वर्तनी

भूमिका

लिखने की रीति (ढंग) को ‘वर्तनी’ या ‘अक्षरी’ या ‘हिज्जे’ कहते हैं। इसको आँग्ल भाषा में (spelling) कहते हैं। किसी भी भाषा की समस्त ध्वनियों को सही ढंग से उच्चरित करने के लिए ही वर्तनी की एकरूपता स्थिर की जाती है। जिस भाषा की वर्तनी में अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी, उस भाषा की वर्तनी उतनी ही समर्थ समझी जायेगी। अतः, वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनियों के उच्चारण से है।

वर्तनी और उच्चारण का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। हिन्दी भाषा के वैज्ञानिक होने का एक प्रमाण यह भी है कि “इसमें जो बोला जाता है वही लिखा जाता है और जो लिखा जाता है वही बोला जाता है।” यदि उच्चारण अशुद्ध होगा तो वर्तनी अशुद्ध हो जायेगी और यदि वर्तनी अशुद्ध है तो उच्चारण भी अशुद्ध होगा।

वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धि से कई बार अर्थ बदल जाते हैं अथवा शब्द वह अर्थ प्रेषित नहीं कर पाते जिसकी आवश्यकता है; उदाहरणार्थ— अंगना और अँगना, क्षात्र और छात्र, बहन और वहन, बाद और वाद, शंकर और संकर आदि।

वर्तनी के महत्त्वपूर्ण नियम

भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय की ‘वर्तनी- समिति’ ने १९६२ में कुछ उपयोगी और सर्वमान्य नियम दिये, जो अधोलिखित हैं—

  • हिन्दी के विभक्ति-चिह्न, सर्वनामों को छोड़ शेष सभी प्रसंगों में, शब्दों से अलग लिखे जाते हैं। जैसे— राम ने कहा; स्त्री को। सर्वनाम के साथ संयुक्त करके लिखे जाते हैं; यथा- आपको, उसने, मुझसे, तुमसे, किसपर, हममें।
    • अपवाद—
      • यदि सर्वनाम के साथ दो विभक्ति-चिह्न हों, तो उनमें पहला सर्वनाम से मिलाकर लिखते हैं और दूसरा पृथक् लिखा जाता है। यथा— उसके लिए; इनमें से।
      • सर्वनाम और उसकी विभक्ति के बीच ‘ही’, ‘तक’ आदि अव्यय का निपात हो, तो विभक्ति पृथक् लिखी जाती है। जैसे— आप ही के लिए; मुझ तक को।
  • संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएँ पृथक् लिखी जाती हैं। जैसे— पढ़ा करता है; आ सकता है; जा सकता है।
  • ‘तक’, ‘साथ’ आदि अव्यय पृथक् लिखे जाते हैं। जैसे— आपके साथ; यहाँ तक।
  • पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ क्रिया से मिलाकर लिखा जाता है। जैसे— खाकर, मिलाकर, रोकर, सोकर।
  • द्वन्द्वसमास में पदों के बीच योजकचिह्न (‘-’) लगाकर लिखा जाता है। जैसे— राम-लक्ष्मण, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, पति-पत्नी, भाई-बहन, माता-पिता, दिन-रात आदि।
  • तत्पुरुषसमास में योजकचिह्न का प्रयोग केवल वहीं किया जाता है, जहाँ उसके अभाव से भ्रम होने की सम्भावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे— भू-तत्त्व।
  • ‘सा’, ‘जैसा’ आदि सारूप्यवाचकों के पूर्व योजकचिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे— तुम-सा, राम-जैसा, चाकू-से तीखे।
  • ‘ये’ और ‘ए’ का प्रयोग: इन दोनों का उच्चारण-भेद इस तरह हैं—
    • ये = य्+ए। श्रुतिरूप। तालव्य अर्द्धस्वर (अन्तःस्थ) + ए।
    • ए = अग्र अर्द्धसंवृत दीर्घ स्वर।

‘ये’ और ‘ए’ का प्रयोग अव्यय, क्रिया तथा शब्दों को ‘बहुवचन’ बनाने के लिए किया जाता है। ये प्रयोग क्रियाओं के भूतकालिक रूपों में होते हैं। लोग इन्हें कई प्रकार से लिखते हैं। जैसे- आई-आयी, आए-आये, गई-गयी, गए-गये, हुवा-हुए-हुवे इत्यादि। एक ही क्रिया की दो वर्तनी/अक्षरी वर्तमान में भी प्रचलित है। इस सम्बन्ध में कुछ अवश्यक नियम बनने चाहिए। कुछ नियम इस प्रकार स्थिर किये जा सकते हैं—

    • जिस क्रिया के भूतकालिक पुल्लिंग एकवचन रूप के अन्त में ‘या’ आता है, उसके बहुवचन का रूप ‘ये’ और तदनुसार एकवचन स्त्रीलिंग में ‘यी’ और बहुवचन में ‘यीं’ का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरणार्थ- ‘गया-आया’ का स्त्रीलिंग में ‘गयी-गयी’ होगा, ‘गई’ और ‘आई’ नहीं। इसी तरह, बहुवचन के रूप ‘गये-आये’ होंगे, ‘गए-आए’ नहीं। इसी रीति से अन्य क्रियाओं के रूपों का निर्धारण किया जा सकता है।
    • जिस क्रिया के भूतकालिक पुल्लिंग एकवचन के अन्त में ‘आ’ आता है उसके पुल्लिंग, बहुवचन में ‘ए’ होगा और स्त्रीलिंग एकवचन में ‘ई’ तथा बहुवचन में ‘ईं’। ‘हुआ’ का स्त्रीलिंग एकवचन ‘हुई’; बहुवचन ‘हुईं’ और पुल्लिंग बहुवचन ‘हुए’ होगा; ‘हुये-हुवे’, ‘हुयी-हुये’ इत्यादि नहीं लिखना चाहिए।
    • दे, ले, पी, कर— इन चार धातुओं को ह्रस्व इकार कर, फिर दीर्घ करने पर और ‘इए’ प्रत्यय लगाने पर उनकी विधि क्रियाएँ इस प्रकार बनती है–

दे (दि) + ज् + इए = दीजिए

ले (लि) + ज् + इए = लीजिए

पी (पि)  + ज् + इए = पीजिए

कर (कि) + ज् + इए = कीजिए

    • अव्यय को पृथक् रखने के लिए ‘ए’ का प्रयोग करना चाहिए। जैसे— इसलिए, चाहिए। सम्प्रदान-विभक्ति के ‘लिए’ में भी ‘ए’ का व्यवहार होना चाहिए। जैसे— राघव के लिए आम लाओ।
    • विशेषण शब्द का अन्त जैसा हो, वैसा ही ‘ये’ या ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए। जैसे— नया है, तो बहुवचन में ‘नये’ और स्त्रीलिंग में नयी; ‘जाता हुआ’ आदि है तो बहुवचन में ‘जाते हुए और स्त्रीलिंग में ‘जाती हुई’। ‘नई दिल्ली’ में ‘नई’ शब्द पर ध्यान दें। ‘नया’ शब्द विशेषण है और इस हिसाब से ‘नयी दिल्ली’ लिखा जाना चाहिए परन्तु ‘नई दिल्ली’ शब्द चल पड़ा है तो अब यही लिखा जाता है।

इन नियमों से यह निष्कर्ष निकलता है कि—

      • भूतकालिक क्रियाओं में ‘ये’ का प्रयोग होता है।
      • अव्ययों में ‘ए’ का प्रयोग होता है। जैसे— लिए, चाहिए, इसलिए।
      • विशेषण का रूप अन्तिम वर्ण के अनुरूप ‘ये’ या ‘ए’ होना चाहिए।

परन्तु अच्छा यह होता कि दोनों के लिए कोई एक सामान्य नियम बनता। भारत सरकार की वर्तनी समिति ‘ए’ के प्रयोग का समर्थन करती है।

  • संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यतः संस्कृतवाला रूप ही रखा जाता है। परन्तु, जिन शब्दों के प्रयोग में हिन्दी में हलन्त चिह्न लुप्त हो चुका है, उनमें हलन्त नहीं लगाना चाहिए; जैसे- महान, विद्वान, जगत। परन्तु, सन्धि अथवा छन्द समझाने की स्थिति हो, तो इनका हलन्त रूप ही प्रयोग किया जाता है; जैसे— जगत् + नाथ = जगन्नाथ, जगत् + जननी = जगज्जननी, जगत् + माता = जगन्माता, सत् + चरित्र = सच्चरित्र।
  • जहाँ वर्गों के पंचमाक्षर के बाद उसी के वर्ग के शेष चार वर्षों में से कोई वर्ण हो वहाँ अनुस्वार का प्रयोग प्रचलन में आ चुका है और उसे प्रयोग करना सहज व सुविधाजनक है। जैसे- वंदना (वन्दना), नंद (नन्द), नंदन (नन्दन), अंत (अन्त), गंगा (गङ्गा), संपादक (सम्पादक) आदि।
  • य, र, ल, व, श, ष, स और ह से पहले पंचमाक्षर के बदले ‘अनुस्वार’ का प्रयोग प्रचलन में आ चुका है। जैसे- संयत, संयम, संरक्षण, संलग्न, संवेदना, संशय, दंश, संसार, संहार आदि।
  • हिन्दी में पंचमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग प्रचलन बढ़ता जा रहा परन्तु अभी भी कुछ तत्सम शब्दों पंचमाक्षर का प्रयोग ही शुद्ध होता है। जैसे— अम्ल, अन्याय, अन्वेषण, अक्षुण्ण, उन्मेष, कण्व, जन्म, तन्मय, निम्न, मृण्मय, वाङ्मय, सन्मार्ग, सम्मान आदि।
  • नहीं, मैं, हैं, में इत्यादि के ऊपर लगी मात्राओं को छोड़कर शेष आवश्यक स्थानों पर चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करना चाहिए। अनुस्वार और अनुनासिक का विशेष ध्यान रखना चाहिए नहीं तो ‘हंस’ और ‘हँस’ तथा ‘अँगना’ और ‘अंगना’ का अर्थभेद स्पष्ट नहीं होगा।
  • अरबी-फारसी के वे शब्द जो, हिन्दी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिन्दी ध्वनियों में रूपान्तर हो चुका है, उन्हें हिन्दी रूप में ही स्वीकार करके लिखना चाहिए। जैसे— जरूर (ज़रूर), कागज (काग़ज़) आदि। परन्तु, जहाँ उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग करना आवश्यक हो, वहाँ उनके हिन्दी में प्रचलित रूपों में यथास्थान ‘नुक्ते’ लगाये जायें, ताकि उनका विदेशीपन सुस्पष्ट रहे। जैसे— राज़, नाज़।
  • अँगरेजी के जिन शब्दों में अर्द्ध ‘ओ’ (‘O’) ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध रूप का हिन्दी में प्रयोग अभीष्ट होने पर ‘आ’ की मात्रा पर ‘अर्द्धचन्द्र’ का प्रयोग किया जाय। जैसे— डॉक्टर (Doctor), कॉलेज (College), हॉस्पिटल (Hospital)।
  • संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग का प्रयोग होता है, वे यदि तत्सम रूप में प्रयुक्त हों तो विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाय। जैसे— स्वान्तः सुखाय, दुःख। परन्तु, यदि उस शब्द के तद्भव में विसर्ग का लोप हो चुका हो, तो उस रूप में विसर्ग के बिना भी काम चल जायेगा। जैसे— दुख-सुख।
  • हिन्दी में ‘ऐ’ (े ) और ‘औ’ (ौ) का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए होता है। पहले प्रकार की ध्वनियाँ ‘है’, ‘और’ आदि में हैं तथा दूसरे प्रकार की ‘गवैया’, ‘कौआ’ आदि में। इन दोनों ही प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए इन्हीं चिह्नों (ऐ, ओ) का प्रयोग किया जाना शुद्ध है। गवय्या, कव्वा आदि लिखना अशुद्ध है।

वर्तनी की विशेष अशुद्धियाँ और उनके निदान

हमारी देवनागरी लिपि संसार की अन्य लिपियों से अधिक वैज्ञानिक है; क्योंकि इसमें सभी ध्वनियों को व्यक्त करने की क्षमता तो है ही, साथ ही एक ध्वनि को व्यक्त करने के लिए एक ही लिपि चिह्न या प्रतीक है। फिर भी, प्रायः वर्तनी-सम्बन्धी अशुद्धियाँ हो जाती हैं। इनमें विशेष अशुद्धियाँ अधोलिखित हैं—

‘ण’ और ‘न’ की अशुद्धियाँ

‘ण’ और ‘न’ के प्रयोग में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। ‘ण’ अधिकतर संस्कृत शब्दों में आता है। जिन तत्सम शब्दों में ‘ण’ होता है, उनके तद्भव रूप में ‘ण’ के स्थान पर ‘न’ प्रयुक्त होता है; जैसे— रण-रन, फण-फन, कण-कन, विष्णु-बिस्नु। ‘न’ का प्रयोग करते समय अधोलिखित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए—

(क) संस्कृत की जिन धातुओं में ‘ण’ होता है, उनसे बने शब्दों में भी ‘ण’ रहता है; जैसे- क्षण, प्रण, वरुण, निपुण, गण, गुण।

(ख) किसी एक ही पद में यदि ऋ, र, और ष के बाद ‘न्’ हो तो ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है, भले ही इनके बीच कोई स्वर, य्, व्, ह्, कवर्ग, पवर्ग का वर्ण तथा अनुस्वार आया हो। जैसे- ऋण, कृष्ण, विष्णु, भूषण, उष्ण, रामायण, श्रवण इत्यादि।

परन्तु, यदि इनसे कोई भिन्न वर्ण आये, तो ‘न’ का ‘ण’ नहीं होता। जैसे— अर्चना, मूर्च्छना, रचना, प्रार्थना।

(ग) कुछ तत्सम शब्दों में स्वभावतः ‘ण’ होता है; जैसे— अणु, उदाहरण, उद्धरण, कंकण, कण, किरण, कृपण, कृपाण, कोण, कृष्ण, क्षण, क्षीण, गण, गुण, गणिका, ग्रहण, घोषणा, चाणक्य, दर्पण, निर्माण, पुराण, बाण, भाषण, भूषण, मणि, माणिक्य, मिश्रण, रक्षणीय, लवण, वाणिज्य, वाणी, वणिक, वीणा, वेणु, वेणी, व्याकरण, शरण इत्यादि।

‘छ’ और ‘क्ष’ की अशुद्धियाँ

‘छ’ एक स्वतन्त्र व्यंजन है, जबकि ‘क्ष’ संयुक्त व्यंजन (क्ष = क् + ष्)। ‘क्ष’ का प्रयोग तत्सम शब्दों में अधिक प्रयुक्त होता है। जैसे— अक्ष, अक्षय, अक्षुण्ण, अधीक्षक, कक्ष, कक्षा, तीक्ष्ण, दीक्षा, नक्षत्र, निरीक्षक, परीक्षा, प्रतीक्षा, भिक्षा, भिक्षु, यक्ष, शिक्षा, समक्ष, समीक्षा, साक्षी, क्षण, क्षति, क्षत्रिय, क्षपा, क्षमा, क्षय, क्षार, क्षिति, क्षिप्र, क्षीण, क्षुण्य, क्षुद्र, क्षुधा, क्षेत्र, क्षेपक, क्षोभ, क्ष्मा इत्यादि।

‘ब’ और ‘व’ की अशुद्धियाँ

‘ब’ और ‘व’ के प्रयोग के बारे में हिन्दी में प्रायः अशुद्धियाँ होती हैं। इन अशुद्धियों का कारण है अशुद्ध उच्चारण। शुद्ध उच्चारण के आधार पर ही ‘ब’ और ‘व’ का भेद किया जाता है। ‘ब’ के उच्चारण में दोनों होंठ जुड़ जाते हैं, पर ‘व’ के उच्चारण में निचला होंठ ऊपरवाले दाँतों के अगले हिस्से के निकट चला जाता है और दोनों होंठों का आकार गोल हो जाता है, वे मिलते नहीं हैं। ठेठ हिन्दी में ‘ब’ वाले शब्दों की संख्या अधिक है, ‘व’ वालों की कम। ठीक इसका उलटा संस्कृत (तत्सम शब्द) में है। संस्कृत में ‘व’ वाले शब्दों की अधिकता है। संस्कृत से अनेक शब्द हिन्दी ने प्राप्त किये हैं।

संस्कृत के ‘ब’ वाले कुछ शब्द हैं— बंध्या, बधिर, बन्ध, बन्धु, बर्बर, बलि, बलिष्ठ, बहु, बाधा, बीज, बृहत्, ब्रह्म, ब्राह्मण, बुभुक्षा।

संस्कृत के ‘व’ वाले प्रमुख शब्द हैं— वंचना, वंश, वक्र, वत्स, वदन, वधू, वचन, वपु, वर्जन, वर्ण, वन्य, वसुधा, वहन, वाक्, वायु, विजय, विलास, विवर्ण, विवाद, विवाह, विश्राम, विषाद, व्याज, व्यवहार।

विशेष- संस्कृत में कुछ शब्द ऐसे हैं, जो ‘व’ और ‘ब’ दोनों में लिखे जाते हैं और दोनों शुद्ध माने जाते हैं। पर हिन्दी बोलियों में इस प्रकार के शब्दों में ‘ब’ वाला रूप ही अधिक चलता है। जैसे— बीभत्स-वीभत्स, बृहत्/बृहद्-वृहत्/वृहद्, बसंत-वसंत।

प्रायः ‘व’ का ‘ब’ होने पर या ‘ब’ का ‘व’ होने पर अर्थ बदल जाता है; जैसे— वहन-बहन; शव-शब; वार-बार; रव-रब; वली-बली; वाद-बाद; वात-बात आदि।

‘श’, ‘ष’ और ‘स’ की अशुद्धियाँ

‘श’, ‘ष’ और ‘स’ भिन्न-भिन्न अक्षर हैं। इन तीनों की उच्चारण-प्रक्रिया भी अलग-अलग है। उच्चारण-दोष के कारण ही वर्तनी-सम्बन्धी अशुद्धियाँ होती हैं। इनके उच्चारण में निम्नांकित बातों की सावधानी रखनी चाहिए—

(क) ‘ष’ केवल संस्कृत (तत्सम) शब्द में आता है; जैसे— कषा, भाषा, गवेषणा, द्वेष, मूषक, कषाय, पौष, चषक, पीयूष, पुरुष, शुश्रूषा, षंड, श्लेष, श्लेष्मा, षट्/षड्, षोडश, सन्तोष, आदि।

(ख) जिन संस्कृत शब्दों की मूल धातु में ‘ष’ होता है, उनसे बने शब्दों में भी ‘ष’ रहता है, जैसे- ‘शिष्’ धातु से शिष्य, शिष्ट, शेष आदि।

(ग) सन्धि के नियमानुसार यदि विसर्ग से पूर्व ‘इकार’ या ‘उकार’ आये और विसर्ग के बाद क, ख, ट, ठ, प, फ हो, तो विसर्ग (:) ‘ष्’ हो जाता है। जैसे—

    • आविः + कार = आविष्कार
    • चतुः + कोण = चतुष्कोण
    • दुः + कर = दुष्कर
    • दुः + परिणाम = दुष्परिणाम
    • धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
    • निः + कपट = निष्कपट
    • निः + कारण = निष्कारण
    • निः + ठुर = निष्ठुर
    • निः + पाप = निष्पाप
    • निः + फल = निष्फल
    • बहिः + कार = बहिष्कार

(घ) यदि किसी शब्द में ‘स’ हो और उसके पूर्व ‘अ’ या ‘आ’ के सिवा कोई भिन्न स्वर हो तो ‘स’ के स्थान पर ‘ष’ होता है। जैसे—

    • अनु + संगी = अनुषंगी
    • अभि + सेक = अभिषेक
    • नि + सिद्ध = निषिद्ध
    • नि + सेध = निषेध
    • युधि + स्थिर = युधिष्ठिर
    • वि + सम = विषम
    • वि + साद = विषाद
    • सु + समा = सुषमा
    • सु + सुप्त = सुषुप्त

(ङ) टवर्ग के पूर्व केवल ‘ष’ आता है; जैसे— षोडश, षडानन, कष्ट, नष्ट, पृष्ठ, वृष्टि, सृष्टि।

(च) ऋ के बाद प्रायः ‘ष’ ही आता है; जैसे— ऋषभ, ऋषि, ऋष्टि, कृषि, वृष्टि, तृषा, निकृष्ट।

(छ) तत्सम (संस्कृत) शब्दों में च, छ, के पूर्व ‘श’ ही आता है; जैसे— दुश्चरित्र, निश्चल, निश्छल, प्रायश्चित, हरिश्चंद्र।

(ज) जहाँ ‘श’ और ‘स’ एक साथ प्रयुक्त होते हैं वहाँ ‘श’ पहले आता है; जैसे— शासन, शासक, प्रशंसा, नृशंस, शस्त्र, शस्य, शास्त्र। परन्तु इसके विपरीत भी शब्द मिलते हैं। जैसे— संशय, संशोधन, संश्लेषण, सशंक, सशरीर, साश्चर्य।

(झ) जहाँ ‘श’ और ‘ष’ एक साथ आते हैं, वहाँ ‘श’ के पश्चात् ‘ष’ आता है; जैसे- शोषण, शीर्षक, शेष, शिष्य, शिष्टाचार, विशेष इत्यादि ।

(ञ) उपसर्ग के रूप में निः, वि आदि आनेपर मूल शब्द का ‘स’ पूर्ववत् बना रहता है; जैसे— निःसंशय, निस्सन्देह, विस्तृत, विस्तार।

(ट) यदि तत्सम शब्दों में ‘श’ हो, तो उसके तद्भव में ‘स’ होता है; जैसे— शूली-सूली, शाक-साग, शूकर-सूअर, श्वसुर-ससुर, श्यामल-साँवला।

(ठ) कभी-कभी ‘स्’ के स्थान पर ‘स’ लिखकर और कभी शब्द के आरम्भ में ‘स्’ के साथ किसी अक्षर का मेल होने पर अशुद्धियाँ होती हैं; जैसे—

    • स्त्री (शुद्ध) — इस्त्री (अशुद्ध)
    • परस्पर (शुद्ध) — परसपर (अशुद्ध)
    • स्थल (शुद्ध) — अस्थल (अशुद्ध)
    • स्थान (शुद्ध) — अस्थान (अशुद्ध)
    • स्नान (शुद्ध) — अस्नान (अशुद्ध)

(ङ) शब्दों के रूप वैकल्पिक होते हैं; जैसे कोश-कोष, केशर-केसर, कौशल्या-कौसल्या, केशरी-केसरी, कशा-कषा, वशिष्ठ-वसिष्ठ। इन शब्दों के दोनों रूप शुद्ध हैं।

(च) ‘इ’ की मात्रा व वर्ण वाले शब्द— अग्नि, अनुचित, अभिनेता, इन्दिरा, इन्दु, इकाई, इक्का, इक्ष्वाकु, इक्षु, इच्छुक, इति, इन्द्रिय, इषु, इष्ट, उन्नति, उपाधि, कवि, किंकर्तव्यविमूढ़, किंचित्, किंवदंती, किल्विष, किशोर, किसलय, किसान, कीर्ति, कोकिल, कोविद, खिचड़ी, खिड़की, खिन्न, खिलाड़ी, खिलौना, खिल्ली, गर्भिणी, गिरगिट, गिरमिटिया, गिरि, गिरिजा, गिलहरी, चमारिन, चरितार्थ, चरित्र, चरित्र-चित्रण, चर्चित, चिकित्सा-पद्धति, चिड़िया, चिपकाना, दक्षिण, धोबिन, ध्वनि, नायिका, निखिल, निधि, नीति, पुलिंदा, पारितोषिक, पुष्टि, प्रकृति, प्रीति, भगिनी, भूमिका, भ्रान्ति, मद्धिम, मन्दिर, मरीचिका, महिमा, मोहित, रात्रि, रुचि, लिपि, विधि, सन्तति, सन्धि, समिति, समिधा, सम्मति, सरिता, सिंदूर, सृष्टि, हिंगुल।

(छ) ‘ई’ की मात्रा व वर्ण वाले शब्द— ईंगुर, ईंट, ईंधन, ईख, ईद, ईदुलफ़ितर, ईप्सा, ईमान, ईर्ष्या, ईश, ईशान, ईश्वर, ईसवी, ईसाई, ईहा।

(ज) ‘उ’ की मात्रा व वर्ण वाले शब्द— अणु, आयु, इन्दु, उत्थान, उत्सुक, ऋतु, कुआँ, कुटुम्ब, कुमुद, कुसुम, कौमुदी, गुरु, चतुराई, जन्तु, दयालु, धुँआ, धातु, निठुर, निरुद्यम, पटु, परन्तु, पशु, पुरुष, पुरुषोत्तम, प्रभु, बन्धु, बहुत, बाहु, बिन्दु, भंगुर, भिक्षु, मंजु, मधु, मुकुन्द, रघु, रुई, रुद्र, रेणु, वस्तु, वायु, शम्भु, शत्रु, सिंधु, हनु, हेतु।

(झ) ‘ऊ’ की मात्रा व वर्ण वाले शब्द— अनूदित, आँसू, आड़ू, आलू, उर्दू, ऊधम, चमू, चाकू, ज़रूरत, जादू, डाकू, तम्बाकू, तूफ़ान, दूसरा, नीबू, नूपुर, बदबू, बहू, बाबू, बिच्छू, भ्रू, रूख, रूठना, लट्टू, लड्डू, लहू, लागू, वधू, शुरू, सिन्दूर, सूई, सूरज, स्वयंभू, हिन्दू आदि।

(ञ) ‘ऋ’ की मात्रा व वर्ण वाले शब्द— अमृत, ऋक्थ, ऋग्वेद, ऋचा, ऋजु, ऋण, ऋतंभरा, ऋत्, ऋतु, ऋद्धि-सिद्धि, ऋषभ, ऋषि, ऋष्टि, कृतज्ञ, कृतघ्न, कृति, कृपा, कृपाण, कृषि, गृहस्थ, घृणा, घृत, तृण, तृप्त, तृष्णा, दृढ़, दृष्टि, धृष्ट, नृत्य, नृप, पृष्ठ, वृहत्, बृहस्पति, भृत्य, मृग, मृतक, मृत्यु, मातृभाषा, वृन्द, वृक्ष, वृथा, वृद्धि, सृष्टि, हृष्टपुष्ट आदि।

(ट) ‘ए’, ‘ऐ’ और ‘अय’ सम्बन्धी अशुद्धियाँ:

    • अशुद्ध — शुद्ध
    • अइसा — ऐसा
    • एतिहास — इतिहास
    • इतिहासिक — ऐतिहासिक
    • ऐक — एक
    • चाहिऐ — चाहिए
    • जै हिन्द — जय हिन्द
    • दैनीय — दयनीय
    • निरभय — निर्भय
    • नैन — नयन
    • परलै — प्रलय
    • फैंकना — फेंकना
    • भाषाऐं — भाषाएँ
    • वइसा — वैसा
    • वय्याकरण — वैयाकरण
    • वैश्या — वेश्या
    • सैना — सेना
    • सेनिक — सैनिक

(ठ) ‘ई’ और ‘यी’ सम्बन्धी अशुद्धियाँ:

    • अशुद्ध — शुद्ध
    • उत्तरदाई — उत्तरदायी
    • धराशाई — धराशायी
    • नयी — नई
    • लड़ायी — लड़ाई
    • लिखायी — लिखाई
    • विजई — विजयी
    • स्थाइत्व — स्थायित्व
    • स्थाई — स्थायी

(ड) ‘ओ’, ‘औ’, ‘अव’, और ‘आव’ सम्बन्धित अशुद्धियाँ:

    • अशुद्ध — शुद्ध
    • अक्षोहिणी, अच्छौहिणी — अक्षौहिणी
    • बहोत — बहुत
    • चुनाउ, चुनाओ — चुनाव
    • उपन्यासिक — औपन्यासिक
    • भौंचाल — भूचाल
    • झौपड़ी — झोंपड़ी
    • औगुण — अवगुण
    • विविहार, ब्योहार, व्योहार — व्यवहार
    • नोकरी — नौकरी
    • क्यूँ  — क्यों
    • होले — हौले
    • गोतम — गौतम
    • अलोकिक — अलौकिक
    • झुकाउ, झुकाओ — झुकाव
    • ओद्योगिक — औद्योगिक
    • त्यौहार — त्योहार
    • औतार — अवतार

(ढ) ‘ओ’ तथा ‘औ’ की मात्रा वाली अशुद्धियाँ व अर्थ में बदलाव

    • अशुद्ध — शुद्ध
    • ओर — और
    • कोड़ी — कौड़ी
    • खोलना — खौलना
    • बोना — बौना
    • शोक — शौक

(ण) अनुस्वार और अनुनासिक सम्बन्धी अशुद्धियाँ:

    • बिनमतलब ‘चिह्न’ लगाना
      • अशुद्ध — शुद्ध
      • करकें — करके
      • मामां — मामा
      • नाँव — नाम
      • नांव — नाव
      • छोंड़कर — छोड़कर
      • सोंच लो — सोच लो
      • दुनियाँ — दुनिया
      • गरिमाँ — गरिमा
      • सोंचेंगें — सोचेंगे
      • नानां — नाना
      • जाँति-पाँति — जाति-पाँति
    • चिह्न आवश्यक है:
      • अशुद्ध — शुद्ध
      • उन्ही — उन्हीं
      • क्योकि — क्योंकि
      • तरंगे — तरंगें
      • सन्यासी — संन्यासी
      • कही न कही — कहीं न कहीं
      • पुस्तके — पुस्तकें
      • हमी – हमीं
      • नही — नहीं
      • उन्ही — उन्हीं
      • उन्हे — उन्हें
    • सही स्थान पर चिह्न लगाना:
      • अशुद्ध — शुद्ध
      • होगें — होंगे
      • आएगीं — आएँगी
    • अनुस्वार व अनुनासिक के स्थान परिवर्तन सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
      • अशुद्ध — शुद्ध
      • अँधा — अंधा
      • अंधेरा — अँधेरा
      • आँतरिक — आंतरिक
      • आँदोलन — आंदोलन
      • गंवार — गँवार
      • छंटाई — छँटाई
      • मां — माँ
      • माँस — मांस
      • मांग — माँग
      • संवारना — सँवारना
      • सँस्कृत — संस्कृत

सामान्य अशुद्धियाँ

वर्ण सम्बन्धी अशुद्धियाँ

स्वर सम्बन्धी अशुद्धियाँ

‘अ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • अँक — अंक
  • अकन — अंकन
  • अकांछा — आकांक्षा
  • अक्षुण्य — अक्षुण्ण
  • अगामी — आगामी
  • अग्नेय — आग्नेय
  • अग्रगम्य — अग्रगण्य
  • अजमाइश — आज़माइश
  • अजस्सर — अजस्र
  • अट्टालीका — अट्टालिका
  • अट्ठहास — अट्टहास
  • अतिथी — अतिथि
  • अतिश्योक्ति — अतिशयोक्ति
  • अतिव्रिष्टि — अतिवृष्टि
  • अधीकार — अधिकार
  • अधीकारिक — आधिकारिक
  • अनन्नाश — अनन्नास
  • अनवेषण — अन्वेषण
  • अनाधिकार — अनधिकार
  • अनिधिकृत — अनधिकृत
  • अनिरबचनीय — अनिर्वचनीय, अनिर्वाच्य
  • अनुकुल — अनुकूल
  • अनुग्रहीत — अनुगृहीत
  • अनुछेद — अनुच्छेद
  • अनुशंधान — अनुसंधान
  • अनुशरण — अनुसरण
  • अनिष्ठ — अनिष्ट
  • अन्तर्ध्यान — अन्तर्धान
  • अन्ताक्षरी — अन्त्याक्षरी
  • अद्वितिय — अद्वितीय
  • अधिवेषन — अधिवेशन
  • अधिषाशी — अधिशासी
  • अध्यय — अध्याय
  • आध्यात्म — अध्यात्म
  • अध्यात्मिक — आध्यात्मिक
  • अध्रम — अधर्म
  • अनभिग्य — अनभिज्ञ
  • अनभूति — अनुभूति
  • अनुयाई — अनुयायी
  • अनूक्रम — अनुक्रम
  • अनुसंगिक — आनुषंगिक
  • अनुसूया, अनुसूइया — अनसूया
  • अनेकों — अनेक
  • अन्यन्याश्रित — अन्योन्याश्रित
  • अपकीर्ती — अपकीर्ति
  • अपन्हुति — अपह्नुति
  • अपरान्ह — अपराह्न
  • अभीराम — अभिराम
  • अभीनेता — अभिनेता
  • अभीमान — अभिमान
  • अभीष्ठ — अभीष्ट
  • अभ्यस्थ — अभ्यस्त
  • अभ्यांतर — अभ्यंतर
  • अभ्यन्तरिक — आभ्यन्तरिक
  • अमावश्या — अमावस्या
  • अरपन — अर्पण
  • अर्च्यना — अर्चना
  • अरुड़ — अरुण
  • अर्थात — अर्थात्
  • अल्हाद — आह्लाद
  • अवन्नति — अवनति
  • अस्थान — स्थान
  • अरमूद — अमरूद
  • अवश्यकता — आवश्यकता
  • अवसंभावी — अवश्यंभावी
  • अस्पृष्यता — अस्पृश्यता
  • अरह, अहर् — अर्ह
  • अरहता — अर्हता
  • असहनीय — असह्य
  • असाढ़ — आषाढ़
  • असूर्यपश्या — असूर्यंपश्या (असूर्यम्पश्या)
  • असोक — अशोक
  • अहरनिश, अहर्नीश — अहर्निश
  • अहार — आहार
  • अहिल्या — अहल्या

‘आ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • आइन — आईन
  • आईये — आइये, आइए
  • आकस्मात् — अकस्मात्
  • आकांड तांडव — अकांड तांडव
  • आकास्मीक — आकस्मिक
  • आकाल — अकाल
  • आछादन — आच्छादन
  • आजकाल — आजकल
  • आजीवका — आजीविका
  • आधीन — अधीन
  • आपना — अपना
  • आप्रत्याशीत — अप्रत्याशित
  • आभ्यंतरीक — आभ्यंतरिक
  • आमिश — आमिष
  • आयूर्वेदिक — आयुर्वेदिक
  • आयोजीत — आयोजित
  • आरोज्ञ — आरोग्य
  • आर्द — आर्द्र
  • आवश्यकीय — आवश्यक
  • आहवान — आह्वान

‘इ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • इंदीरा — इंदिरा
  • इकठ्ठा — इकट्ठा
  • इश्वर — ईश्वर
  • ईंद्रीय — इंद्रिय
  • ईंद्रा — इंद्रा
  • ईंद्राणी — इंद्राणी
  • ईर्षा — ईर्ष्या

‘उ’ और ‘ऊ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • उँचाई — ऊँचाई
  • उऋन — उऋण
  • उच्छृंखिल, उच्छृख्ल, उशृंखल — उच्छृंखल (उत् + शृंखल)
  • उच्छृंखिलता, उच्शृंखलता — उच्छृंखलता
  • उच्छवास — उच्छ्वास (उत् + श्वास)
  • उज्वल — उज्ज्वल (उत् + ज्वल)
  • उतप्रेक्षा — उत्प्रेक्षा
  • उतसव — उत्सव
  • उत्कर्षता — उत्कर्ष
  • उत्ग्रीव — उद्ग्रीव
  • उत्पात् — उत्पात
  • उत्वंग — उत्तुंग
  • उदघोष — उद्घोष
  • उद्भिज — उद्भिज्ज
  • उद्धत — उद्यत
  • उद्धरड — उद्धरण
  • उद्यौगिक — औद्योगिक
  • उन्मीलीत — उन्मीलित
  • उनत — उन्नत
  • उन्नती — उन्नति
  • ऊपकार — उपकार
  • ऊपनयन — उपनयन
  • उपचारिकता — औपचारिकता
  • उपरोक्त — उपर्युक्त (उपरि + उक्त)
  • उपलक्ष — उपलक्ष्य
  • उपलिखित — उपरिलिखित
  • उपाशना — उपासना

‘ए’ और ‘ऐ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • एकत्रित — एकत्र
  • एच्छिक, इच्छिक — ऐच्छिक
  • एतिहासिक — ऐतिहासिक
  • एनक — ऐनक
  • एश्वर्य — ऐश्वर्य
  • ऐक — एक
  • ऐकांकी — एकांकी
  • ऐकाएक — एकाएक, यकायक
  • ऐक्यता — ऐक्य, एकता
  • ऐना — आईना
  • ऐषणा — एषणा

‘ओ’ और ‘औ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • औढ़र — औढर
  • औद्योगीकरण — उद्योगीकरण
  • औसर — अवसर

व्यंजन वर्ण

‘क-वर्ग’

‘क’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • कंकन — कंकण
  • कंगना — कँगना
  • कक्षप — कच्छप
  • कच्छा (जाँघिया) — कक्षा (परिधि)
  • कठनाई, कठिनायी — कठिनाई
  • कनिष्ट — कनिष्ठ
  • कन्हय्या — कन्हैया
  • कपुत — कपूत
  • कविओं — कवियों
  • कवियित्री — कवयित्री
  • कर्मनासा — कर्मनाशा
  • कार्यक्रर्म — कार्यक्रम
  • कालीदास — कालिदास
  • कियारी — क्यारी
  • किलिष्ट, क्लिष्ठ — क्लिष्ट
  • कीर्ती — कीर्ति
  • कुकुर — कुक्कुर
  • कूआँ — कुआँ
  • कुशाशन — कुशासन
  • कृत्यकृत्य — कृतकृत्य
  • केंद्रिय — केन्द्रीय
  • केन्द्रीयकरण — केन्द्रीकरण
  • कैलाश — कैलास
  • कोकण, कोंकड़ — कोंकण
  • कोटी — कोटि
  • कोतुहल, कौतुहल — कौतूहल, कुतूहल
  • कौशलता — कौशल, कुशलता
  • क्रपया, कृप्या — कृपया
  • क्रपा — कृपा
  • क्योंकी — क्योंकि
  • क्लेस, क्लेष — क्लेश

‘क्ष’ ( = क् + ष )

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • क्षणक — क्षणिक
  • क्षतिगृस्त — क्षतिग्रस्त
  • क्षतिपूर्ती — क्षतिपूर्ति
  • क्षति-विक्षति — क्षत-विक्षत
  • क्षल — छल
  • क्षत्र — छत्र (क्षत्र = बल, सत्ता; छत्र = राजसिंहासन के ऊपर लगाने वाली छतरी)
  • क्षत्रीय — क्षत्रिय
  • क्षात्र — छात्र (छात्र = विद्यार्थी, क्षात्र = क्षत्रियों से सम्बन्धित)

‘ख’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • खडाउँ — खड़ाऊँ
  • खधोत — खद्योत
  • खिवैया — खेवैया

‘ग’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • गडुर — गरुड़
  • गत्यरथ — गत्यर्थ
  • गरिष्ट — गरिष्ठ
  • गर्द्धव — गर्दभ
  • गनित — गणित
  • गियान, ग्यान — ज्ञान
  • गिरस्ती — गृहस्थी
  • गुणि — गुणी
  • गृहस्थ्य — गृहस्थ
  • गृहीत — ग्रहीत
  • गृहीता — ग्रहीता
  • गोपित — गुप्त
  • गोप्यनीय, गोपनिय — गोपनीय
  • गृहणी — गृहिणी

‘घ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • घनिष्ट — घनिष्ठ
  • घुँघुची — घुँघची 
  • घुँघुरू — घुँघरू
  • घोषड़ा — घोषणा
‘च-वर्ग’

‘च’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • चरन — चरण
  • चर्मोत्कर्ष — चरमोत्कर्ष
  • चातुर्यता — चातुर्य, चतुरता
  • चारदीवारी — चहारदीवारी
  • चारुताई — चारुता
  • चिकीत्सक — चिकित्सक
  • चिन्ह — चिह्न
  • चौ-पाया — चौपाया
  • च्युत् — च्युत

‘छ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • छत्तिस — छत्तीस
  • छमा — क्षमा
  • छार — क्षार
  • छिद्रान्वेशी — छिद्रान्वेषी
  • छिपकिली — छिपकली
  • छिप्र — क्षिप्र
  • छियाछठ — छियासठ
  • छीयालीस — छियालिस, छियालीस
  • छीर — क्षीर (खीर)
  • छुण्ण — क्षुण्ण
  • छुद्र — क्षुद्र
  • छुधा — क्षुधा
  • छुब्ध — क्षुब्ध
  • छेत्र — क्षेत्र
  • छेपक — क्षेपक

‘ज’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • जगजननी — जगज्जननी (जगत् + जननी)
  • जगत्गुरु — जगद्गुरु (जगत् + गुरु)
  • जगत्माता — जगन्माता (जगत् + माता)
  • जगत्विनाश — जगद्विनाश (जगत् + विनाश)
  • जगत्व्यापी — जगद्व्यापी (जगत् + व्यापी)
  • जगदगुरु — जगद्गुरु
  • जगनाथ — जगन्नाथ (जगत् + नाथ)
  • जग्दंबा — जगदंबा (जगत् + अंबा)
  • जदपि — यद्यपि
  • जमाता — जामाता
  • जलवायू — जलवायु
  • जल्दि — जल्दी
  • जागृत — जागरित
  • जानतांत्रिक — जनतांत्रिक (जनतान्त्रिक)
  • जार्ज्वल्व — जाज्वल्य
  • जार्ज्यल्वमान् — जाज्वल्यमान्
  • जिजिविषा — जिजीविषा
  • जेष्ट, ज्येस्ठ — ज्येष्ठ
  • ज्योतसना  — ज्योत्स्ना
  • ज्योतिचक्र — ज्योतिश्चक्र (ज्योतिः + चक्र)
  • ज्योतिछाया — ज्योतिश्छाया (ज्योति: + छाया)
  • ज्योतिपथ — ज्योतिष्पथ (ज्योतिः + पथ)
  • ज्योतिमंडल — ज्योतिर्मंडल (ज्योतिः + मंडल)
  • ज्योतिलिंग — ज्योतिर्लिंग (ज्योतिः + लिंग)

‘ज्ञ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • ज्ञानमान् — ज्ञानवान
  • ज्ञानेन्द्रीयाँ — ज्ञानेन्द्रियाँ

‘झ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • झस — झष
  • झांयी — झाँई
  • झिवर — झीवर
  • झीका — झींका
  • झोका — झोंका
‘ट-वर्ग’
  • अशुद्ध — शुद्ध
  • टंकड़ — टंकण
  • टिप्पड़ी — टिप्पणी
‘त-वर्ग’

‘त’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • तड़ित — तडित्
  • तत्कालिक — तात्कालिक
  • तत्व — तत्त्व
  • तरकस — तरकश
  • तरुन — तरुण
  • तलाव — तालाब
  • तहशीलदार — तहसीलदार
  • तहशीलदारी — तहसीलदारी
  • तिथी — तिथि
  • तिलांजली — तिलांजलि
  • त्रिण — तृण
  • त्याज — त्याज्य
  • त्रिदोश —त्रिदोष
  • त्रिष्णा — तृष्णा
  • त्रिमासिक — त्रैमासिक
  • त्रिवार्षिक — त्रैवार्षिक

‘द’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • दधिची — दधीचि
  • दवायी — दवाई
  • दवाईयां — दवाइयाँ
  • दाइत्व, दायित्त्व — दायित्व
  • दारिद्रता — दारिद्र्य, दरिद्रता
  • दिक्षा, दिच्छा — दीक्षा
  • दिपिका — दीपिका
  • दीर्धायु — दीर्घायु
  • दुराभिसन्धि — दुरभिसन्धि
  • दूस्साध्य — दुःसाध्य, दुस्साध्य
  • दृष्टा — द्रष्टा
  • दृष्य — दृश्य
  • देवार्षि — देवर्षि (देव-ऋषि)
  • देहिक — दैहिक
  • दैदीप्यमान — देदीप्यमान
  • दौगरा — दवँगरा
  • दौरबल्य- दौर्बल्य
  • द्वारिका — द्वारका
  • द्रविण — द्रविड़
  • द्रविभूत — द्रवीभूत
  • दृष्टव्य — द्रष्टव्य
  • द्रष्टांत — दृष्टांत
  • द्राच्छा — द्राक्षा
  • द्रिग — दृग
  • द्वन्द — द्वन्द्व
  • द्विवार्षिक — द्वैवार्षिक

‘ध’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • धनुस — धनुष
  • धैर्यता — धैर्य, धीरता
  • धोका — धोखा
  • ध्यतव्य — ध्यातव्य

‘न’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • नछत्र — नक्षत्र
  • नदान — नादान
  • नबाब – नवाब
  • नरायन — नारायण
  • नर्क — नरक
  • नराज — नाराज़
  • नाइका — नायिका
  • नायी, नाऊ — नाई
  • निमितिक — नैमित्तिक
  • निमिलित — निमीलित
  • निरनुनसिक — निरनुनासिक
  • निरपराधी, निरापराध — निरपराध
  • निरहंकारी — निरहंकार
  • निरिह — निरीह
  • निरूपाय — निरुपाय
  • निर्दशन — निदर्शन
  • निर्दशन — निर्देशन
  • निवासीयों — निवासियों
  • निवृती — निवृत्ति
  • निश्चयता — निश्चय
  • निष्पापी — निष्पाप (निः + पाप)
  • निसंग — निषंग
  • नीती — नीति
  • नीर्भर — निर्भर
  • नुपुर — नूपुर
  • नृसंश — नृशंस
  • नैपुण्यता — नैपुण्य, निपुणता
‘प-वर्ग’

‘प’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • पक्क — पक्व
  • पत्नि — पत्नी
  • पद्मीनी — पद्मिनी
  • पर्माथ — परमार्थ
  • परमुखापेछी — परमुखापेक्षी
  • परिक्षण — परीक्षण
  • परिक्षा — परीक्षा
  • परचित — परिचित
  • परिणती — परिणति
  • परिस्थिती — परिस्थिति
  • परीचय — परिचय
  • परीवार — परिवार
  • पहिला — पहला
  • परलौकिक — पारलौकिक
  • परिपार्श्विक — परिपार्श्वीय
  • पर्यवसन — पर्यवसान
  • पहिनावा — पहनावा
  • पाण्डे — पाण्डेय
  • पारन — पारण
  • पारिश्रामीक — पारिश्रमिक
  • पिचास — पिशाच
  • पिताम्बर — पीताम्बर
  • पीपिलक — पिपीलक (चींटा)
  • पीपिलका — पिपीलिका (चींटी)
  • पुज्य — पूज्य
  • पुर्नजागरण — पुनर्जागरण
  • पुर्व — पूर्व
  • पुलिंग — पुल्लिंग
  • पुश्चली — पुंश्चली
  • पुष्टी — पुष्टि
  • पुष्पांजली — पुष्पांजलि
  • पुस्प — पुष्प
  • पूज्यनीय — पूजनीय, पूज्य
  • पूज्यास्पद — पूजास्पद
  • पून्य — पुण्य
  • पूर्ती — पूर्ति
  • पूर्वान्ह — पूर्वाह्न
  • पृथक — पृथक्
  • पृष्ट — पृष्ठ
  • पैत्रिक — पैतृक
  • पोशक — पोषक
  • पौराणीक – पौराणिक
  • पौरुषत्व — पौरुष
  • पौर्वात्य — प्राच्य, पौर्विक, पौरस्त्य
  • प्रकारान्त — प्रकारान्तर
  • प्रगट — प्रकट
  • प्रज्ज्वल — प्रज्वल
  • प्रज्ज्वलित — प्रज्वलित
  • प्रतिकुल — प्रतिकूल
  • प्रतिनिधिक — प्रातिनिधिक
  • प्रतिनिधी, प्रतिनीधि — प्रतिनिधि
  • प्रतिर्दश — प्रतिदर्श
  • प्रतिष्टा — प्रतिष्ठा
  • प्रतीज्ञा — प्रतिज्ञा
  • प्रतीवादी — प्रतिवादी
  • प्रत्युत् — प्रत्युत
  • प्रदर्शिनी — प्रदर्शनी
  • प्रदर्शीत — प्रदर्शित
  • प्रदेशिक — प्रादेशिक
  • प्रनाम — प्रणाम
  • प्रन्तु — परन्तु
  • प्रफूल्ल — प्रफुल्ल
  • प्रफूल्लीत — प्रफुल्लित
  • प्रमाणिक — प्रामाणिक
  • प्रमेश्वर – परमेश्वर
  • प्रर्याप्त — पर्याप्त
  • प्रवजया — प्रव्रज्या
  • प्रवृर्त — प्रवृत्त
  • प्रशाद — प्रसाद (अनुग्रह) और प्रासाद (राज-भवन)
  • प्रसंशा — प्रशंसा
  • प्रांगन — प्रांगण
  • प्रार्दुर्भाव — प्रादुर्भाव
  • प्रान — प्राण
  • प्राप्ती — प्राप्ति
  • प्रौढ — प्रौढ़

‘फ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • फाल्गुण — फाल्गुन
  • फिटकरी — फिटकिरी
  • फुफ्फुस — फुप्फुस

‘ब’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • बंदना — वंदना
  • बजार — बाज़ार
  • बडा-सा — बड़ा-सा
  • बदाम — बादाम
  • बरबर्ता — बर्बरता
  • बलीदान — बलिदान
  • बसंत — वसंत
  • बहुब्रीहि — बहुव्रीहि
  • बारात — बरात
  • बाहुल्यता — बाहुल्य, बहुलता
  • बिराट — विराट्
  • बिधी — विधि
  • बिश्लेशन — विश्लेषण
  • बुढ़ा — बूढ़ा
  • बुद्धिमानता — बुद्धिमत्ता
  • बूझक्कड़ — बुझक्कड़
  • बृज — ब्रज
  • बृजभाषा — ब्रजभाषा
  • ब्रत – व्रत
  • ब्राम्हन — ब्राह्मण
  • ब्रिटीश — ब्रिटिश
  • ब्रीडा — व्रीडा
  • ब्यापार — व्यापार
  • ब्रम्ह — ब्रह्म

‘भ’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • भगीरथी — भागीरथी
  • भरथ — भरत
  • भलायी — भलाई
  • भष्म — भस्म
  • भष्मिभूत — भस्मीभूत
  • भागवत् — भागवत
  • भाग्यमान — भाग्यवान्
  • भाभियां — भाभियाँ
  • भिच्छा — भिक्षा
  • भिच्छु — भिक्षु
  • भिष्म — भीष्म
  • भुधर — भूधर
  • भैय्या — भैया

‘म’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • मट्टी — मिट्टी
  • मतन्तर — मतान्तर
  • मध्यान्ह — मध्याह्न
  • मनक — मानक
  • मनीशा — मनीषा
  • मनीशी — मनीषी
  • मनोग्य — मनोज्ञ
  • मरन — मरण
  • मलूम — मालूम
  • महत्व — महत्त्व
  • महत्वाकांक्षा — महत्त्वाकांक्षा
  • महर्षी — महर्षि
  • महात्म, माहात्मय, माहातम्य — माहात्म्य
  • महिना — महीना
  • माचीस — माचिस
  • मात्रभूमि, मातृभूमी — मातृभूमि
  • माधुर्यता — माधुर्य, मधुरता
  • मानव संस्कृत — मानव संस्कृति
  • मानविकरण, मानवीयकरण — मानवीकरण
  • मानसक — मानसिक
  • मान्यनीय — मान्य, माननीय
  • मिथला — मिथिला
  • मिथलेस — मिथिलेश
  • मिथलेशकुमारी — मिथिलेशकुमारी
  • मिष्ठान्न — मिष्टान्न
  • मुनी — मुनि
  • मुनीगन – मुनिगण
  • मुमुर्षू — मुमूर्षु
  • मूर्धण्य — मूर्द्धन्य
  • मुहुर्त्त — मुहूर्त्त
  • मुशकिल — मुश्किल
  • मूलयवान, मुल्यवान — मूल्यवान
  • मूलांकन — मूल्यांकन
  • मृत्यू — मृत्यु
  • मृत्यूदंड — मृत्युदंड
  • मृन्मय — मृण्मय
  • मृसा — मृषा
  • मेढक — मेंढक
  • मेघनाथ — मेघनाद
  • मैत्रता — मित्रता
  • मैथलीसरन — मैथिलीशरण
  • मोच्छ, मोछ — मोक्ष
  • म्रित्युंजय, मृत्युजन्तय — मृत्युंजय
  • म्रिदा — मृदा
‘अन्तःस्थ व्यंजन’

‘य’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • यथेष्ठ — यथेष्ट
  • यच्क्ष — यक्ष
  • यस — यश
  • याज्ञावल्क — याज्ञवल्क्य
  • याद्रच्छिक — यादृच्छिक
  • यानि — यानी
  • युधिस्टिर — युधिष्ठिर
  • योधा — योद्धा

‘र’

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • रचइता, रचयीता — रचयिता
  • रतौधी — रतौंधी
  • रमन — रमण
  • रमायन — रामायण
  • रसायण — रसायन
  • रसायनिक — रासायनिक
  • राजनैतिक — राजनीतिक
  • राजर्षी — राजर्षि
  • राज्यमहल — राजमहल
  • राणी — रानी
  • राहुल सांस्कृत्यायन — राहुल सांकृत्यायन
  • रिक्थ — ऋक्थ
  • रिचा — ऋचा
  • रितु — ऋतु
  • रिसि, रिषि — ऋषि
  • रिसिकेस — ऋषिकेश (प्रचलित); हृषीकेश (शुद्ध; हृषीक + ईश)
  • रुग्न — रुग्ण
  • रूपया, रुपिया, रुपैया — रुपया
  • रूद्र — रुद्र
  • रुद्राच्छ — रुद्राक्ष
  • रोपना — रोपना

‘ल’

  • लंगड — लंगड़, लँगड़ा
  • लगर — लंगर
  • लच्छन — लक्षण
  • लछिमन, लछमन — लक्ष्मण
  • लब्धप्रतिष्ठित — लब्धप्रतिष्ठ
  • ललायित — लालायित
  • लागान — लगान
  • लिक्खा — लिखा
  • लिखत — लिखित
  • लिपी — लिपि

‘व’

  • वजिफा — वज़ीफ़ा
  • वत्शल — वत्सल
  • वधु — वधू
  • वनिक — वणिक्
  • वनोवास — वनवास
  • वर्तन — बरतन
  • वर्न — वर्ण
  • वहिर्गमन — बहिर्गमन
  • वांगमय — वाङ्मय
  • वांक्षनीय — वांछनीय
  • बात्सल्य — वात्सल्य
  • वानी — वाणी
  • वापिस — वापस
  • वाल्मिकी — वाल्मीकि
  • वास्तविक में — वस्तुतः, वास्तव में
  • वास्प — वाष्प
  • वाहनी — वाहिनी
  • विकाश — विकास
  • विग्यप्ति — विज्ञप्ति
  • विग्यापन — विज्ञापन
  • विद्यवान — विद्वान
  • विद्यवान — विद्यमान
  • विधिवत — विधिवत्
  • विभिषण, बिभीषन — विभीषण
  • विभिषिका — विभीषिका
  • विरहणी — विरहिणी
  • विशम्भर — विश्वंभर
  • विसेश — विशेष
  • विसन्न — विषण्ण
  • विसमृत — विस्मृत
  • विस्मरन — विस्मरण
  • वीदेह — विदेह
  • वीना — वीणा
  • वृष्टी — वृष्टि
  • वीवर्त — विवर्त
  • वे-बुनियाद — बेबुनियाद
  • वेश्य — वैश्य
  • वेसभूषा — वेशभूषा
  • वैधव्यता — वैधव्य
  • वैमनस्यता — वैमनस्य
  • व्यंग — व्यंग्य (व्यंग = विकलांग; व्यंग्य = ताना)
  • व्यवसाइक — व्यावसायिक
  • व्यवहारिक — व्यावहारिक
  • व्यवहारित — व्यवहृत
  • व्याकुलित — व्याकुल
  • व्यावस्था — व्यवस्था
  • व्यापित — व्याप्त
  • व्यैक्तिक, व्यक्तिक — वैयक्तिक
  • व्याभिचार — व्यभिचार
  • व्रीह — व्रीहि
‘ऊष्म व्यंजन’

‘श’

  • शक्ती — शक्ति
  • शताब्दि, सताब्दी — शताब्दी
  • शत्रुह्न — शत्रुघ्न
  • शनी — शनि
  • शसीम — ससीम
  • शसि — शशि
  • शान्ती — शान्ति
  • शारिरिक — शारीरिक
  • शितकंठ — शितिकंठ
  • शिवर — शिविर
  • शिवी — शिवि
  • शिशू — शिशु
  • शिश्टाचार — शिष्टाचार
  • शिस्य — शिष्य
  • शिस्टमंडल — शिष्टमंडल
  • शीघ्रतिशीघ्र — शीघ्रातिशीघ्र
  • शीर्शक — शीर्षक
  • शुद्धिकरण — शुद्धीकरण
  • शुश्क — शुष्क
  • शोनित — शोणित
  • शोसक — शोषक
  • श्रद्वा — श्रद्धा
  • श्राप — शाप
  • श्रीमति — श्रीमती
  • श्रीमद्भगवत्गीता — श्रीमद्भगवद्गीता
  • श्रीमान — श्रीमंत, श्रीमत्, श्रीमान्
  • श्रृंगार — शृंगार
  • श्रोत — स्रोत
  • श्रीयुत् — श्रीयुत
  • श्रुतिपूर्व — श्रुतपूर्व
  • श्रुतिलिपि — श्रुतलिपि
  • श्रुतिलेख — श्रुतलेख
  • श्रेयष्कर — श्रेयस्कर
  • श्रेष्ट — श्रेष्ठ
  • श्पर्धा — स्पर्धा

‘ष’

  • षट् से बने शब्द
    • षट्ऋतु
    • षट्कर्म
    • षट्कोण
    • षट्चक्र
    • षट्भुज
    • षट्-रस
    • षट्वर्षीय
    • षट्शास्त्र
  • षड् से बने शब्द
    • षड्ज
    • षड्दर्शन
    • षड्यंत्र
    • षडानन
    • षड्-रस
  • षष्ठम, षष्ट — षष्ठ

‘स’

  • संग्रहीत — संगृहीत
  • संस्कृति भाषा — संस्कृत भाषा
  • सँगम — संगम
  • संगीतग्य — संगीतज्ञ
  • संग्रहित — संग्रहीत
  • सदंर्भ — संदर्भ
  • संनिधि — सन्निधि
  • सन्यास — संन्यास
  • सन्यासी — संन्यासी
  • संश्लिश्ट — संश्लिष्ट
  • संसारिक — सांसारिक
  • सत्यागृह — सत्याग्रह
  • सत्व — सत्त्व
  • सदृश्य — सदृश
  • सनशय — संशय
  • सन्कट — संकट
  • सन्तुष्ठ — सन्तुष्ट
  • सन्नध — सन्नद्ध
  • सन्मान — सम्मान
  • सप्ताहिक — साप्ताहिक
  • समरपण — समर्पण
  • समसामइक — समसामयिक
  • समान्य — सामान्य
  • समिक्षा — समीक्षा
  • समीति — समिति
  • समुद्रिक — सामुद्रिक, समुद्री
  • समुज्जवल — समुज्ज्वल (सम + उत् + ज्वल)
  • सम्न्वय — समन्वय
  • सम्पर्कित, सम्प्रिक्त — सम्पृक्त
  • सम्पत्ती — सम्पत्ति
  • सम्मीलित — सम्मिलित
  • सम्वाद — संवाद
  • सम्राज्य — साम्राज्य
  • सरवर — सरोवर
  • सरोजनी नायडू — सरोजिनी नायडू
  • सर्ब — सर्व
  • सर्वजनिक — सार्वजनिक
  • सर्वोत्त्म, सर्वोत्म — सर्वोत्तम
  • सस्यस्यामला — शस्यश्यामला
  • सहस्त्र — सहस्र
  • सहास — साहस
  • सहीष्णु — सहिष्णु
  • सांस्कृत्यायन — सांकृत्यायन
  • साधू — साधु
  • साधूवाद — साधुवाद
  • सामाजीक — सामाजिक
  • साम्यता — समता, साम्य
  • साशन — शासन
  • साहाय्यता — साहाय्य, सहायता
  • साहित्यीक — साहित्यिक
  • सिंक्त — सिक्त
  • सिंक्थ – सिक्थ (मोम)
  • सिंघ — सिंह
  • सिंहिनी — सिंहनी
  • सिन्दुर — सिन्दूर
  • सीढी — सीढ़ी
  • सुन्दरताई — सुन्दरता
  • सुर्पनखाँ — शूर्पणखा
  • सुर्य — सूर्य
  • सुर्योदय — सूर्योदय
  • सुश्रूत — सुश्रुत
  • सुश्रूषा — शुश्रूषा
  • सुसमा — सुषमा
  • शुसुप्त — सुषुप्त
  • सुभाव — स्वभाव
  • सुसुप्ति — सुषुप्ति
  • सूचि — सूची
  • सूचिपत्र — सूचीपत्र
  • सून्य — शून्य
  • सूहृद — सुहृद
  • सृजन — सर्जन
  • सृंखला — शृंखला
  • सृष्टा — स्रष्टा
  • सृष्टी, शृष्टि — सृष्टि
  • सोचनीय, शोचनिय — शोचनीय
  • सौख्यता — सौख्य
  • सौजन्यता — सौजन्य
  • सौन्दर्यता — सौन्दर्य, सुन्दरता
  • सौन्दर्यानूभुति — सौन्दर्यानुभूति
  • सौभागवान — सौभाग्यवान्
  • सौहार्द्र — सौहार्द
  • सौहृद्यता — सौहृद्य, सौहार्द
  • स्थिती — स्थिति
  • स्मर्ण — स्मरण
  • स्मसान – श्मशान
  • स्रवण — श्रवण (स्रवण = गर्भपात, प्रस्वेद; श्रवण = सुनना)
  • स्थिती — स्थिति
  • स्वक्ष — स्वच्छ
  • स्वयंबर — स्वयंवर
  • स्वातन्त्र — स्वातन्त्र्य (स्वातंत्र्य)
  • स्वाती — स्वाति
  • स्वालम्बन — स्वावलम्बन
  • स्वास्थ — स्वास्थ्य

‘ह’

  • हंसता — हँसता
  • हजाम — हज्जाम
  • हतपरभ — हतप्रभ
  • हतभाग — हतभाग्य
  • हतिबुद्ध — हतबुद्धि
  • हस्तालिखित — हस्तलिखित
  • हानी — हानि
  • हासील — हासिल
  • हितेच्छुक — हितेच्छु
  • हितैशी — हितैषी
  • हिन्दु — हिन्दू
  • हिन्दूस्तान — हिन्दुस्तान
  • हिंग — हींग
  • हिंस्त्र — हिंस्र
  • हिरण्यकश्यपु — हिरण्यकशिपु
  • हिरण्यगरभ — हिरण्यगर्भ
  • हीजड़ा — हिजड़ा

लिंग-प्रत्यय-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • अनाथिनी — अनाथा
  • अपराधनी — अपराधिनी
  • अश्वी — अश्वा
  • आयुष्मति — आयुष्मती
  • कुमुदनी — कुमुदिनी
  • कोमलांगिनी, कोमालांगी — कोमलांगी
  • कृशांगिनी — कृशांगी
  • गायकी — गायिका
  • गोपिनी — गोपी, गोपिका
  • चातकिनी — चातकी
  • जनानी — जनाना
  • जान्हवी — जाह्नवी
  • त्रिनयनी — त्रिनयना
  • दिगम्बरी — दिगम्बरा
  • दुश्चरित्रिणी — दुश्चरित्रा
  • धोबिनी — धोबिन
  • नारि — नारी
  • नीरपराधनी — निरपराधिनी
  • पीपिलिका — पिपीलिका
  • पिशाचिनी — पिशाची
  • प्रेयसि — प्रेयसी
  • भिक्षुणिनी — भिक्षुणी
  • भुजंगिनी — भुजंगी
  • मर्कटिन — मर्कटी
  • मालन — मालिन
  • मालकिन — मालिकिन
  • मिठायी — मिठाई
  • रचइत्री — रचयित्री
  • वानरिन — वानरी
  • विदूषी — विदुषी
  • विहंगिनी — विहंगी
  • वैरागिनि — वैरागिनी
  • व्याभिचारिणी — व्यभिचारिणी
  • शक्तिमनी — शक्तिमती
  • शक्तिशालिनि — शक्तिशालिनी
  • शिष्यनी — शिष्या
  • श्रीमान् रानी — श्रीमती रानी
  • श्वानि — श्वानी
  • श्वेतांगिनी — श्वेतांगी
  • संन्यासनी — संन्यासिनी
  • सुलोचनी — सुलोचना
  • सौभागवती — सौभाग्यवती
  • स्वामिनि — स्वामिनी

सन्धि-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

  • अन्तनिर्वित — अन्तर्निहित (अन्तः + निहित)
  • अन्तस्चेतना — अन्तश्चेतना (अन्तः + चेतना)
  • अंतोपुर, अंतपुर — अंतःपुर
  • अंतष्करण, अंतर्करण — अंतःकरण
  • अत्युक्ती, अत्योक्ति — अत्युक्ति (अति + उक्ति)
  • अन्तरराष्ट्रीय — अन्तर्राष्ट्रीय (अन्तः + राष्ट्रीय)
  • अधगति — अधोगति (अधः + गति)
  • अत्याधिक — अत्यधिक
  • अद्यपि — अद्यापि
  • अधतल, अधोतल — अधस्तल (अधः + तल)
  • अधस्पतन, अधोपतन — अधःपतन
  • अध्यन — अध्ययन
  • अनाधिकारी — अनधिकारी
  • अनापेक्षित — अनपेक्षित
  • अन्तर्साक्ष्य — अन्तःसाक्ष्य, अन्तस्साक्ष्य
  • अन्तश्तल — अन्तस्तल (अन्तः + तल)
  • अर्न्तस्तलीय, अन्तर्तलीय — अन्तस्तलीय (अन्तः + तलीय)
  • अन्तश्त्वचा — अन्तस्त्वचा (अन्तः + त्वचा)
  • अन्तस्पुर, अन्तर्पुर — अन्तःपुर
  • अन्तश्सलिला — अन्तस्सलिला (अन्तः + सलिला)
  • आविस्कार, अविस्कार — आविष्कार
  • आशिर्वाद — आशीर्वाद (आशीः + वाद)
  • आष्पद — आस्पद
  • इतिपूर्व — इतःपूर्व
  • उज्वल — उज्ज्वल
  • उज्वलन — उज्ज्वलन
  • उनन्यन — उन्नयन
  • उपरोक्त — उपर्युक्त
  • उलंघन — उल्लंघन
  • किम्वदन्ती — किंवदन्ती
  • क्रोधाग्नी — क्रोधाग्नि
  • गतर्थ — गतार्थ (गत + अर्थ)
  • गत्यरथ — गत्यर्थ (गति + अर्थ)
  • चक्षूरोग — चक्षु-रोग
  • छत्रछाया — छत्रच्छाया
  • जगतेश — जगदीश (जगत् + ईश)
  • जगतप्राण — जगत्प्राण
  • जगधात्री — जगद्धात्री
  • जगबन्धु — जगद्बन्धु
  • जगरनाथ — जगन्नाथ
  • जाग्रदवस्था — जागरितावस्था
  • जात्यभिमान — जात्याभिमान
  • ज्योतीन्द्र — ज्योतिरिन्द्र
  • तदोपरान्त — तदुपरान्त
  • तरुछाया — तरुच्छाया
  • तिरिष्कार, तिर्स्कार — तिरस्कार
  • दिगजाल — दिग्जाल (दिक् + जाल)
  • दिगभरम — दिग्भ्रम (दिक् + भ्रम)
  • दिग्भान्त — दिग्भ्रान्त
  • दुरावस्था — दुरवस्था
  • दुर्द्धर्ष — दुर्धर्ष (दुः + धर्ष)
  • दुर्नीवार — दुर्निवार, दुर्निवार्य
  • दुष्चरित्र, दूश्चरित्र — दुश्चरित्र
  • दुस्कर — दुष्कर
  • नभमंडल — नभोमंडल
  • नभवाणी — नभोवाणी
  • नमष्कार — नमस्कार
  • निरवान — निर्वाण
  • निरस — नीरस
  • निरिक्षण, निरीछण — निरीक्षण
  • निरोग — नीरोग
  • निर्धनी — निर्धन
  • निर्पक्ष, निश्पक्ष — निष्पक्ष
  • निर्पेक्ष — निरपेक्ष
  • निशब्द — निःशब्द (निश्शब्द)
  • निष्कषता — निष्कर्ष
  • निष्चेष्ट — निश्चेष्ट
  • निष्छल — निश्छल
  • निश्संकोच — निःसंकोच (निस्संकोच)
  • निसंदेह — निःसंदेह (निस्संदेह)
  • निसाद — निषाद
  • न्यौछावर — न्योछावर, निछावर
  • पयोपान — पयःपान
  • परिछेद — परिच्छेद
  • परिमारजन — परिमार्जन
  • परिमार्जत — परिमार्जित
  • परिस्कार — परिष्कार
  • पित्रीण — पितृण
  • पुनार्चना — पुनर्रचना (पुनः रचना)
  • पुनुरुत्थान — पुनरुत्थान
  • पुरष्कार — पुरस्कार
  • पुनराभिनय — पुनरभिनय
  • प्रतिछाया – प्रतिच्छाया
  • प्रतिद्वन्द्वीता — प्रतिद्वन्द्विता
  • प्रत्यूपकार — प्रत्युपकार
  • प्राकथन — प्राक्कथन
  • प्रागेतिहासिक — प्रागैतिहासिक (प्राक् + ऐतिहासिक)
  • प्रातोकाल — प्रातःकाल
  • भविष्यत्वाणी — भविष्यवाणी
  • भाष्कर, भाश्कर — भास्कर
  • भुख्खड़ — भुक्खड़
  • मनयोग — मनोयोग (मनः + योग)
  • मनरथ — मनोरथ
  • मनहर — मनोहर
  • मनोकल्पित — मनःकल्पित
  • मनोकष्ट — मनःकष्ट
  • मनोकामना — मनःकामना
  • मनोसाधना — मनःसाधना
  • यशलाभ — यशोलाभ
  • यावत्जीवन — यावज्जीवन
  • लघुत्तर — लघूत्तर (लघु + उत्तम)
  • विछेद — विच्छेद
  • वयक्रम — वयःक्रम
  • वयवृद्ध — वयोवृद्ध
  • वयोप्राप्त — वयःप्राप्त
  • बागार्थ — वागर्थ (वाक् + अर्थ)
  • बाग्जाल — वाग्जाल (वाक् + जाल)
  • विसाद — विषाद
  • शरचन्द्र — शरच्चन्द्र
  • शिक्षणेत्तर — शिक्षणेतर
  • शिरोपीडा — शिरःपीडा
  • षढयन्त्र — षड्यन्त्र
  • सचिदानन्द — सच्चिदानन्द (सत् + चित् + आनन्द)
  • सदोपदेश — सदुपदेश
  • सन्मत — सम्मत
  • सन्मान — सम्मान
  • सन्मुख — सम्मुख
  • सम्वरण — संवरण
  • सम्वाद — संवाद
  • सम्हार — संहार
  • सरवर — सरोवर
  • स्वयम्वर — स्वयंवर
  • हतोसाह — हतोत्साह
  • हतोसाहित — हतोत्साहित
  • हदकम्प — हत्कम्प
  • हस्ताक्षेप — हस्तक्षेप
  • हाथिनी — हथिनी

समास-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

  • शुद्ध — अशुद्ध
  • अष्टवक्र — अष्टावक्र
  • अहोरात्रि — अहोरात्र
  • आत्मापुरुष — आत्मपुरुष
  • उच्चश्रवा — उच्चैःश्रवा
  • एकतारा — इकतारा
  • एकलौता — इकलौता
  • कृतघ्नी — कृतघ्न
  • गुणीगण — गुणिगण
  • दिवारात्रि — दिवारात्र
  • दुरात्मागण — दुरात्मगण
  • निर्गुणी — निर्गुण
  • नेतागण — नेतृगण
  • निर्दोषी — निर्दोष
  • निर्दयी — निर्दय
  • पक्षीगण — पक्षिगण
  • पक्षीराज — पक्षिराज
  • पिताभक्ति — पितृभक्ति
  • प्राणीवृन्द — प्राणिवृन्द
  • भ्रातागण — भ्रातृगण
  • मनीषीगण — मनीषिगण
  • मन्त्रीवर — मन्त्रिवर
  • मन्त्रीपरिषद — मन्त्रिपरिषद्
  • मन्त्रीमंडल — मंत्रिमंडल (मन्त्रिमण्डल)
  • महात्मागण — महात्मगण
  • महाराजा — महाराज
  • मातादेव — मातृदेव
  • मातादेवी — मातृदेवी
  • माताहीन — मातृहीन
  • योगीनिद्रा — योगिनिद्रा (योग-निद्रा)
  • योगीराज — योगिराज
  • योगीवर — योगिवर
  • योगीश्वर — योगेश्वर (योग + ईश्वर)
  • योग्यतनुसार — योग्यतानुसार
  • योजनंतरगत — योजनांतर्गत
  • राजागण — राजगण
  • राजापथ — राजपथ
  • वक्तागण — वक्तृगण
  • विद्यार्थीगण — विद्यार्थिगण
  • शशीभूषण — शशिभूषण
  • सकुशलपूर्वक — सकुशल
  • सतोगुण — सत्त्वगुण
  • सलज्जित — सलज्ज
  • सशंकित — सशंक
  • सानन्दित — सानन्द
  • स्वामीभक्ति — स्वामिभक्ति (अन्य— स्वामिभक्त, स्वामिवात्सल्य, स्वामिसेवा)

हलन्त-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

  • अशुद्ध — शुद्ध
  • अर्थात — अर्थात्
  • प्रत्युत् — प्रत्युत
  • बुद्धिमान — बुद्धिमान्
  • भविष्यत — भविष्यत्
  • भाग्यवान — भाग्यवान्
  • वरन — वरन्
  • विधिवत — विधिवत्
  • श्रीमान — श्रीमान्
  • संवत — संवत्
  • सतचित — सच्चित्
  • साक्षात — साक्षात्

चन्द्रबिन्दु और अनुस्वार से सम्बन्धित अशुद्धियाँ

  • अशुद्ध – शुद्ध
  • अंगना (आँगन) — अँगना
  • अँगना (स्त्री) — अंगना
  • अंग्रेज — अँग्रेज
  • अंग्रेजी — अँग्रेजी
  • आंख — आँख
  • आंगन (सहन) — आँगन
  • उंगली — उँगली
  • उंचा — ऊँचा
  • कंपकंपी — कँपकँपी
  • कांच — काँच
  • गांधीजी — गाँधीजी
  • गूंगा — गूँगा
  • गेहूं — गेहूँ
  • चांद — चाँद
  • छटांक — छटाँक
  • जहां — जहाँ
  • जाऊंगा — जाऊँगा
  • जूं — जूँ
  • टांयटांय फिस्स — टाँयटाँय फिस्स
  • डांट — डाँट
  • तांत — ताँत
  • दांत — दाँत
  • दूंगा — दूँगा
  • पहुंच — पहुँच
  • पांचवा — पाँचवाँ
  • पूंजी — पूँजी
  • पूंजीवाद, पुजीवाद — पूँजीवाद
  • बंगला — बँगला
  • बांस — बाँस
  • महंगा — महँगा
  • मुंह — मुँह
  • सांकल — साँकल
  • सुंड — सूँड़
  • हालांकि — हालाँकि

एक शब्द के दो रूप

हिन्दी भाषा में कुछ शब्दों के दो रूप या वर्तनी मिलती है और दोनों के अर्थ समान होते हैं। यद्यपि हमें दोनों रूपों का ज्ञान तो होना चाहिए परन्तु लिखते समय इतना ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि यदि शब्द की पुनरावृत्ति हो रही हो तो एक प्रकार की ही वर्तनी या रूप का प्रयोग किया जाये। उदाहरण —

  • अंजनि — अंजनी
  • अंजली — अंजलि
  • अवनि — अवनी
  • अमिय — अमी
  • कर्ता — कर्त्ता
  • कलश — कलस
  • कुटीर — कुटिर
  • केशरी — केसरी
  • कौसल्या — कौशल्या
  • गोपिका — गोपी
  • जूआ — जुआ
  • त्रुटि — त्रुटी
  • दश — दस
  • तलुवा — तलवा
  • दम्पति — दम्पती
  • दियासलाई — दीया-सलाई
  • धरणी — धरणि
  • धूमपान — धूम्रपान
  • पपिहा — पपीहा
  • प्रतिकार — प्रतीकार
  • पृथिवी — पृथ्वी
  • बाण — वाण
  • बीभत्स — वीभत्स
  • ब्रज — व्रज
  • भूमि — भूमी
  • मणि — मणी
  • मट्टि — मट्टी
  • वशिष्ठ — वसिष्ठ
  • श्रेणि — श्रेणी
  • षट् — षड्
  • सारथी — सारथि
  • हनुमान — हनूमान

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