लोप विराम को ‘वर्जन-चिह्न’ भी कहते हैं। लोप विराम से कुछ अंश के लुप्त रहने का बोध होता है और किसी अवतरण का कोई अंश अप्रकाशित रखने में अथवा कुछ ही अंश लिखकर सम्पूर्ण का बोध कराने में इस विराम का प्रयोग करते हैं। लोप चिह्न सदैव तीन के गुणे में लगते हैं; जैसे—
- जिसके बारे में कुछ कहा जाए, … … उसे कहते हैं। (उद्देश्य, विधेय, क्रिया)
- विधानवाचक वाक्यों को … … भी कहते हैं। (विधिवाचक, निश्चयवाचक, इच्छावाचक)
- संयुक्त वाक्य के दोनों उपवाक्य … … होते हैं। (आश्रित, मुख्य, गौण)
- जिस वाक्य का एक उपवाक्य मुख्य हो और दूसरा उपवाक्य गौण हो, … … उसे कहते हैं। (मिश्र, संयुक्त, सरल)
- विशेषण उपवाक्य मुख्य उपवाक्य के … … की विशेषता बताते हैं। (क्रियाविशेषण, क्रियापद, संज्ञापद)
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- पाद टिप्पणी चिह्न / तारक चिह्न — (*)