निर्दोष वाक्य लिखने के लिए वाक्य रचना के कुछ सामान्य नियम हैं। इनकी सहायता से शुद्ध वाक्य लिखने का प्रयास किया जा सकता है। ये सामान्य नियम वाक्य शुद्धि में सहायता करते हैं। इन नियमों को अधोलिखित शीर्षकों के माध्यम से संक्षिप्त में समझ सकते हैं—
- पदक्रम (word-order) से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियम
- अन्वय (co-ordination) से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियम
- प्रयोग (use) से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियम
पदक्रम
किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखने की क्रिया को ‘क्रम’ अथवा पदक्रम’ कहते हैं। प्रत्येक वाक्य में ‘पद’ एक निश्चित क्रम में आते हैं। कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया-विशेषण, क्रिया आदि सामान्यतः जिस क्रम में आते हैं, उसे पदक्रम कहते हैं। हिन्दी वाक्य व्यवस्था में या पदक्रम में “कर्ता + कर्म + क्रिया” आते हैं; जैसे—
- मोहन (कर्ता) सेब (कर्म) खाता है (क्रिया)।
- राजू (कर्ता) ने किताब (कर्म) फाड़ दी (क्रिया)।
विस्तृत विवरण के लिए देखें— पदक्रम
अन्विति या अन्वय (मेल)
वाक्य में पदों की परस्पर संगति को ‘अन्विति’ कहते हैं। इसमें वाक्य के किसी एक पद (संज्ञा, सर्वनाम आदि) के लिंग, वचन या पुरुष के अनुसार दूसरे पद विशेषण और क्रिया में रूप-परिवर्तन होता है। ‘अन्वय’ में लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभिन्न पदों (शब्दों) का एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया का, कर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता है; जैसे—
- सोहन बर्फी खा रहा है।
- शिखा आम खा रही है।
- रोहन ने बर्फी खायी।
- साक्षी ने आम खाया।
उपर्युक्त वाक्यों में वाक्य (1) में ‘सोहन’ कर्ता पुल्लिंग एकवचन के अनुसार क्रियापद ‘खा रहा है’ पुल्लिंग और एकवचन है। वाक्य (2) में ‘शिखा’ कर्ता स्त्रीलिंग एकवचन है इसलिए क्रियापद ‘खा रही है’ भी उसी के अनुसार परिवर्तित हो गया है। वाक्य (3) में ‘बर्फी’ कर्म स्त्रीलिंग एक वचन है अतः क्रियापद ‘खायी’ स्त्रीलिंग एकवचन है और वाक्य (4) में ‘आम’ कर्म पुल्लिंग एकवचन है, उसी के अनुसार ‘खाया’ क्रियापद पुल्लिंग एकवचन में परिवर्तित हो गया है।
विस्तृत विवरण के लिए देखें— अन्विति या अन्वय (मेल)
वाक्यगत प्रयोग
वाक्य का सारा सौन्दर्य पदों अथवा शब्दों के समुचित प्रयोग पर आश्रित है। पदों के स्वरूप और औचित्य पर ध्यान रखे बिना शिष्ट और सुन्दर वाक्यों की रचना नहीं होती। प्रयोग-सम्बन्धी कुछ आवश्यक निर्देश अधोलिखित हैं—
कुछ आवश्यक निर्देश अधोलिखित हैं—
- एक वाक्य से एक ही भाव प्रकट हो।
- शब्दों का प्रयोग करते समय व्याकरण-सम्बन्धी नियमों का पालन हो।
- वाक्य रचना में अधूरे वाक्यों को नहीं रखा जाये।
- वाक्य-योजना में स्पष्टता और प्रयुक्त शब्दों में शैली-सम्बन्धी शिष्टता हो।
- वाक्य में शब्दों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हो। तात्पर्य यह कि वाक्य में सभी शब्दों का प्रयोग एक ही काल में, एक ही स्थान में और एक ही साथ होना चाहिए।
- वाक्य में ध्वनि और अर्थ की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- वाक्य में व्यर्थ शब्द न आने पायें।
- वाक्य-योजना में आवश्यकतानुसार जहाँ-तहाँ मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हो।
- वाक्य में एक ही व्यक्ति या वस्तु के लिए कहीं ‘यह’ और कहीं ‘वह’, कहीं ‘आप’ और कहीं ‘तुम’, कहीं ‘इसे’ और कहीं ‘इन्हें’, कहीं ‘उसे’ और कहीं ‘उन्हें’, कहीं ‘उसका’ और कहीं ‘उनका’, कहीं ‘इनका’ और कहीं ‘इसका’ प्रयोग नहीं होना चाहिए।
- वाक्य में पुनरुक्ति दोष नहीं होना चाहिए। शब्दों के प्रयोग में औचित्य पर ध्यान देना चाहिए।
- वाक्य में अप्रचलित शब्दों का व्यवहार नहीं होना चाहिए।
- परोक्ष कथन (Indirect narration) हिन्दी भाषा की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है। उदाहरणार्थ यह वाक्य अशुद्ध है— उसने कहा कि उसे कोई आपत्ति नहीं है। इसमें ‘उसे’ के स्थान पर ‘मुझे’ होना चाहिए।
वाक्य शुद्धि के लिए अन्य ध्यातव्य बातें
‘प्रत्येक’, ‘किसी’, ‘कोई’ का प्रयोग— ये सदा एकवचन में प्रयुक्त होते हैं, बहुवचन में प्रयोग अशुद्ध है; जैसे—
- प्रत्येक का प्रयोग—
- प्रत्येक व्यक्ति जीना चाहता है। (व्यक्तियों पद का प्रयोग अशुद्ध)
- प्रत्येक पुरुष से मेरा निवेदन है। (पुरुषों पद का प्रयोग अशुद्ध)
- किसी का प्रयोग—
- किसी व्यक्ति का वश नहीं चलता।
- किसी-किसी का ऐसा कहना है।
- किसी ने कहा था।
- कोई का प्रयोग—
- मैंने अब तक कोई काम नहीं किया।
- कोई ऐसा भी कह सकता है।
‘कोई’ और ‘किसी’ के साथ ‘भी’ का प्रयोग अशुद्ध है—
- ‘कोई भी होगा, तब काम चल जायेगा।’ इस वाक्य में ‘भी’ अनावश्यक है। कोई ‘कोऽपि’ का तद्भव है। ‘कोई’ और ‘किसी’ में ‘भी’ का भाव निहित है।
‘द्वारा’ का प्रयोग— किसी व्यक्ति के माध्यम (through) से जब कोई काम होता है, तब संज्ञा के बाद ‘द्वारा’ का प्रयोग होता है; वस्तु (संज्ञा) के बाद से लगता है; जैसे—
- सुरेश द्वारा यह कार्य सम्पन्न हुआ।
- युद्ध से देश पर संकट छाता है।
‘सब’ और ‘लोग’ का प्रयोग— सामान्यतः दोनों बहुवचन है।
- परन्तु कभी-कभी ‘सब’ का समुच्चय-रूप में एकवचन में भी प्रयोग होता हैं; जैसे –
- तुम्हारा सब काम गलत होता है।
- यदि काम की अधिकता का बोध हो तो ‘सब’ का प्रयोग बहुवचन में होगा; जैसे –
- सब यही कहते हैं।
- हिन्दी में ‘सब’ समुच्चय और संख्या दोनों का बोध कराता है।
- ‘लोग’ सदा बहुवचन में प्रयुक्त होता है; जैसे—
- लोग अन्धे नहीं हैं।
- लोग ठीक ही कहते हैं।
- कभी-कभी ‘सब लोग’ का प्रयोग बहुवचन में होता है। ‘लोग’ कहने से कुछ व्यक्तियों का और ‘सब लोग’ कहने से अनगिनत और अधिक व्यक्तियों का बोध होता है; जैसे—
- सब लोगों का ऐसा विचार है।
- सब लोग कहते हैं कि स्वामी विवेकानंद महापुरुष थे।
व्यक्तिवाचक संज्ञा और क्रिया का मेल— यदि व्यक्तिवाचक संज्ञा कर्ता है, तो उसके लिंग और वचन के अनुसार क्रिया के लिंग और वचन होंगे; जैसे—
- ‘काशी सदा भारतीय संस्कृति का केन्द्र रही है।’ इस वाक्य में कर्ता स्त्रीलिंग है।
- ‘पहले कलकत्ता भारत की राजधानी था।’ इस वाक्य में कर्ता पुल्लिंग है।
- ‘उसका ज्ञान ही उसकी पूँजी था।’ इस वाक्य में कर्ता पुल्लिंग है।
समय सूचक समुच्चय का प्रयोग— “तीन बजे हैं। आठ बजे हैं।” इन वाक्यों में तीन और आठ बजने का बोध समुच्चय में हुआ है।
‘पर’ और ‘ऊपर’ का प्रयोग— ‘ऊपर’ और ‘पर’ व्यक्ति और वस्तु दोनों के साथ प्रयुक्त होते हैं। परन्तु ‘पर’ सामान्य ऊँचाई का और ‘ऊपर’ विशेष ऊँचाई का बोधक है; जैसे—
- पहाड़ के ऊपर एक मन्दिर है।
- इस विभाग में मैं सबसे ऊपर हूँ।
हिन्दी में ‘ऊपर’ की अपेक्षा ‘पर’ का व्यवहार अधिक होता है; जैसे—
- मुझपर कृपा करो।
- छत पर लोग बैठे हैं।
- गोप पर अभियोग है।
- मुझपर तुम्हारे एहसान हैं।
‘बाद’ और ‘पीछे’ का प्रयोग— यदि काल का अन्तर बताना हो, तो ‘बाद’ का और यदि स्थान का अन्तर सूचित करना हो, तो ‘पीछे’ का प्रयोग होता है; जैसे—
- काल का अन्तर
- उसके बाद वह आया।
- मेरे बाद इसका नम्बर आया।
- स्थान का अन्तर
- उसका घर पीछे छूट गया।
- गाड़ी पीछे रह गयी।
- मैं उससे बहुत पीछे हूँ।
नए, नये, नई, नयी का शुद्ध प्रयोग—
- जिस शब्द का अन्तिम वर्ण ‘या’ है उसका बहुवचन ‘ये’ होगा। नया मूल शब्द है, इसका बहुवचन ‘नये’ और स्त्रीलिंग ‘नयी’ होगा।
- गए, गई, गये, गयी का शुद्ध प्रयोग— मूल शब्द गया है। उपरिलिखित नियम के अनुसार गया का बहुवचन ‘गये’ और स्त्रीलिंग गयी होगा।
- हुये, हुए, हुयी, हुई का शुद्ध प्रयोग— मूल शब्द हुआ है और यह एकवचन है। इसका बहुवचन होगा ‘हुए’; ‘हुये’ नहीं। ‘हुआ’ का स्त्रीलिंग ‘हुई’ होगा; ‘हुयी’ नहीं।
- किए, किये, का शुद्ध प्रयोग— किया मूल शब्द है; इसका बहुवचन ‘किये’ होगा।
- लिए, लिये का शुद्ध प्रयोग— दोनों शुद्ध रूप हैं। परन्तु जहाँ अव्यय व्यवहृत होगा वहाँ ‘लिए’ आयेगा; जैसे— मेरे लिए उसने जान दी। क्रिया के अर्थ में ‘लिये’ का प्रयोग होगा; क्योंकि इसका मूल शब्द ‘लिया’ है।
- चाहिये, चाहिए का शुद्ध प्रयोग— ‘चाहिए’ अव्यय है। अव्यय विकृत नहीं होता। इसलिए चाहिए का प्रयोग शुद्ध है; ‘चाहिये’ का नहीं।
- इसलिए और इसलिये का प्रयोग— ‘इसलिए’ अव्यय है। अव्यय विकृत नहीं होता। अतः ‘इसलिए’ का प्रयोग शुद्ध है; इसलिये का नहीं।