैं – श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी और वाराणसी। वाराणसी अनवरत अधिवासित विश्व के पुरातन नगरों में से एक है।

प्राचीन नगरों की सूची तो बहुत लम्बी है फिर भी कुछ को भाग – १ से भाग – ८ तक बाँटकर समेटने का प्रयास किया गया है, जिनके विवरण अधोलिखित हैं :

भाग – 1

उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर

अतरंजीखेड़ा

उत्तर प्रदेश के एटा जनपद में गंगा नदी की सहायक काली नदी तट पर स्थित है। ह्वेनसांग ने इसे ‘पि-लो-शा-न’ कहता है। अनुश्रुति के अनुसार इस राज्य की नींव राजा बेन (बेण) ने डाली थी।

इस पुरातात्त्विक स्थल के उत्खनन में ७ सांस्कृतिक स्थल प्रकाश में आये हैं, जिसको दो वर्गों में बाँटा सकता है :-

एक, पात्र परम्परा से सम्बंधित सांस्कृतिक स्तर

  1. गैरिक मृद्भाण्ड परम्परा
  2. काली लाल मृद्भाण्ड परम्परा
  3. चित्रित धूसर मृद्भाण्ड परम्परा
  4. उत्तरी काली चमकीली पात्र परम्परा

द्वितीय, ५० ई०पू० से लेकर मध्यकाल तक की संस्कृति

  1. पूर्व-गुप्त काल या कुषाण काल (५० ई०पू० से ३५० ई० तक)
  2. गुप्तकाल से लेकर राजपूत काल तक (३५० ई० से लेकर ११०० ई० तक)
  3. सल्तनत-मुगल काल (११०० ई० से १६५० ई० तक)

यहाँ से प्राप्त अवशेष मुख्यतः चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति से सम्बद्ध हैं। चित्रित धूसर मृद्भाण्ड परम्परा को लौहकाल और उत्तर वैदिक काल से जोड़ा जाता है।

यहाँ से लौह-प्रयोग, वृत्ताकार अग्निकुण्ड व धान की खेती के भी प्रमाण मिले हैं।

विस्तृत विवरण के लिये देखें — अतरंजीखेड़ा

अयोध्या “धाम”

  • उत्तर प्रदेश के अयोध्या जनपद में सरयू नदी के दाये तट पर स्थित इस नगर का प्राचीन नाम अयाज्सा मिलता है।
  • यह भारत के ७ मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में से एक है।
  • इसकी प्रसिद्धि का कारण भगवान श्रीराम की जन्मभूमि के कारण है।
  • साथ ही साथ ही जैन धर्म के पहले, दूसरे, चौथे, पाँचवें और चौदहवें तीर्थंकरों का भी जन्म स्थल है। इनके नाम क्रमशः आदिनाथ या ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ और अनन्तनाथ हैं। अयोध्या से मात्र २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित रतनपुरी में १५वें जैन तीर्थंकर धर्मनाथ का जन्म हुआ था।
  • रामायण काल में यह नगर बारह योजन लम्बा व तीन योजन चौड़ा था। यहाँ से उत्तरी काली ओपदार (पॉलिशदार) मृद्भाण्ड संस्कृति से लेकर गुप्त काल तक के साक्ष्य मिले हैं। महाजनपदकाल में यह (साकेत) कोशल जनपद की प्रमुख नगरी थी जो उत्तरी भाग की राजधानी थी।
  • यहाँ सम्राट अशोक ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था। यहाँ से पुष्यमित्र शुंग का एक लेख भी मिला है जिसके अनुसार उसने दो अश्वमेध यज्ञ किये थे। गुप्त काल में भी यह एक प्रमुख नगर था। ह्वेनसांग ने यहाँ अनेक बौद्ध मंदिर होने का उल्लेख किया है।
  • यह नगरी बहुत समय तक प्रसिद्ध इक्ष्वाकुवंशी राजाओं की राजधानी रही। इस नगरी में माता सीता, प्रभु श्रीराम, रामदूत हनुमानजी के अनेक मंदिर है। इसमें कुछ प्रमुख हैं : — हनुमानगढ़ी, कनक भवन, श्रीरामजन्मभूमि, मणिपर्वत, सीताकुण्ड, सरयू नदी तट पर राम की पैड़ी, रामकथा संग्रहालय आदि।
  • यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि २२ जनवरी, २०२४ को श्रीरामचंद्रजी की बालरूप मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गयी जो कि भारतीयों के ५ शताब्दियों के अनवरत संघर्ष का सुफल है।
  • अयोध्या शहर से लगभग १० किलोमीटर दक्षिण में भरतकुण्ड है। श्रीरामजी के बनवास के दौरान भरतजी ने यहीं पर तप करते हुए राज्य का संचालन किया था।

विस्तृत विवरण के लिये देखें — अयोध्या

अहिच्छत्र

अहिच्छत्र ( Ahichchhtra ) की पहचान उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद के आँवला तहसील में स्थित रामनगर से की गयी है। यह उत्तर वैदिक काल में उत्तरी पाञ्चाल की राजधानी थी। महाभारत और पूर्व बौद्ध काल में यह एक प्रसिद्ध नगर था।

यह हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म से सम्बन्धित स्थान रहा है। ऐसा माना जाता है कि यहीं २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।

यहाँ से मृद्भाण्ड संस्कृति से लेकर गुप्तोत्तर युग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। सम्राट अशोक ने यहाँ पर एक स्तूप बनवाया था। यहाँ से ‘मित्र’ उपाधि वाले सिक्के, कुषाणों के सिक्के तथा गुप्तकालीन एक यमुना की मूर्ति मिली है। पुरातत्त्वविदों के अनुसार यह एक लौहकालीन स्थल है।

विस्तृत विवरण के लिये देखें — अहिच्छत्र

आलमगीरपुर

आलमगीरपुर उत्तर प्रदेश में मेरठ के समीप हिंडन नदी के किनारे स्थित है। आलमगीरपुर के उत्खनन से प्राप्त अवशेष सैन्धव सभ्यता के पूर्वी विस्तार की पुष्टि करते हैं। यह स्थल उत्तर-हड़प्पा सभ्यता का भी केन्द्र था। आलमगीरपुर से कपास उत्पादन के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

कपिलवस्तु (पिपरहवा)

कपिलवस्तु की पहचान उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जनपद के पिपरहवा से की गयी है। यह स्थान सिद्धार्थ नगर शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर नेपाल सीमा के पास स्थित है। बौद्ध काल में कपिलवस्तु शाक्य गणराज्य की राजधानी थी और गौतमबुद्ध के पिता शुद्धोधन यहाँ के शासक थे।

यहाँ से एक प्राचीनतम बौद्ध स्तूप तथा उसके भीतर रखी हुई बुद्ध की अस्थि-युक्त एक पाषाण मंजूषा प्राप्त हुई है। मंजूषा पर ब्राह्मी लिपि में एक लेख लिखा हुआ है जिसमें स्पष्ट है कि इसका निर्माण शाक्यों ने करवाया था। यहाँ का बौद्ध स्तूप उन मौलिक आठ स्तूपों में से एक है जिसका निर्माण बुद्ध के परिनिर्वाण के तुरन्त बाद करवाया गया था। वर्तमान में स्तूप के अवशेष एवं मंजूषा लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

यहाँ उत्तरी काली ओपदार मृद्भाण्ड युग के अवशेष प्राप्त हुए हैं। मौर्य सम्राट अशोक ने इस पवित्र स्थल की यात्रा की थी। यहाँ के सालारगढ़ पुरातात्विक स्थल से कुषाणों के सिक्के मिले हैं। यहाँ के गनवारिया पुरातात्विक स्थल से राजा शुद्धोधन के राजमहल के भग्नावशेष मिले हैं। यह श्रावस्ती-वाराणसी मार्ग तथा वैशाली-पुरूषपुर मार्ग का एक प्रमुख केन्द्र स्थल था। इसीलिए कपिलवस्तु में आर्थिक-व्यापारिक सक्रियता के साक्ष्य मिलते हैं। महावस्तु के अनुसार कपिलवस्तु में अनेक प्रकार के शिल्प प्रचलित थे।

लुम्बिनी (रम्मिनदेई)

गौतम बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में ही हुआ था, जो कि महाराजगंज जनपद के नौतनवा स्टेशन से 15 किलोमीटर की दूरी पर नेपाल में स्थित है। वर्तमान में इसे रुम्मिनदेई कहा जाता है। अशोक अपने अभिषेक के 20वें वर्ष इस स्थल की यात्रा किया था और यहाँ के लोगों पर कर घटाकर 1/8 भाग कर दिया था। उसने यहाँ पर लेखयुक्त एक शिलास्तम्भ लगवाया जिसके शीर्ष भाग पर अश्व की मूर्ति थी जो अब नष्ट हो चुकी है। प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग ने भी इस स्थल की यात्रा की थी। अश्वघोष के बुद्धचरित में भी इस स्थल का उल्लेख बुद्ध के जन्म स्थल के रूप में किया गया है।

विस्तृत विवरण के लिये देखें — रुम्मिनदेई अभिलेख

कौशाम्बी

यह प्राचीन नगर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद से दक्षिण-पश्चिम में 60 किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के तट पर स्थित था। प्राचीन कौशाम्बी की पहचान वर्तमान कौशाम्बी जनपद के वर्तमान कोसम गांव से की गयी है।

पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर के राजा निचक्षु ने हस्तिनापुर के गंगा नदी के प्रवाह में बह जाने के बाद इस नगर की स्थापना करवायी थी। इसे आद्य-नगरीय स्थल भी कहा जा सकता है। महाजनपद युग में यह वत्स महाजनपद जनपद की राजधानी थी जहाँ का राजा उदयन था।

यहाँ से कुषाण शासकों; यथा – विम कडफिसेस व कनिष्क के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। ध्यातव्य है कि हूण शासक तोरमाण के आक्रमण के समय इस स्थल को बेहद क्षति पहुंची थी।

यहाँ पर घोषिताराम-विहार था। अशोक व समुद्र गुप्त का प्रयाग स्तम्भ अभिलेख जिसे अकबर ने प्रयागराज के किले में स्थापित करवाया था भी यहीं था। यह बौद्ध थेरपंथ का केन्द्र था।

राजा उदयन का किला अवशेष, घोषितराम-विहार अवशेष, दिगम्बर जैन मंदिर आदि यहाँ के दर्शनीय स्थल है। छठे जैन तीर्थंकर पद्म प्रभु का जन्म यहीं हुआ था। प्रसिद्ध जैन तीर्थ प्रभाषगिरि (प्रभोसा) यहाँ से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहीं पर महावीर स्वामी को माता शक्ति ने दीक्षा दिया था।

कोइल

कोइल अथवा कोल अलीगढ़ जनपद में स्थित है। भारत में तुर्कों के आगमन के समय इस पर राजपूतों का प्रभुत्व स्थापित था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 ई० में कोइल पर अधिकार स्थापित कर लिया था। इब्नबतूता कोइल के नगर वैभव की प्रशंसा करता है। सुल्तान बहलोल लोदी के समय कोइल का स्थानीय शासक ईसा खां था, जिसने बहलोल की अधीनता स्वीकार कर ली थी।

कड़ा

यह स्थान प्रयागराज से 64 किलोमीटर पश्चिम गंगा तट पर कौशांबी जिले में स्थित है। गंगा-यमुना दोआब तथा प्रमुख व्यापारिक मार्ग पर अवस्थित होने के कारण इसका आर्थिक महत्त्व था, जिस कारण सल्तनत एवं मुगल काल में यह एक महत्त्वपूर्ण इक्ता (सूबा) था।

  • सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी के समय कड़ा का सूबेदार अलाउद्दीन खिलजी था। कड़ा से ही अलाउद्दीन खिलजी ने 1296 ई० में अपना देवगिरि अभियान सम्पन्न किया था। 1296 ई० में कड़ा में ही सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या अलाउद्दीन खिलजी ने करवायी थी और अपने को दिल्ली सल्तनत का सुल्तान घोषित कर लिया था।
  • कड़ा क्षेत्र में ही सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने स्वर्गद्वारी की स्थापना करवायी थी।
  • मुगल सम्राट अकबर के पुत्र राजकुमार सलीम ने 1602 ई० में अकबर के विरुद्ध विद्रोह करके कड़ा दुर्ग में ही शरण ली थी।
  • 1765 ई० में सन्धि के अनुसार अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अंग्रेज कम्पनी को कड़ा क्षेत्र सौंप दिया था।
  • भक्त सन्त मलूकदास की जन्मस्थली कड़ा में ही है।

कालिंजर

उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद में स्थित कालिंजर एक ऐसा स्थल है जो अपने दृढ़ दुर्ग के लिये प्रसिद्ध है। पूर्वमध्यकाल में यहाँ चंदेल वंशी राजपूतों का शासन था। यह एक सामरिक महत्त्व का दुर्ग था जिस पर अधिकार करने के लिये विभिन्न शासक प्रयासरत रहे। इससे सम्बन्धित कुछ प्रमुख घटनायें निम्न हैं :-

  • 1022 ई० में महमूद गजनवी ने कालिंजर पर आक्रमण किया था। इस समय यहाँ का शासक चन्देल वंश विद्याधर थे। यह युद्ध अनिर्णीत रहा और दोनों में सन्धि हो गयी।
  • 1202 – 03 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चन्देल शासक परमर्दिदेव को कालिंजर में पराजित किया था।
  • 1545 ई० में कालिंजर के सैन्य अभियान में बारूद विस्फोट से शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गयी थी।
  • अकबर ने 1569 ई० में यहाँ के शासक रामचन्द्र को पराजित कर कालिंजर पर अधिपत्य स्थापित कर लिया था।

इस प्रकार इसका सामरिक महत्त्व सदैव रहा है।

भाग – 2

उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर

काल्पी

यह स्थल जालौन जिले में यमुना नदी के तट पर स्थित है। काल्पी से सम्बन्धित प्रमुख तथ्य इस प्रकार है :

10वीं शताब्दी ई० में काल्पी में चन्देलों का शासन स्थापित था।

  • बारहवीं शताब्दी के अन्त में कुतुबुद्दीन ऐबक ने काल्पी को दिल्ली सल्तनत का अंग बना लिया था।
  • फीरोजशाह तुगलक के पश्चात यह एक स्वतंत्र मुस्लिम राज्य बन गया था।
  • अकबर के समय यह मुगल साम्राज्य का एक प्रमुख नगर था।
  • बीरबल का जन्म यहीं हुआ था। यहाँ से बीरबल के रंगमहल तथा मुगल टकसाल के अवशेष प्राप्त होते हैं।
  • यहाँ दो पौराणिक टीले व्यास टीला व नरसिंह टीला हैं।

काशी (वाराणसी)

यह उत्तर प्रदेश या भारत का ही नहीं वरन संसार के प्राचीनतम् नगरों में से एक है। यह भारत की सांस्कृतिक राजधानी है। इसे वरूणा व अस्सी नामक दो नदियों के मध्य स्थित होने के कारण वाराणसी भी कहा जाता है। इसका उल्लेख वैदिक ग्रन्थों में भी मिलता है। इसका प्रथम उल्लेख अर्थववेद में प्राप्त होता है। महाभारत तथा रामायण में भी काशी राज्य का उल्लेख है।

छठी शताब्दी ई०पू० के सोलह महाजनपदों में काशी प्रमुख महाजनपद था। बुद्ध काल के ग्रन्थों में काशी की विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है। महाभारत के अनुसार काशी की स्थापना दिवोदास नामक राजा ने की थी। यह विद्या के केन्द्र के रूप में प्राचीन काल से प्रसिद्ध है।

यह शैव धर्म का प्रमुख केन्द्र तथा हिन्दू धर्म की एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक नगरी के रूप में सदैव प्रतिष्ठित रही है। हेनसांग तथा अल्बरूनी इसके सांस्कृतिक प्रभाव पर मुग्ध थे।

हिन्दी के महानतम् महाकाव्य रामायण के अधिकतम अंशों की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं की थी। प्रसिद्ध संत कवि कबीरदास यहीं रहते थे।

सांस्कृतिक केन्द्र होने के कारण यह नगरी बार-बार विदेशी आक्रान्ताओं से पदाक्रान्त होती रही। यहाँ के लोगों पर अत्याचार किये गये और यहाँ के मन्दिर तोड़े गये। स्वयं कबीरदास सिकंदर लोदी द्वारा परेशान किये गये थे। वर्तमान में काशी विश्वनाथ मन्दिर के पार्श्व में स्थित ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ चीख-चीखकर कह रही है कि यह मन्दिर को तोड़कर बनाया गया है।

प्राचीन काल में यहाँ का शिल्प उन्नत अवस्था में था और शिल्प व्यापारी बहुत समृद्ध थे, जिन्होंने अपने सिक्के भी चलाये थे। पतंजलि ने यहाँ के रेशम शिल्क का उल्लेख किया है।

यहाँ के प्रमुख दर्शनीय मन्दिर व स्थल है- विश्वनाथ (अहिल्याबाई होल्कर निर्मित), अन्नपूर्णा, संकटमोचन, दुर्गा मन्दिर, तुलसी मानस मन्दिर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय का विश्वनाथ मन्दिर, आदि विश्वेश्वर, साक्षी विनायक और पांचरत्न आदि। कुण्डों तथा वापियों में दुर्गा कुण्ड, पुष्कर कुण्ड, पिशाचमोचन, कपिलधारा, लोलार्क, मानसरोवर तथा मन्दाकिनी उल्लेखनीय हैं। यहाँ गंगा पर कुल 84 घाट हैं, जिनमें से अस्सी, तुलसी, हरिश्चन्द्र, अहिल्याबाई, दशाश्वमेघ तथा मणिकार्णिका आदि विशेष प्रसिद्ध है।

जैन धर्म के 7वें और 23वें तीर्थंकरों (सुपार्श्वनाथ व पार्श्वनाथ) का जन्म यहीं हुआ था। अतः यह जैनियों का भी तीर्थ है। काशी से मात्र 15 किमी० पूर्व स्थित चन्दरपुरी नामक स्थान पर 8वें जैन तीर्थकर चन्द्रप्रभु का जन्म हुआ था। जबकि सिंहपुर (वर्तमान सारनाथ) में 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म हुआ था।

विस्तृत विवरण के लिये देखें — वाराणसी (काशी)

कुरु

इसकी चर्चा हमें वैदिक साहित्यों में मिलती है और विस्तृत विवरण महाभारत में मिलता है। महाभारत काल में यह एक प्रसिद्ध राज्य था, जिसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी। इसके अन्तर्गत आधुनिक दिल्ली व मेरठ के कुछ भूभाग थे। महाजनपद काल में भी यह एक प्रमुख जनपद था।

विस्तृत विवरण के लिये देखें — महाजनपद काल

खंजवा या खजुहा

यह प्रयागराज के समीप अवस्थित है। इसका सम्बन्ध मुगल-उत्तराधिकार युद्ध से है। 5 जनवरी, 1659 ई० को औरंगजेब ने इस स्थल पर हुए युद्ध में शाहशुजा को पराजित कर उत्तराधिकार में निर्णायक सफलता प्राप्त कर ली थी।

गढ़कुण्डार

झाँसी जिले में अवस्थित गढ़कुण्डार पर पूर्व मध्यकाल में परमार राजपूतों का अधिपत्य था, लेकिन बाद में इस पर चन्देल राजपूतों का अधिकार हो गया था। चन्देलों को पराजित कर पृथ्वीराज चौहान ने इस पर अधिकार कर लिया था। पृथ्वीराज चौहान के सेनानायक खेतसिंह ने यहाँ खंगार राज्य की स्थापना की थी। सुल्तान बलबन के समय (1265-1287 ई०) गढ़कुण्डार पर बुन्देलों ने अधिकार कर लिया था, जिस पर 1531 ई० तक उनकी राजधानी रही थी।

गढ़वा

गढ़वा प्रयागराज जिले में अवस्थित है। यहाँ से कुमारगुप्त प्रथम के दो शिलालेख तथा स्कन्दगुप्त का एक लेख प्राप्त हुआ है। कुमारगुप्त के शिलालेखों में गुप्त संवत् 98 की तिथि अंकित है। शिलालेखों से दानगृह को दान देने की सूचना प्राप्त होती है। स्कन्दगुप्त के शिलालेखों में गुप्त संवत् 148 की तिथि अंकित है। इस लेख से विष्णु की प्रतिमा की स्थापना एवं पूजा के लिए दान दिए जाने की सूचना मिलती है।

कुमारगुप्त का गढ़वा अभिलेख

स्कंदगुप्त का गढ़वा अभिलेख

चन्दावर

चन्दावर नामक स्थल वर्तमान फिरोजाबाद में स्थित है। यह फिरोजाबाद जिले का मुख्यालय भी है। 1194 ई० में कन्नौज के गहड़वाल नरेश जयचन्द को मुहम्मद गोरी ने यहीं पर हुए युद्ध में पराजित किया था।

चुनार

  • चुनार विन्ध्य पहाड़ी क्षेत्र में गंगानदी के तट पर मिर्जापुर जनपद में स्थित है।
  • मध्यकाल में सामरिक महत्त्व के कारण यह स्थल सदैव चर्चित रहा। चुनार से पूर्वी भारत पर नियन्त्रण रखा जा सकता था।
  • पूर्वमध्य काल से ही यह चंदेल शासकों के आधिपत्य में रहा था। चौदहवीं शताब्दी में भी चुनार में चन्देलों का शासन स्थापित था।
  • मुगल सम्राट बाबर ने चुनार पर अधिकार कर लिया था।
  • शेरशाह सूरी के दमन के क्रम में हुमायूँ ने चुनार के किले की घेराबन्दी की थी परन्तु शेरशाह ने चुनार पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया था।
  • यहाँ के दुर्ग में विक्रमादित्य द्वारा निर्मित भतृहरि मंदिर है और पास ही बल्लभ सम्प्रदाय का कूप मंदिर भी है।

जौनपुर

  • जौनपुर की स्थापना सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने 1358 ई० में की थी। इसकी स्थापना उसने मुहम्मद तुगलक उर्फ जौना खां की याद और सम्मान में करवायी थी।
  • यह नगर गोमती नदी तट पर स्थित है।
  • तुगलक वंश के पतन के समय जौनपुर मलिक हुसैन शर्की के नेतृत्व में स्वतंत्र हो गया और शर्की सल्तनत की स्थापना की।
  • जौनपुर अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों एवं स्थापत्य कला के लिए चर्चित रहा।
  • साहित्य, स्थापत्य (जैसे- अटाला मस्जिद, लाल दरवाजा व जामा मस्जिद आदि) व संगीत कला के लिये जौनपुर के शर्की सुल्तानों का योगदान चिरस्मरणीय रहा है।
  • इसी विशेषता के कारण जौनपुर को ‘शिराज-ए-हिन्द’ या ‘पूर्व का शिराज़’ कहा जाता था।

झाँसी

  • झाँसी एक मध्यकालीन नगर है।
  • इसकी स्थापना 1631 ई० में ओरछा शासक बीर सिंह बुन्देला ने की थी।
  • 1732 ई० में जैतपुर युद्ध के बाद झाँसी स्थानीय ओरछा शासक छत्रसाल द्वारा पेशवा बाजीराव प्रथम को सौंप दी गयी थी। तत्पश्चात् झाँसी पर मराठों का प्रभुत्त्व स्थापित हो गया था।
  • रानी लक्ष्मीबाई झाँसी के स्वतंत्र राज्य के शासक गंगाधर राव की पत्नी थी जिन्होंने 1857 ई० में महान् विद्रोह में अपनी वीरता व साहस का लोहा अंग्रेजों से स्वीकार कराकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीर गति प्राप्त की थी।
  • झाँसी में लक्ष्मीबाई का महल, महादेव मन्दिर व मेंहदी बाग आदि प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्मारक हैं।

देवगढ़

  • ललितपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे देवगढ़ (देवताओं का किला) हिन्दुओं और जैनियों, दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  • इस स्थान से गुप्तकालीन हिन्दू मन्दिर एवं मूर्तियों के साक्ष्य मिले हैं। इनमें विष्णु का दशावतार मन्दिर सर्वाधिक उल्लेखनीय है। भगवान विष्णु का यह मन्दिर ईंट- स्थापत्य का सुन्दर प्रतीक है।
  • यहाँ 31 जैन मंदिरों का ग्रुप है, जिनमें से 11वाँ व 12वाँ मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यहाँ से जैन तीर्थकर ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी द्वारा उत्कीर्णित लिपियों के साक्ष्य तथा चन्देलों के अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ गजेन्द्र मोक्ष, वाराह मंदिर, सिद्ध की गुफा, राजघाटी व नाहरघाटी भी दर्शनीय हैं।

पाँचाल

  • यह राज्य वर्तमान बरेली, बदायूँ व फर्रूखाबाद जनपदों की भूमि पर बसा हुआ था।
  • महाभारत काल में यहाँ के राजा द्रुपद थे जिनकी कन्या द्रौपदी थी।
  • महाजनपद काल में यह एक प्रमुख गणराज्य था जो दो भागों में बँटा था। उत्तरी पाञ्चाल की राजधानी अहिच्छत्र व दक्षिणी पाञ्चाल की राजधानी काम्पिल्य थी।
  • ध्यातव्य है कि कान्यकुब्ज नगर भी इसी गणराज्य का भूभाग था।

प्रयागराज

  • प्रयागराज गंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है।
  • अकबर ने कौशाम्बी स्थित सम्राट अशोक के स्तम्भ को प्रयाग में अपने किले में स्थापित करवाया था।
  • अशोक स्तम्भ पर हरिषेण रचित गुप्तवंशीय समुद्रगुप्त का भी लेख उत्कीर्ण है। इससे समुद्रगुप्त की सैनिक एवं कलात्मक गतिविधियों की जानकारी मिलती है।
  • गुप्तकाल में यह उनकी धार्मिक-सांस्कृतिक राजधानी थी।
  • गुप्तों के बाद प्रयाग पर हर्षवर्द्धन, गुर्जर-प्रतिहारों, चन्देलों व गहड़वालों का आधिपत्य रहा।
  • अकबर ने प्रयाग की पुनर्स्थापना कर सन् 1574 में इसे ‘इलाहाबाद’ नाम दिया था, जिसे 444 वर्ष बाद बदलकर अक्टूबर 2018 में पुनः प्रयागराज कर दिया गया है।
  • हर्षवर्द्धन प्रति पाँचवे वर्ष प्रयाग में महामोक्ष परिषद् का आयोजन करता थे। इसका विवरण ह्वेनसांग ने किया है।
  • वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश की न्यायिक राजधानी है।
  • प्रयाग को सभी हिन्दू तीर्थों के राजा होने का सम्मान प्राप्त है इसीलिये इसको “तीर्थराज प्रयाग” कहते हैं। प्रायः सभी धार्मिक ग्रन्थों में प्रयाग का उल्लेख मिलता है।
  • यहाँ हर बारहवें वर्ष महाकुम्भ, 6वें वर्ष अर्धकुम्भ तथा प्रत्येक वर्ष में माघ मेला लगता है।
  • भारद्वाज मुनि का आश्रम, प्राचीन अक्षयवट, ललिता-अलोपशंकरी-कल्याणी देवी मंदिर, वेणीमाधव मंदिर, नाग बासुकी मंदिर व गंगा-यमुना-सरस्वती संगम (त्रिवेणी) यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
  • संगम पर एक किला है, जिसे अकबर ने बनवाया था। किले के अन्दर पौराणिक अक्षयवट है। 

भाग – 3

उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर

फतेहपुर सीकरी

  • फतेहपुर सीकरी आगरा से लगभग 40 किमी० की दूरी पर स्थित है।
  • इस स्थान को (जहाँगीर का जन्म होने तथा शेख सलीम चिश्ती का निवास होने के कारण) अकबर द्वारा काफी महत्त्व दिया गया।
  • सम्राट अकबर ने फ़तेहपुर सीकरी को 1571 ई० में इसे अपनी नयी राजधानी बनाकर लगभग 15 तक यहाँ रहा। इस दौरान उसने अनेक भवनों का निर्माण करवाया।
  • फतेहपुर सीकरी के शानदार स्थापत्य प्रतीकों में शेख सलीम चिश्ती का मकबरा, बुलन्द दरवाजा, जामा मस्जिद, जोधाबाई का महल, दीवाने खास, बीरबल का महल, मरियम का महल, पंच महल आदि प्रसिद्ध हैं।
  • यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है।

बरन

  • बरन बुलन्दशहर जिले में स्थित है।
  • यहाँ के राजपूत शासकों ने मुस्लिम आक्रान्ताओं का डटकर मुकाबला किया था।
  • 1018 ई० में महमूद गजनबी ने बरन को पदाक्रान्त किया था।
  • 1193 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने यहाँ के शासक को पराजित कर इस पर अधिकार कर लिया था।
  • प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी यहीं का ही निवासी था।

भीतरी

  • यह गाजीपुर जनपद में स्थित है।
  • यहाँ से गुप्तकाल के अनेक अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनमें स्कन्दगुप्त का स्तम्भ-लेख सर्वप्रमुख है। इस लेख में स्कन्दगुप्त के शासनकाल की महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख है। यह स्तम्भ बलुआ पत्थर का बना है जिसके शीर्ष भाग पर विष्णु की प्रतिमा थी, जो अब नहीं है।

भीतरगाँव

  • कानपुर देहात जनपद में स्थित भीतरगाँव गुप्तकालीन शैली में निर्मित मन्दिर के भग्नावशेष के कारण प्रसिद्ध है।
  • यह मन्दिर चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के काल में बना था।
  • भीतरगाँव के मन्दिर की उल्लेखनीय विशेषता इसमें शिखर का होना तथा ऊँचे चबूतरे पर निर्मित होना है।
  • मन्दिर की छत पिरामिडाकार है, इसकी बाहरी दीवारों को देवी-देवताओं की मूर्तियों से सजाया गया है।

बाँसखेड़ा

  • यह शाहजहाँपुर जनपद में गंगा नदी के तट पर स्थित है।
  • बाँसखेड़ा से 628 ई० का एक ताम्रपत्र मिला है, जिससे हर्षवर्द्धन की वंशावली, प्रशासनिक संरचना आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
  • इस अभिलेख में पुष्यभूति के अतिरिक्त हर्षवर्द्धन के समस्त पूर्वजों, राज्यवर्द्धन के सैनिक अभियानों, प्रशासनिक इकाइयों, अधिकारियों एवं दातव्य गाँवों पर लगने वाले करों आदि का वर्णन है।
  • इस अभिलेख में हर्ष के हस्ताक्षरों की अनुलिपि भी उत्कीर्ण है।

बदायूँ

  • बदायूँ सल्तनत काल में एक महत्त्वपूर्ण इक्ता था।
  • सुल्तान बनने से पूर्व इल्तुतमिश बदायूँ का ही इक्तेदार था।
  • सूफी सन्त शेख निजामुद्दीन औलिया बदायूँ के ही थे।
  • अकबर के समय का प्रमुख इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूनी भी बदायूँ का था।
  • दिल्ली लखनौती मार्ग का यह प्रमुख केन्द्र स्थल था। अतः इसका व्यापारिक आर्थिक महत्त्व था।
  • दोआब का प्रमुख क्षेत्र होने के कारण इसका कृषि उपज में भी महत्त्व स्थापित था।

मेरठ

  • मेरठ में राजपूत सरदार हरदत्त ने एक किला निर्मित कराया था।
  • महाभारतकालीन हस्तिनापुर नामक के ध्वंसावशेष इसी जनपद में पाये गये हैं।
  • बारहवीं शताब्दी के अन्त में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेरठ को दिल्ली सल्तनत का भाग बना लिया था।
  • फीरोजशाह तुगलक ने अशोक स्तम्भ लेख को मेरठ से उठवाकर दिल्ली में स्थापित कराया था।
  • 10 मई, 1857 को भारत के महान् विद्रोह का विस्फोट मेरठ से ही हुआ था।

महोबा

  • 831 ई० में चन्देल राजपूतों ने महोबा को अपनी राजधानी बनायी थी।
  • लोकगाथाओं आल्हा और ऊदल नामक दो भाइयों की बहुत प्रसिद्ध है जो यहीं के थे।
  • चन्देलों का राज्य जेजाकभुक्ति (जुझौती) के नाम से प्रसिद्ध था। चन्देलों द्वारा निर्मित स्थापत्य अवशेष इसकी ऐतिहासिकता प्रकट करते हैं।
  • तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में महोबा पर तुर्कों का आधिपत्य स्थापित हो गया था।
  • कीरत सागर, चन्देल कालीन स्मारक व गोखर पहाड़ी पर 24 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

राजघाट

सारनाथ

  • बौद्ध सम्प्रदाय एवं मौर्यकला से सम्बद्ध यह प्राचीन स्थल वाराणसी से 12 किमी उत्तर में स्थित है।
  • इसे पहले ऋषिपतन या मृगदाव के नाम से भी जाना जाता था।
  • बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध का पहला उपदेश अर्थात् धर्मचक्र प्रवर्तन सारनाथ में हुआ था।
  • मौर्य सम्राट अशोक ने सारनाथ में एक सिंह-शीर्ष प्रस्तर स्तम्भ बनवाया था। स्वतंत्र भारत के राज चिन्ह के रूप में इसी सिंह-शीर्ष को अपनाया गया है। यह मौर्य प्रस्तर कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • फाहियान ने सारनाथ की यात्रा की थी। ह्वेनसांग के समय सारनाथ थेरवाद का प्रमुख केन्द्र था।
  • मध्य युग में गहड़वाल शासक की रानी कुमारदेवी ने यहाँ विहार और संधाराम बनवाये थे।
  • 11वें जैन तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म सिंहपुरी (वर्तमान सारनाथ) में हुआ था।
  • धमेक स्तूप (गुप्तकालीन), चौखण्डी स्तूप (सम्भवतः अशोक निर्मित), मूलगंध कुटी विहार, धर्मराजिका स्तूप, सदूधर्म चक्र विहार (अवशेष), मृगदाव पक्षी विहार, जापानी-कोरियाई-थाई-चीनी बौद्ध मंदिर, जैन मंदिर व सारंगनाथ मंदिर आदि यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं।

संकिसा

  • फर्रुखाबाद के समीप वर्तमान एटा जनपद में आधुनिक वसंतपुर स्थित संकिसा (सांकाश्य) का उल्लेख महाभारत, बौद्ध साहित्य तथा चीनी यात्रियों के विवरणों में मिलता है।
  • ह्वेनसांग ने इसे कपित्थ नाम से पुकारा है।
  • महाजनपद युग में यह पांचाल महाजनपद का प्रमुख नगर था।
  • बौद्ध परम्परा के अनुसार संकिसा में भगवान बुद्ध इन्द्र व ब्रह्मा के साथ स्वर्ग में अपनी मां को उपदेश देने के बाद ही यहीं पर धरती पर आये थे।
  • बौद्ध ग्रन्थों में संकिसा एक महान् नगर के रूप में उल्लिखित है। इसकी नगर भित्ति के अवशेष अभी सुरक्षित हैं।
  • चीनी यात्री फाहियान ने भी संकिसा की यात्रा की थी। यहाँ पर अशोक द्वारा निर्मित एक लाट (गज स्तम्भ) है, जिस पर हाथी की आकृति उकेरी गयी है।
  • तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ को यहाँ ज्ञान प्राप्त हुआ था।

भाग – 4

उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर

सरायनाहर राय

  • सरायनाहर राय प्रतापगढ़ जनपद में स्थित है।
  • यहाँ उत्खनन में मध्यपाषाण युगीन सभ्यता के साक्ष्य मिले हैं।
  • इसी के समीप महदहा और दमदमा नामक मध्यपाषाण काल का स्थल है।
  • विस्तृत विवरण के लिये देखें — मध्यपाषाण काल

श्रावस्ती

  • श्रावस्ती जिले में स्थित वर्तमान सहेत-महेत नामक स्थान की पहचान प्राचीन श्रावस्ती के रूप में की जाती है।
  • ऐसा कहा जाता है कि इसे सूर्यवंशी राजा श्रावस्त ने बसाया था।
  • यहाँ से महाजनपद काल से लेकर गुप्तोत्तर युग तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • महाजनपद युग में यह कोशल महाजनपद की दूसरी राजधानी थी।
  • श्रावस्ती तीन प्रमुख व्यापारिक मार्गों (उत्तरापथ, दक्षिणापथ व मध्य पथ) के केन्द्र में स्थित होने के कारण आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक महत्व रखता था।
  • यह भगवान बुद्ध की प्रियनगरी थी। यहाँ उन्होंने ने 21 वर्षाकाल व्यतीत किया था।
  • यहाँ के साहूकार अनाथपिण्डक ने जेतवन-विहार बनवाकर भगवान बुद्ध को दान में दिया था।
  • तीसरे जैन तीर्थकर सम्भवनाथ का जन्म यहीं हुआ था। अतः यह जैन तीर्थ भी है।
  • आजीवक सम्प्रदाय के महान् प्रवर्तक मक्खलि गोसाल की जन्मस्थली यहीं थी।
  • यहाँ से कनिष्क के दो अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
  • फाहियान तथा हेनसांग ने अपने यात्रा-विवरणों में श्रावस्ती का विस्तृत उल्लेख किया है।
  • महेट-400 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत प्राचीन नगर का अवशेष जिस पर पक्की व कच्ची कुटी अवस्थित है।
  • सहेट-32 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत है। इस क्षेत्र में जेतवन विहार व कई अन्य मंदिर तथा स्तूप स्थित है। 
  • महेट-सहेट के अलावा स्वर्णगन्ध कुटी, आनन्दबोधि वृक्ष, अंगुलिमाल गुफा, थाई-लंकाई-बर्मी-चीनी-कोरियाई मंदिर, विश्व-शान्ति-घंटा व शोभनाच मंदिर आदि यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं।

विस्तृत विवरण के लिये देखें — श्रावस्ती

सोहगौरा

  • सोहगौरा गोरखपुर जनपद में स्थित है।
  • यहाँ से उत्तरी काली ओपदार मृद्माण्ड संस्कृति तथा मौर्योत्तर युग से सम्बद्ध अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से मौर्यकालीन सोहगौरा अभिलेख मिला है।
  • यहाँ से मौर्योत्तर काल के सिक्के भी मिले हैं।
  • कुषाणों के सिक्के तथा लौह वस्तुएँ भी प्राप्त हुई हैं।
  • यहाँ से अनाज भण्डारण के अवशेष भी मिले हैं।

सम्भल

  • सम्भल मध्यकालीन भारत का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है।
  • सल्तनत काल में यह महत्वपूर्ण इक्ता मानी जाती थी।
  • बाबर की मृत्यु के बाद इस इक्ता को हुमायूँ ने अपने भाई अस्करी को प्रदान कर दिया था।
  • बाबर ने यहाँ एक जामा मस्जिद का निर्माण कराया था।

सामूगढ़

  • यह स्थान आगरा से 16 किमी पूर्व में स्थित है।
  • 29 मई, 1658 ई० को यहाँ हुए युद्ध में औरंगजेब-मुराद की संयुक्त सेना ने दारा के नेतृत्व में शाही सेना को पराजित किया था।
  • युद्ध में विजय प्राप्त होने के उपरान्त औरंगजेब ने शाहजहाँ को आजीवन नजरबन्द कर लिया और अपने को बादशाह घोषित कर लिया था।

सिकन्दरा

  • आगरा के समीप स्थित सिकन्दरा मुगल बादशाह अकबर के मकबरे के कारण प्रसिद्ध है।
  • अकबर ने अपने जीवनकाल में इसका निर्माण प्रारम्भ कर दिया था परन्तु इसे 1613 ई० में जहाँगीर के काल में पूर्ण किया जा सका। इस मकबरे में बौद्ध स्थापत्य शैली का प्रभाव दृष्टिगत होता है।

हुलास

  • हुलास सहारनपुर जनपद में स्थित है।
  • यहाँ से उत्तर हड़प्पा युग से सम्बद्ध अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • उत्तरी काली ओपदार मृद्माण्ड संस्कृति के प्रमाण भी मिले हैं।
  • शुंगों और कुषाणों के भी हुलास में आवासीय बस्तियां थीं।

हुलासखेड़ा

  • हुलासखेड़ा लखनऊ जनपद में स्थित है।
  • यहाँ से कुषाणकाल से गुप्त युग तक के भौतिक अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • कुषाणकालीन अवशेषों में सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं- 200 मीटर लम्बी सड़क, सुनियोजित जल-निकासी की व्यवस्था, कार्तिकेय की स्वर्णप्रतिमा, चाँदी के आहत सिक्के और तीन कुषाण शासकों के ताम्र सिक्के।
  • हुलासखेड़ा से जो गुप्तकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं, उनमें दुर्ग के भग्नावशेष, ताँबे-चाँदी के सिक्के, गुप्तलिपि में लिखी कुछ मुहरें, हाथीदांत की कंधी, मोहर छापे, 17 घड़ों वाली लोहे की अण्डाकार वस्तुएँ प्रमुख हैं। 

भाग – 5

उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर

मथुरा

  • मथुरा की गणना सप्त महापुरियों में होती है।
  • वर्तमान मथुरा के समीप मधुवन में पहले मधु और उसके पुत्र लवण का शासन था। मधु के नाम पर मधुपुरी नगरी बसी थी।
  • भगवान श्रीराम के भाई शत्रुघ्न ने लवण को मारकर इस नगरी को यह नया नाम दिया था।
  • चंद्रवंश क्षत्रिय कुल में श्रीकृष्ण का जन्म यहीं हुआ था।
  • महाजनपद युग में यह शूरसेन महाजनपद की राजधानी और कुषाण काल में उनके पूर्वी साम्राज्य की राजधानी थी।
  • यहाँ से बैक्ट्रियाई-यूनानी मिनाण्डर के भी सिक्के प्राप्त हुए हैं।
  • प्राचीन काल में यह शाटक नामक वस्त्र का निर्माण केन्द्र था।
  • यहाँ विकसित शिल्प कला को मथुरा कला के नाम से जाना जाता है। मथुरा लगभग 300 वर्षों तक ‘मथुरा कला शैली’ का प्रमुख केन्द्र रहा।
  • इस केन्द्र को भगवान बुद्ध की प्रथम मूर्ति बनाने का श्रेय प्राप्त है।
  • 1670 ई० में औरंगजेब ने यहाँ के प्रसिद्ध कृष्ण मन्दिर (वीर सिंह बुन्देला द्वारा निर्मित) को ध्वस्त करवा दिया था।
  • औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह करके जाटों के नेता सूरजमल ने भरतपुर राज्य की स्थापना की थी और उसकी राजधानी मथुरा में ही बनायी थी।
  • कृष्ण जन्मभूमि मंदिर, द्वारिकाधीश मन्दिर और विश्राम घाट आदि यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
  • बौद्ध मत की सर्वास्तिवादी विचारधारा का जन्म व विकास स्थल होने के साथ ही श्वेताम्बर जैनियों के लिये भी मथुरा महत्त्वपूर्ण केन्द्र था।

वृन्दावन

  • वृन्दावन मथुरा से लगभग 9.6 किमी की दूरी पर स्थित है।
  • यहाँ भगवान कृष्ण ने अपनी बाल लीलाएँ की थीं।
  • यहाँ बहुत से मन्दिर हैं, जिनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध गोविन्द देव और रंगनाथ जी (द्रविण शैली, सफेद पत्थर) के मन्दिर हैं।
  • गोविन्द देव मन्दिर का निर्माण सन् 1590 में महाराज मानसिंह ने कराया था।
  • बिहारीजी का, राधा बल्लभ जी का, राधारमण जी का, श्री गोपीनाथ जी का, शाहजी का व अष्टसखी जी का मंदिर आदि यहाँ के अन्य प्रमुख मन्दिर हैं।
  • ‘निधिवन’ तथा ‘गिरिकुंज’ धार्मिक महत्त्व के करील कुंज हैं।
  • वंशीघाट, कालीदह और केशीघाट आदि यमुना के प्रमुख घाट हैं।
  • 2012 में यहाँ कृपालुजी द्वारा इटैलियन संगमरमर से एक भव्य मंदिर (प्रेम मंदिर) का निर्माण कराया गया है।

गोकुल

  • यह मथुरा से 10 किमी० की दूरी पर यमुना के उस पार है।
  • कंस के कारागार से कृष्ण जी को वसुदेव जी ने यहीं पर नंदजी के यहाँ पहुँचाया था।
  • यहाँ गोकुल नाथ मंदिर, नन्द किला, दाऊजी मंदिर, ठकुरानी घाट दर्शनीय हैं।
  • गोकुल से कुछ ही दूरी पर रावल स्थित है, जिसे श्री राधा जी का जन्म स्थल माना जाता है।
  • गोकुल से 4 किमी की दूरी पर महावन है, जिसे श्री कृष्ण का पालना माना जाता है।
  • यहाँ चौरासी खम्भा मंदिर, योगमाया मंदिर, ब्रह्माण्ड घाट आदि दर्शनीय हैं।

नन्दगाँव

  • मथुरा से 48 किमी० उत्तर-पूर्व में एक पहाड़ी की तलहटी में नन्दगाँव स्थित है।
  • यहीं पर नंद बाबा का घर था।
  • यहाँ पहाड़ी के ऊपरी भाग में एक विशाल मन्दिर है।

गोवर्धन

  • यह समतल से लगभग 100 फुट ऊँचा है, जो कि मथुरा से 23 किमी० की दूरी पर स्थित है।
  • गोवर्धन का परिक्रमा मार्ग लगभग 21-22 किमी० है। इस पथ का कुछ भाग राजस्थान में पड़ता है। इस पद पर मानसी गंगा, राधा कुंड, श्याम कुंड आदि कई पवित्र सरोवर व मंदिर हैं।

दाऊजी

  • यह स्थान मथुरा से लगभग 21 किमी० की दूरी पर है।
  • नगर के मध्य में भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ (दाऊजी) का प्रसिद्ध मन्दिर बना हुआ है।
  • यहाँ वर्ष में दो मेले लगते हैं। इनमें एक भाद्रपद के शुल्क पक्ष की षष्ठी को लगता है, जिसे देवछठ कहते हैं तथा दूसरा अग्रहायण की पूर्णिमा को लगता है।

बरसाना

  • बरसाना गाँव गोवर्धन से 24 किमी० उत्तर में कोसी (आगरा-दिल्ली सड़क पर) के 16 किमी० दक्षिण में स्थित है।
  • बरसाना का मूल नाम ब्रह्मासारिणी था। यह स्थान लाड़ली जी (राधाजी का स्थानीय नाम) के सम्मान में निर्मित मन्दिरों से सुशोभित है।
  • यह एक पहाड़ी की ढाल पर स्थित है।
  • यहाँ कृपालुजी द्वारा निर्मित रंगीली महल नामक मंदिर भी प्रसिद्ध है।
  • यहाँ प्रतिवर्ष राधाष्टमी के अवसर पर मेला लगता है।
  • यहाँ प्रतिवर्ष होलिकोत्सव पर लठमार होली का आयोजन किया जाता है।

बिठूर

  • बिठूर कानपुर से 24 किमी० दूर गंगा के किनारे स्थित है।
  • इसे प्राचीनकाल में ब्रह्मवर्त तीर्थ कहा जाता था।
  • रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं पर स्थित था।
  • यहीं पर भगवान राम के पुत्रों लव और कुश का जन्म हुआ था।
  • कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ पर मेला लगता है।
  • यह स्थल महान क्रांतिकारी पेशवा नाना साहब, तांत्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई से भी सम्बन्धित है।
  • झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बचपन में यहाँ रही थीं।

विन्ध्याचल

  • मिर्जापुर जिले में स्थित इस स्थान पर माँ विन्ध्यवासिनी देवी का पौराणिक मन्दिर है।
  • एक पौराणिक कथा के अनुसार जब माता सती ने अपने शरीर को अपने पिता द्वारा कराये जा रहे यज्ञ में जलाकर होम कर दिया था और भगवान शंकर सती के शरीर को लेकर जा रहे थे तो उनमें से कुछ अंग इस स्थान पर गिर गये थे।
  • यहाँ पर प्रतिवर्ष दोनों नवरात्रि में मेला लगता है।

सरधना

  • यह मेरठ से 30 किमी० पश्चिमोत्तर में स्थित प्राचीन नगर है।
  • यहाँ दक्षिण एशिया का अद्भुत चर्च है। इस चर्च को बेगम समरू ने बनवाया था।
  • नवम्बर माह के द्वितीय रविवार को यहाँ विशाल मेला लगता है। 

शृंगीरामपुर

  • फर्रुखाबाद जिले में गंगा के दक्षिणी किनारे पर बसे शृंगीरामपुर में शृंगी ऋषि का एक मन्दिर है।
  • कहा जाता है कि ऋषि ने अपने सिर पर लगे सींगों को हटाने के लिए यहाँ तपस्या की थी। तपस्या के बाद सींग गिर गये।
  • प्रतिवर्ष इस स्थान पर दो मेले-एक कार्तिक पूर्णिमा को तथा दूसरा दशहरे पर लगते हैं।

भाग – 6

उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर

शृंगवेरपुर

  • यह स्थान प्रयागराज नगर से लगभग 45 किमी दूर गंगा के बायें तट पर स्थित है।
  • अपनी वनवास यात्रा के दौरान भगवान श्रीराम ने यहाँ के राजा और मित्र निषाद राज गुह के कहने पर एक रात विश्राम किया था। दूसरे दिन भगवान राम ने गंगा घाट के नाविक निषाद के प्रार्थना करने पर उतरवाई के बदले गंगा जल द्वारा अपने पैर धुलवाया और प्रयाग को प्रस्थान किया था।
  • रामचौराघाट, हनुमान मंदिर, शृंगी मंदिर आदि यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं।

नैमिषारण्य

  • सीतापुर शहर से लगभग 21 किमी० दूर गोमती नदी तट पर स्थित है।
  • इस स्थान के बारे में यह कथा प्रचलित है कि यहाँ ब्रह्मा जी द्वारा शौनक ऋषि को दिया गया चक्र चलते-चलते इसी स्थान पर जमीन पर गिरा और पृथ्वी में समा गया था।
  • इस स्थान को 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि और 30 हजार तीर्थों का स्थान कहा जाता है।
  • फाल्गुन मास में लोग यहाँ 84 कोस की परिक्रमा करते हैं।
  • यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- चक्रतीर्थ, भूतेश्वरनाथ मंदिर, सूतगद्दी, व्यास गद्दी, चक्रनारायण मंदिर, ललितादेवी मंदिर, पंच प्रयाग, बद्रीनारायण मंदिर, हनुमानगढ़ी, पंच पांडव मंदिर व पांडव किला, पुराण मंदिर, मिश्रिख-दधीचि कुण्ड-हत्याहरण तीर्थ, रुद्रावर्त व देव-देवेश्वर आदि।
  • यहाँ स्थित चक्रतीर्थ (गोलाकार जल कुण्ड) को पृथ्वी का सर्वोपरि तीर्थ कहा जाता है।
  • मान्यता है कि व्यास गद्दी नामक स्थल पर व्यासजी ने बेद को चार भागों में विभाजित किया और पुराणों की रचना की थी।
  • सूत गद्दी नामक स्थल पर सूत ऋषि और शौनक आदि ऋषियों का संवाद हुआ था। के बारे
  • हनुमानगढ़ी नामक स्थान में कहा जाता है कि हनुमान जी अहिरावण से राम-लक्ष्मण को मुक्त कराकर पाताल तोड़कर यहीं प्रकट हुए थे
  • ललितादेवी नैमिषारण्य की अधिष्ठात्री देवी । इनके आस-पास अनेक मंदिर व हैं मठ हैं ।
  • नैमिषारण्य से 10 किलोमीटर दूरी पर मिश्रिख स्थित है। कथा है कि यहाँ पर महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थि दान करने के पूर्व समस्त तीर्थों के जल से स्नान किया था, जिससे इसका नाम मिश्रित अथवा मिश्रिख पड़ा।
  • यहाँ दधीचि कुण्ड, महर्षि दधीचि आश्रम और सीताकुण्ड दर्शनीय हैं।
  • नैमिषारण्य से 12 किमी० की दूरी पर हत्याहरण तीर्थ स्थित है। मान्यता है कि यहाँ हत्या रूपी पाप से मुक्ति मिलती है।

ददरी

  • बलिया जिले में स्थित यह स्थल ब्रह्मा जी के पुत्र भृगुजी के शिष्य दरदर मुनि की तपोभूमि रही है।
  • प्रत्येक वर्ष इस स्थान पर कार्तिक पूर्णिमा से मेला लगता है, जिसमें पशुओं का भारी मात्रा में क्रय विक्रय किया जाता है।
  • यहाँ भृगु ऋषि का एक मंदिर है।

गोला-गोकर्णनाथ

  • प्रदेश के लखीमपुर खीरी से लगभग 35 किमी० दूर स्थित गोला-गोकर्णनाथ में एक विशाल झील और उसके निकट भगवान गोकर्णनाथ महादेव का एक विशाल तथा प्राचीन मन्दिर है।
  • महायोगी गोरक्षनाथ जी द्वारा खिजड़ी प्रसाद (खिचड़ी प्रसाद) वितरण स्थल पर स्थापित मन्दिर तथा नाथ सम्प्रदाय का सिद्धपीठ यहीं पर है।

शाकम्भरी देवी

  • सहारनपुर से 41 किमी० की दूरी पर चारों ओर पहाड़ियों से घिरा शाकम्भरी देवी का मन्दिर एक पवित्र स्थान है।
  • प्रत्येक वर्ष नवरात्रि में इस स्थान पर विशाल मेला लगता है।

हस्तिनापुर

  • यह नगरी मेरठ से 35 किमी० दूर स्थित है।
  • इसके पुरातात्त्विक स्थलों से मृदभाण्ड संस्कृतियों से लेकर मौर्योत्तर युग तक के साक्ष्य मिले हैं।
  • इसकी स्थापना हस्तिन नामक राजा ने की थी।
  • महाभारत युग में यह कौरवों की राजधानी थी।
  • मौर्योत्तर युग में (शुंग काल के) अवशेष, प्रस्तर प्रतिमाएँ, मथुरा के दत्तवंशी शासकों, कुषाणों तथा यौधेयों की मुद्राएँ यहाँ से प्राप्त हुई हैं।
  • कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ बड़ा मेला लगता है।
  • यह एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ भी है।
  • जैन धर्मावलम्बियों के लिये यह काशी है।
  • 16वें, 17वें व 18 वें तीर्थंकरों (क्रमशः शांतिनाथ, कुन्थुनाथ व अरहनाथ) का जन्म व दीक्षा यहीं हुआ था।
  • आदि तीर्थंकर ऋषभदेव जी को राजा श्रेयांस ने यहीं इक्षुरस का दान दिया था। इसलिए इसे ‘दानतीर्थ’ भी कहा जाता है।
  • यहाँ से कुछ ही दूरी पर स्थित भसूमा गाँव में कई प्राचीन जैन प्रतिमाएँ हैं।
  • विष्णु पुराण के अनुसार हस्तिनापुर के गंगा नदी के प्रवाह में बह जाने के कारण कुरुवंशी राजा निचक्षु ने वहाँ से आकर कौशाम्बी को बसाया था।

विस्तृत विवरण के लिये देखें – हस्तिनापुर

देवबन्द

  • सहारनपुर में स्थित देवबन्द में एक प्रसिद्ध कलात्मक व धार्मिक दुर्गा का मन्दिर है। मन्दिर के पास ही देवी कुण्ड है जो श्रद्धालुओं को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है।
  • यहाँ अरबी भाषा से सम्बद्ध एक संस्थान है जिसका नाम दारूल उलूम है।

भाग – 7

उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर

सोरों या शूकर क्षेत्र

  • कासगंज जनपद में स्थित सोरों क्षेत्र देश के प्रमुख तीर्थों में से एक है।
  • पुराणों के अनुसार विश्वनिर्माण की प्रक्रिया इसके निर्माण से प्रारम्भ हुई थी।
  • यहाँ एक प्राचीन मन्दिर है, जिसमें श्री वाराह भगवान की एक विशाल प्रतिमा है।
  • मन्दिर के पास ही वाराह घाट है, जिसे हरिवदी भी कहते हैं। यह वास्तव में एक बड़ी झील है, जिसके चारों ओर मन्दिर और घाट बने हुए हैं।
  • मन्दिरों तथा दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं-श्री योगेश्वर, श्री सीताराम और श्री बटुकेश्वरनाथ के मन्दिर तथा प्रयागराज जैसा अक्षयवट आदि। पृथ्वी पर गंगा को लाने के लिए राजा भागीरथ ने यहाँ तपस्या की थी। उनके नाम पर यहाँ एक मन्दिर है।

गढ़‌मुक्तेश्वर

  • मेरठ से 42 किमी० दूर हापुड़ जनपद में गंगा के दाहिने तट पर स्थित गढ़मुक्तेश्वर प्राचीन काल में हस्तिनापुर नगर का एक मोहल्ला था। यहाँ गढ़मुक्तेश्वर शिव का मन्दिर है।
  • मन्दिर के पास ही झारखंडेश्वर नाम का प्राचीन शिवलिंग है।
  • कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है।

मगहर

  • सन्त कबीरनगर जिले में स्थित मगहर सन्त कबीर का निधन स्थल है, जो हिन्दू- मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
  • यह कबीर पन्थियों का तीर्थ स्थल है।
  • ध्यातव्य है कि यहाँ कबीर दास की समाधि स्थल के करीब ही उनके पुत्र कमाल की भी समाधि है।

शुक्रताल

  • मुजफ्फर नगर जनपद में स्थित इस स्थल पर वट वृक्ष के नीचे बैठकर महर्षि शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाई थी।
  • कार्तिक में पूर्णमासी व एकादशी पर हजारों भक्त दर्शन के लिये यहाँ आते हैं।
  • यहाँ प्रायः प्रत्येक मास में भागवत सप्ताह का आयोजन होता रहता है।
  • यहाँ अनेक मन्दिर हैं।

गोरखपुर

  • पूर्वी उ०प्र० का यह नगर राप्ती नगर के बायें तट पर बसा है।
  • बाबा गोरखनाथ मन्दिर यहाँ का मुख्य दर्शनीय स्थल है। यह महायोगी गोरखनाथ की तप स्थली व नाथ सम्प्रदाय की सिद्धपीठ भी है।
  • यहाँ से भारत का प्रमुख धार्मिक मासिक पत्र ‘कल्याण’ प्रकाशित होता है जो धार्मिक पुस्तकों के प्रसिद्ध प्रकाशक ‘गीता प्रेस गोरखपुर’ का प्रकाशन है।

काकण्डी

  • यह स्थान देवरिया नगर से दक्षिण-पूर्व दिशा में है।
  • यहाँ 9वें जैन तीर्थंकर पुष्पदंत का जन्म हुआ था।

पावानगर

  • यह स्थान कुशीनगर जिले में स्थित हैं।
  • जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी ने 468 ई०पू० में इसी स्थान पर अपने शरीर का त्याग किया था।
  • प्रत्येक कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ निर्वाण महोत्सव मनाया जाता है।

बहराइच

  • यहाँ पर एक मुस्लिम आक्रांता सैयद सालार मसूद की दरगाह है।
  • यह लुटेरा महमूद गजनवी के साथ भारत में आया था।
  • बहराइच के प्रतापी राजा महाराज सुहेलदेव ने इसे युद्ध में बुरी तरह हरा दिया। घायल व लाचार अवस्था में उसकी मृत्यु जहाँ हुई वहीं उसके अनुयायी उसे दफ़ना दिये जो अब उसकी दरगाह के रूप में प्रसिद्ध है।
  • महाराज सुहेलदेव और इस लुटेरे के युद्ध को ‘बहराइच युद्ध’ के नाम से जाना जाता है। यह युद्ध 1034 ई० के आसपास हुआ था।
  • मुहम्मद बिन तुग़लक़ पहला सुल्तान था जो इसकी दरगाह पर गया था।
  • धीरे-धीरे यह गाजी और संत के रूप में प्रसिद्ध होने लगा।
  • वर्तमान में यहाँ के मेले में प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में मुस्लिम एवं हिन्दू अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु आते हैं।

चित्रकूट धाम

  • प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित चित्रकूट वर्तमान में एक जनपद और मण्डल भी है।
  • वनवास काल में अपनी भार्या सीता जी और अनुज लक्ष्मण जी के साथ भगवान श्रीराम ने 12 वर्ष से कुछ अधिक समय तक यही निवास किया था।
  • जनश्रुति के अनुसार यहाँ महर्षि वाल्मीकि भी रह रहे थे।
  • यहाँ प्रवाहित मन्दाकिनी नदी जिसे पयस्विनी भी कहते हैं, के बायें तट पर राघवप्रयाग, कैलाश घाट, रामघाट व घृतकल्प घाट आदि 24 घाट तथा अनेक प्राचीन मंदिर हैं।
  • रामघाट से लगभग 3 किमी० की दूरी पर कामदगिरि पर्वत व कामतानाथ मंदिर है।
  • उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में फैले कामदगिरि पर्वत का परिक्रमा पथ 5.2 किमी० है और इस पर छोटे-बड़े लगभग 300 मंदिर हैं।
  • रामघाट से लगभग 3 किमी० की दूरी पर सीतापुर है, जहाँ रामायण मेला आयोजित किया जाता है।
  • रामघाट से लगभग 4 किमी० पूर्व पहाड़ी पर हनुमान धारा मंदिर है।
  • रामघाट से लगभग 8 किमी० दूरी पर भरतकूप है।
  • रामघाट से लगभग 2.0 किमी० की दूरी पर मध्य प्रदेश में जानकी कुण्ड, 4 किमी० की दूरी पर मध्य प्रदेश में फटिक शिला, 6 किमी० की दूरी पर मध्य प्रदेश में सती अनुसुइया व महर्षि अत्रि का आश्रम तथा मन्दराचल पर्वत है।
  • राम घाट से 10 किमी० की दूरी पर मध्य प्रदेश में ही गुप्त गोदावरी नामक स्थल है।
  • कार्तिक अमावस्या (दीपावली) को यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है।

भाग – ८

उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर

राजापुर

  • गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर चित्रकूट से 38.4 किमी० की दूरी पर स्थित है।
  • यहाँ तुलसी स्मारक समिति की ओर से एक सुन्दर स्मारक का निर्माण हुआ है।
  • गोस्वामी जी की लगभग एक दर्जन रचनाएँ ज्ञात हैं जिसमें से ‘श्रीरामचरितमानस’ हिन्दी भाषा ही नहीं अपितु विश्व की समस्त भाषाओं में अब तक लिखे गये महाकाव्यों में अपना स्थान रखती है।

कन्नौज

  • प्राचीन काल में कान्यकुब्ज के नाम से प्रसिद्ध था और इसका एक अन्य नाम महोदय नगर भी मिलता है।
  • कन्नौज का उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य, कई पुराणों, महाभारत के साथ-साथ टॉलेमी के ‘द ज्योग्राफी’ एवं चीनी यात्रियों (फाहियान, हेनसांग) के यात्रा-विवरणों से प्राप्त होता है।
  • कन्नौज में सबसे प्राचीन बस्ती के साक्ष्य काले मद्भाण्ड युग से प्राप्त हुए हैं।
  • हर्षवर्द्धन के समय कन्नौज की समृद्धि व महत्त्व शिखर पर था।
  • ह्वेनसांग ने कन्नौज के वैभव की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उस समय कन्नौज ‘नगरमहोदय श्री’ कहलाता था।
  • हर्षकाल में कन्नौज में अनेक संघालय थे, जिसमें लगभग दस हजार भिक्षु रहते थे। इसके अलावा लगभग दो सौ देवी-देवताओं के मंदिर भी थे।
  • हर्षोत्तर युग में हुए त्रिदलीय संघर्ष का कारण इस नगर का वैभव व आर्थिक राजनीतिक महत्ता ही थी। इस त्रिकोणीय संघर्ष में गुर्जर-प्रतिहारों, पालों व राष्ट्रकूटों ने भाग लिया था। अंततः गुर्जर-प्रतिहार इसमें सफल हुए।
  • मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय कन्नौज का शासक जयचन्द गहड़वाल था।
  • यहाँ हिन्दू व बौद्ध दोनों प्रकार की शिक्षा-विधि प्रचलित थी।
  • यहाँ के बौद्ध महाविद्यालय में चीनी यात्री हेनसांग ने अध्ययन-अध्यापन किया था। राजशेखर, भवभूति, वाण आदि विद्वान कन्नौज से सम्बद्ध रहे थे।
  • यह नगर छठी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक भारत में सत्ता व शक्ति का केन्द्र रहा और उत्सवों की रंगस्थली था।
  • पुरातत्व, कला और संस्कृति का केन्द्र कन्नौज अपने इत्र की सुवासित गंध के लिये भी प्रसिद्ध है।
  • यहाँ हजारों वर्ष पुराने खण्डहर, मंदिर और मस्जिद पर्यटकों के आकर्षण के केन्द्र हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं- क्षेमकली देवी का मंदिर, पद्मावती सती का मंदिर, जयचन्द्र का किला आदि।

आगरा

  • यमुना के दायें तट पर स्थित इस नगर की स्थापना 1504 ई० में सुल्तान सिकन्दर लोदी ने की थी। उसने इसे सामारिक महत्त्व का स्थान घोषित कर सैनिक-राजनैतिक केन्द्र बनाया था।
  • मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने इसे अपनी राजधानी बनाया, जो कि औरंगजेब के समय तक रहा।
  • अकबर ने यहाँ किला निर्मित कराकर अनेक भव्य भवनों का निर्माण कराया।
  • नूरजहाँ ने आगरा में अपने पिता एत्मादुद्दौला का शानदार मकबरा निर्मित कराया था।
  • शाहजहाँ ने जहाँगीरी एवं अकबरी महल, मोती मस्जिद तथा स्थापत्यकला के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक ताजमहल का निर्माण कराया।
  • मुगलकाल में आगरा मुस्लिम शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ शिया संत काजी नूरुल्ला की मजार है, जो जहाँगीर के शासनकाल में ईरान से आये थे। अतएव भारत, ईरान और इराक के मुसलमानों के लिये आगरा एक तीर्थ स्थान बन गया है।
  • आगरा शहर के विकास को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘आगरा महायोजना 2021’ तैयार की गयी है और इसको नगर योजना एवं विकास अधिनियम के अंतर्गत स्वीकृति प्राप्त है। इसके अंतर्गत आगरा के पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए विभिन्न नगरीय क्रियाओं के लिए 20016.97 हेक्टेयर भूमि का उपयोग किया जा रहा है।
  • आगरा शहर से 80 किमी० की दूरी पर स्थित शौरीपुर में 22 वें जैन तीर्थंकर श्री नेमीनाथ का जन्म हुआ था।

बाराबंकी

  • बाराबंकी में लोधेश्वर महादेव, कुंतेश्वर महादेव, कोटवाधाम आदि प्रसिद्ध तीर्थ स्थान हैं।
  • कहा जाता है कि यहाँ के महादेव की स्थापना स्वयं महाराज युधिष्ठिर ने की थी।
  • किन्तूर ग्राम में महारानी कुन्ती द्वारा स्थापित कुन्तेश्वर मन्दिर है।
  • इसी जनपद के ग्राम बदोसराय में हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक सलामत शाह का मजार है।
  • देवा शरीफ (बाराबंकी) बाराबंकी से लगभग 12 किमी० दूर स्थित देवा में प्रसिद्ध सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार है। उनके वार्षिक उर्स के अवसर पर कार्तिक में एक बड़ा मेला लगता है।

बाँसा

  • यह बाराबंकी शहर से 16 किमी. दूर है।
  • यह स्थल सूफी संत सैय्यद शाह अब्दुल रज्जाक की दरगाह के कारण प्रसिद्ध है।

देवीपाटन

  • देवीपाटन बलराम जनपद में स्थित है।
  • यहाँ तुलसीपुर रेलवे स्टेशन के निकट पाटेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है।
  • कहा जाता है कि यहाँ पर देवी की स्थापना महाराज विक्रमादित्व ने की थी।
  • यहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है।

कम्पिल या काम्पिल्य

  • यह फर्रुखाबाद जनपद में स्थित है।
  • विष्णु पुराण, जातक, रामायण तथा उत्तराध्ययन सूत्र एवं अनेक अन्यान्य ग्रंथों में इस नगरी का उल्लेख विभिन्न रूपों, प्रसंगों तथा परिवेशों में किया गया है।
  • महाजनपद युग में यह दक्षिणी पांचाल जनपद की राजधानी थी।
  • गंगा के दायें तट पर स्थित यह तीर्थ स्थान जैन धर्म के तेहरवें तीर्थंकर भगवान विमलनाथ, महासती द्रौपदी और गुरु द्रोणाचार्य की जन्मस्थली है।
  • द्रौपदी का स्वयंवर यहीं हुआ था।
  • यहाँ के प्रसिद्ध स्वानों में – राजा द्रुपद किला, कपिलमुनि का आश्रम, कल्पेश्वरनाथ मंदिर, रामेश्वरधाम मंदिर, जैन श्वेताम्बर मंदिर, जैन दिगम्बर मंदिर, भेधकुण्ड, द्रौपदी कुण्ड, मुगलघाट (औरंगजेब) आदि मुख्य है।

कुशीनगर

  • कुशीनगर (कुशीनारा) गोरखपुर से लगभग 45 किमी० पूर्व वर्तमान कसया नगर के पास स्थित है।
  • इस नगर का पुराना नाम बसेया था।
  • महाजनपद काल में यह मल्ल गणराज्य की राजधानी थी।
  • भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण (483 ई०पू०) यहीं हुआ था।
  • प्राचीन काल में यह नगर श्रावस्ती-वाराणसी मार्ग पर स्थित होने के कारण आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र रहा।
  • सम्राट अशोक ने यहाँ कई स्तूपों व विहारों का निर्माण कराया था।
  • कुमारगुप्त के समय हरिबल ने भी यहाँ पर स्तूप व विहार बनवाये थे।
  • यहाँ खुदाई में एक प्राचीन निर्वाण स्तूप मिला है।
  • यहाँ का सबसे अधिक उल्लेखनीय मंदिर महापरिनिर्वाण मंदिर है, जिसमें 5वीं शताब्दी की 6.10 मी० लम्बी शयन मुद्रा में बुद्ध की विशाल प्रतिमा है। वर्तमान समय में इसके ऊपर धातु की एक पतली चादर मढ़ी हुई है।
  • इस स्थान के समीप ही बुद्ध की साढ़े दस फुट ऊँची एक और प्रतिमा सुरक्षित है, जो मध्यकाल की है। इसे माथाकुंअर कहते हैं। यह मूर्ति गया के काले पत्थर से बनी है।
  • यहाँ 15 मी० उँची रामाभर स्तूप (मुकुट बन्धन चैत्य), वाट-थाई मंदिर, राजकीय बौद्ध संग्रहालय, लंकाई-चीनी- जापानी-वर्मी-कोरियाई मंदिर, बिड़ला बुद्ध मंदिर, शिव मंदिर, राम-जानकी मंदिर आदि दर्शनीय है।
  • बुद्ध पूर्णिमा से यहाँ मेला लगता है जो लगभग डेढ़ माह तक चलता है।
  • जापान की सहायता से यहाँ एक महत्वाकांक्षी ‘मैत्रेय परियोजना’ चलायी जा रही है। इस परियोजना के तहत कुशीनगर का विकास एक अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध धर्मस्थल के रूप में किया जा रहा है। इसी परियोजना के तहत यहाँ बुद्ध की 500 फुट ऊँची प्रतिमा स्थापित की जानी है, जो विश्व की सबसे ऊँची होगी।

लखनऊ

  • जनश्रुति है कि इस नगर को भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण ने बसाया था और इसका प्राचीन नाम लक्ष्मणपुरी था।
  • यहाँ एक पुराना टीला है, जो लक्ष्मण टीला के नाम से प्रसिद्ध है।
  • लखनऊ को सबसे अधिक प्रसिद्धि उत्तर मुगलकाल में तब मिली, जब अवध के सुबेदार सआदत खाँ ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की। नवाब आसफउद्दौला के समय अवध की राजधानी फैजाबाद से लखनऊ लाई गयी और तब से वाजिद अली शाह (1856 ई०) तक यह सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा।
  • 1857 के विद्रोह में वीरांगना बेगम हजरतमहल ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया था।
  • यहाँ के नवाबों ने अनेक भवनों-दरवाजों आदि का निर्माण कराया।
  • आसफुद्दौला ने रूमी दरवाजा, इमामबाड़ा, आसफी मस्जिद, दौलतखाना, रेजीडेंसी, बिबियापुर कोठी और चौक बाजार का निर्माण करवाया था।
  • गाजीउद्दीन हैदर ने शाहनजफ, मोतीमहल, मुबारक मंजिल, सआदत अली और खुर्शीदजादी के मकबरे तथा नगर के दक्षिण में एक नहर बनवायी।
  • मोहम्मद अली शाह ने हुसैनाबाद का इमामबाड़ा, बड़ी जामा मस्जिद, हुसैनाबाद बारादरी आदि इमारतें बनवाईं।
  • प्रसिद्ध छतर मंजिल का निर्माण नसीरुद्दीन हैदर ने करवाया, जिसमें अब सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थित है।
  • स्वतंत्रता संग्राम सैनिकों के सम्मान में यहाँ बनवाया गया शहीद स्मारक, चिड़ियाघर और नेशनल बोटेनिकल गार्डेन भी दर्शनीय है।
  • यह नगर शिया सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है।
  • यहाँ प्रसिद्ध मुस्लिम संत शाहमीना की मजार है। जहाँ मुस्लिम महीने ‘रजब’ के प्रथम गुरुवार को वार्षिक उर्स मनाया जाता है। हिन्दू और मुसलमान, दोनों ही उनके भक्त हैं। बसन्त पंचमी को आयोजित ‘बसन्त की नौचन्दी’ में दोनों ही भाग लेते हैं।

Ancient Cities of Uttar Pradesh

History, Civilization and Culture of UP

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top