“किसी वाक्य के सभी अंगों को अलग-अलग कर उसके पारस्परिक सम्बन्ध दिखाने की क्रिया को वाक्य-विश्लेषण कहते हैं।” हिन्दी व्याकरण में वाक्य-विश्लेषण को ‘वाक्य-विग्रह’, ‘वाक्य-विभाजन’ और ‘वाक्य-पृथक्करण’ भी कहते हैं। वाक्य-विश्लेषण में तीन काम करने पड़ते हैं—
- वाक्य के उपवाक्यों को अलग किया जाता है।
- उपवाक्यों का नामकरण होता है।
- अन्त में पूरे वाक्य का नामकरण होता है।
‘उपवाक्य’ किसी वाक्य का एक अंश होता है। इसमें कर्ता और क्रिया का होना आवश्यक है; जैसे—
- रंजन कल विद्यालय नहीं गया; क्योंकि वह बीमार था। इस वाक्य में दो उपवाक्य है— ‘रंजन कल विद्यालय नहीं गया’ और ‘क्योंकि वह बीमार था।’ कभी-कभी वाक्य में कर्ता छिपा रहता है और कभी क्रिया छिपी रहती है।
वाक्य-विग्रह के प्रकार
सामान्यतः वाक्य-विश्लेषण दो तरह से होता है।
- वाक्य के सभी अंगों को ‘तालिका’ बनाकर, उद्देश्य और विधेय के अधीन रखकर दिखाया जाता है। सामान्यतः, सरल वाक्यों का विश्लेषण इस ढंग से किया जाता है।
- केवल उपवाक्यों को अलग-अलग कर उनके पारस्परिक सम्बन्ध बताये जाते हैं। मिश्र और संयुक्त वाक्यों का विश्लेषण इस ढंग से होता है।
वाक्य-विश्लेषण
हम जानते हैं कि रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के हैं—
- सरल वाक्य
- मिश्र वाक्य
- संयुक्त वाक्य
इस प्रकार के वाक्यों का विग्रह अलग-अलग ढंग से होता है।
- सरल वाक्य में उद्देश्य और उद्देश्य का विस्तार एवं विधेय और उसका विस्तार बताना चाहिए।
- यदि मिश्र वाक्य हो, तो प्रधान वाक्य (Principal Clause) और उसके सभी उपवाक्यों को बताकर सरल वाक्य की तरह ही सबका विग्रह करना चाहिए।
- संयुक्त वाक्य में प्रत्येक वाक्य को अलग-अलग कर उपर्युक्त रीति से ही वाक्य-विश्लेषण करना चाहिए।
सरल वाक्य का विश्लेषण
इसमें वाक्य का उद्देश्य, उद्देश्य का विस्तार, विधेय और उसका विस्तार बताये जाते हैं। यदि विधेय सकर्मक है, तो उसका कर्म और उसका विस्तार भी दिखाना पड़ता है।
सरल वाक्य और उसका वाक्य-विश्लेषण—
- भारत के राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद आज राष्ट्रधर्मविषयक भाषण करेंगे।
- मोहन का भाई मेरी पुस्तक धीरे-धीरे पढ़ता है।
- मोहन का बड़ा भाई सोहन महाभारत की कथाएँ पढ़ता है।
उद्देश्य | विधेय | ||||
उद्देश्य (कर्ता) | उद्देश्य का विस्तार | क्रिया | विधेय का विस्तार | ||
कर्म | कर्म का विस्तार | क्रिया का पूरक या अन्य विस्तार | |||
राजेन्द्र प्रसाद | भारत के राष्ट्रपति | करेंगे | भाषण | राष्ट्रधर्मविषयक | आज |
भाई | मोहन का | पढ़ता है | पुस्तक | मेरी | धीरे-धीरे |
सोहन | मोहन का बड़ा भाई | पढ़ता है | कथाएँ | महाभारत की |
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सरल वाक्य में एक उद्देश्य और विधेय का होना आवश्यक है। ये उद्देश्य और विधेय अपने विस्तार के साथ भी रह सकते हैं।
उपर्युक्त तीन सरल वाक्यों का विश्लेषण अधोलिखित ढंग से भी किया जा सकता है—
- भारत के राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद आज राष्ट्रधर्मविषयक भाषण करेंगे।
- राजेन्द्र प्रसाद— उद्देश्य (कर्ता)
- भाषण — कर्म
- करेंगे— क्रिया
- भारत के राष्ट्रपति— उद्देश्य का विस्तार
- राष्ट्रधर्मविषयक— कर्म का विस्तार
- आज— अन्य विस्तार
- मोहन का भाई मेरी पुस्तक धीरे-धीरे पढ़ता है।
- भाई— उद्देश्य (कर्ता)
- पुस्तक— कर्म
- पढ़ता है— क्रिया
- मोहन का— उद्देश्य का विस्तार
- मेरी— कर्म का विस्तार
- धीरे-धीरे— क्रिया का विस्तार
- मोहन का बड़ा भाई सोहन महाभारत की कथाएँ पढ़ता है।
- सोहन — उद्देश्य (कर्ता)
- कथाएँ— कर्म
- पढ़ता है— क्रिया
- मोहन का बड़ा भाई— उद्देश्य का विस्तार
- महाभारत की— कर्म का विस्तार
उद्देश्य के विभिन्न रूप
सरल वाक्यों में उद्देश्य और विधेय की पहचान आसानी से करने के लिए अधोलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए। इन वाक्यों में उद्देश्य (कर्ता) अनेक रूपों में आते हैं; जैसे—
- संज्ञा—
- श्याम हँसता है।
- राम भोजन कर रहा है।
- सर्वनाम—
- मैं खाता हूँ।
- वह रो रहा है।
- विशेषण—
- गरीब आदमी दुःख पाता है।
- अमीर व्यक्ति सुख भोग रहा है।
- क्रियार्थक संज्ञा—
- नाचना लाभदायक है।
- खेलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
- वाक्यांश—
- आपकी परीक्षा लेना अनुचित होगा।
- वाक्य—
- क्रान्ति चिरंजीवी हो, यह हमारा नारा है।
उद्देश्य का विस्तार
उद्देश्य का विस्तार भिन्न-भिन्न रूपों के विशेषणों से किया जाता है। उदाहरणार्थ—
- विशेषण—
- सुशील बालक बैठा है।
- नटखट बालक आज शांत है।
- सार्वनामिक विशेषण—
- वह बालक बैठा है।
- सम्बन्धकारक—
- माँ का लड़का कहाँ गया ?
- वाक्यांश—
- प्रकृति की गोद में खेलता बालक बड़ा मोहक है।
विधेय का विस्तार
विधेय का विस्तार निम्नलिखित स्थितियों में होता है—
- कारक से—
- तीर से मारा।
- क्रियाविशेषण से—
- जल्दी-जल्दी चलता है।
- वाक्यांश—
- राम पाँच बजे के बाद ही घर पहुँचता है।
- पूर्वकालिक क्रिया से—
- वह हँसकर विदा हुआ।
- क्रियाद्योतक से—
- मोटर पों-पों करती हुई निकल गयी।
मिश्र वाक्य का विश्लेषण
जिस वाक्यरचना में एक से अधिक सरल वाक्य हों और उनमें एक प्रधान हो और शेष उसके आश्रित हों, उसे ‘मिश्र वाक्य’ कहते हैं।
इस प्रकार के वाक्य में एक ‘प्रधान वाक्य’ रहता है और शेष वाक्यांश, जिन्हें ‘आश्रित उपवाक्य’ कहते हैं, उसपर आश्रित होते हैं। जब वाक्य पूरे वाक्य से अलग अर्थ को खण्डित किये बिना लिखा जाये, तब वह ‘प्रधान उपवाक्य’ होता है। जब उपवाक्य पूरे वाक्य से अलग नहीं किया जाये, तब वह ‘आश्रित उपवाक्य’ होता है। ये दूसरे उपवाक्यों पर आश्रित हैं। ऐसे वाक्यों का आरम्भ कि, ताकि, जिससे, जो, जितना, ज्योंही, ज्यों-ज्यों, चूँकि, क्योंकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ इत्यादि से होता है।
आश्रित उपवाक्य (Subordinate Clause) तीन प्रकार के होते हैं—
- संज्ञा-उपवाक्य
- विशेषण-उपवाक्य
- क्रियाविशेषण-उपवाक्य
उदाहरण और विग्रह—
मिश्र वाक्य— जो व्यक्ति महान् हो चुके हैं, उनके जीवन की दिनचर्या और रहन-सहन से पता चलता है कि उनका जीवन सादगी से व्यतीत होता था।
इस वाक्य में निम्नलिखित उपवाक्य (Clause) हैं—
- उनके जीवन की दिनचर्या तथा रहन-सहन से पता चलता है— मुख्य उपवाक्य (Principal Clause)।
- जो व्यक्ति महान् हो चुके हैं— विशेषण उपवाक्य। (‘मुख्य उपवाक्य’ में प्रयुक्त ‘उनके’ सर्वनाम की विशेषता बतलाता है।)
- कि उनका जीवन सादगी से व्यतीत होता था— संज्ञा उपवाक्य। (‘मुख्य उपवाक्य’ में प्रयुक्त ‘पता’ संज्ञा का समानाधिकरण है।)
संयुक्त वाक्य का विग्रह
जिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अव्यय द्वारा होता है, उसे ‘संयुक्त वाक्य’ (Compound Sentence) कहते हैं। उदाहरण—
- रात हुई और तारे निकले।
- इसमें दो सरल वाक्यों का प्रयोग हुआ है।
- इन दोनों को संयुक्त करनेवाला संयोजक अव्यय ‘और’ है।
- पहला वाक्य ‘रात हुई’ मुख्य वाक्य है और दूसरा वाक्य उससे सम्बद्ध है।
- यदि ‘और’ को हटा दिया जाय, तो दोनों वाक्य अपने में पूर्ण स्वतन्त्र हो जायेंगे।
- दोनों वाक्यों का विग्रह सरल वाक्य के विग्रह के अनुसार करना चाहिए।
- तुमने इस बार अधिक परिश्रम किया है, इसलिए सफलता की अधिक आशा है, परन्तु मनुष्य के भाग्य का निर्णय ईश्वर के अधीन है।
- तुमने इस बार अधिक परिश्रम किया है— मुख्य वाक्य।
- इसलिए सफलता की अधिक आशा है— ‘मुख्य वाक्य’ का समानाधिकरण वाक्य।
- परन्तु मनुष्य के भाग्य का निर्णय ईश्वर के अधीन है— ‘मुख्य वाक्य’ का समानाधिकरण वाक्य।
- संयोजक – इसलिए, परन्तु।
- यहाँ तीन सरल वाक्यों का व्यवहार हुआ है, जिन्हें संयुक्त करनेवाले दो संयोजक अव्यय हैं- ‘इसलिए’ और ‘परन्तु’। इनके बिना उक्त वाक्यों का सम्बन्ध टूट जायेगा।
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