शब्द
किसी भी भाषा में जो शब्द प्रयुक्त होते हैं उसके समूचे समूह को उस भाषा का ‘शब्द भंडार’ या ‘शब्द संपदा’ कहते हैं। ‘शब्द’ ध्वनियों का एक निश्चित सार्थक क्रम है या ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्णसमुदाय को ‘शब्द’ कहते हैं।
शब्द की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं :
- निश्चित क्रमबद्धता : शब्दों की रचना ध्वनियों के निश्चित क्रम से होती है। क्रम परिवर्तन करने से शब्द का अर्थ ही बदल जाता है; जैसे — कमल तथा कलम।
- अर्थवान इकाई : भाषा में शब्द का निश्चित अर्थ होता है। ये अर्थवान शब्द ध्वनियों के निश्चित क्रम में आने से ही बनते हैं; जैसे – ‘कलम’ शब्द में क, ल, म ध्वनियाँ निश्चित क्रम में हैं। इन्हें म, क, ल अथवा ल,क,म के क्रम मे रखने से अर्थवान शब्द नहीं बनेगा।
- स्वतंत्र प्रयोग : भाषा में शब्दों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से होता है; जैसे – लड़का, घोड़ा, किताब, मिठाई, पढ़ाई। इन शब्दों की स्वतंत्र सत्ता है। इसके विपरीत कुछ इकाइयाँ (शब्दांश) अर्थवान होती हैं लेकिन वे हमेशा स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर किसी शब्द के साथ जुड़कर ही अपना अर्थ देती हैं; जैसे — ईमानदार में ‘दार’ और मिठाईवाला में ‘वाला’।
शब्द अकेले और कभी दूसरे शब्दों के साथ मिलकर अपना अर्थ प्रकट करते हैं। इन्हें हम दो रूपों में पाते हैं :
- एक तो इनका अपना बिना मिलावट का रूप है, जिसे संस्कृत में प्रकृति या प्रातिपदिक कहते हैं।
- दूसरा वह जो कारक, लिंग, वचन, पुरुष और काल बतानेवाले अंश को आगे-पीछे लगाकर बनाया जाता है, जिसे पद कहते हैं। यह वाक्य में दूसरे शब्दों से मिलकर अपना रूप वाक्य के अनुसार सँवार लेता है।
शब्दों की रचना ‘ध्वनि और अर्थ’ के योग से होती है। एक या अधिक वर्णों से बनी स्वतन्त्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं; जैसे — बालिका, काम, मैं, धीरे, परन्तु इत्यादि। अतः शब्द मौलिक रूप से या तो ध्वन्यात्मक होंगे अथवा वर्णात्मक। परन्तु व्याकरण में ध्वन्यात्मक शब्दों की अपेक्षा वर्णात्मक शब्दों का अधिक महत्त्व है। वर्णात्मक शब्दों में भी केवल उन्हीं शब्दों का महत्त्व है, जो सार्थक हैं, जिनका अर्थ स्पष्ट और सुनिश्चित है। व्याकरण में निरर्थक शब्दों पर विचार नहीं होता।
सामान्यतः शब्द दो प्रकार के होते हैं :
सार्थक शब्दों के अर्थ होते हैं और निरर्थक शब्दों के अर्थ नहीं होते। उदाहरणार्थ – ‘पानी’ सार्थक शब्द है और ‘नीपा’ निरर्थक शब्द, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं है। अक्सर बोलचाल में सार्थक और निरर्थक शब्दों का साथ-साथ उच्चारण देखने को मिलता है; यथा — पानी-वानी, किताब-उताब, कलम-वलम। इसमें पानी, किताब और कलम सार्थक शब्द हैं जबकि वानी, उताब और वलम निरर्थक शब्द।
शब्दों का वर्गीकरण
- स्रोत के आधार पर
- तत्सम
- तद्भव
- देशज
- विदेशी
- संकर
- रचना या गठन के आधार पर
- प्रयोग का आधार पर
- रूप या प्रयोग के आधार पर
स्रोत या उत्पत्ति का आधार
व्युत्पत्ति, स्रोत या इतिहास की दृष्टि से हिन्दी शब्दभंडार के चार भेद हैं : तत्सम, तद्भव, देशज (देशी) और विदेशी।
तत्सम
तत्सम अर्थात् उस (संस्कृत) के समान।
- समान ही नहीं, अपितु शुद्ध संस्कृत के शब्द जो हिन्दी में ज्यों-के-त्यों प्रचलित हैं। साधारण जन की भाषा में माता, पिता, नेता, राजा, मंत्री, देवता, जप, तप, दान, मुक्ति, हत्या, जल, फल, अन्न, अंग, अंत, इच्छा, आज्ञा, आसन, उपकार, दया, उपदेश, संत, महात्मा, साधु, दंड आदि सैकड़ों संस्कृत के शब्द मिल जाते हैं।
- पढ़े-लिखे लोगों के शब्द भंडार में इनकी संख्या अधिक होती है। उदाहरण — अंधकार, अक्षर, अग्नि, अतिथि, अधिक, अधिकार, अधीर, अध्यापक, अन्याय, अनेक, अभिमान, अर्थ, अशान्ति, असंतोष, आकार, आपत्ति, आवश्यकता, ईश्वर, उन्नति, उत्तम, उत्तर, उदार, उचित, उत्सव, औषधालय, कार्य, केश, गुप्त, घातक, चतुर, छाया, ज्वर, जन्म, दक्षिण, धातु, नियम, प्राप्त, प्राण, प्रातः, बुद्धि, महिला, रक्षा, वस्तु, विद्या, विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य, सत्य, हानि।
- बोलचाल की अपेक्षा लिखित भाषा में संस्कृत या तत्सम शब्दावली का प्रयोग अधिक होता है। लिखित भाषा में भी कहानी की अपेक्षा कविता में साधारणतः तत्सम शब्द अधिक होते हैं और विचारप्रधान निबन्धों में उससे भी अधिक ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में तत्सम शब्दावली के बिना काम नहीं चलता।
तद्भव
तद्भव का अर्थ है — ‘उस (संस्कृत) से उत्पन्न’ या विकसित ; जैसे—अंधकार से अंधेरा, अग्नि से आग, अट्टालिका से अटारी, अष्ट से आठ, अर्ध से आधा, अश्रु से आँसू, आश्रय से आसरा, उच्च से ऊँचा, उष्ट्र से ऊँट, ओष्ठ से ओंठ, काष्ठ से काठ, कपाट से किवाड़, कर्म से काम, कर्ण से कान, कुपुत्र से कपूत, क्षीर से खीर, क्षेत्र से खेत, गृह से घर, ग्रन्थि से गाँठ, घृणा से घिन, घृत से घी, चन्द्र से चाँद, चर्मकार से चमार, छत्र से छाता, छिद्र से छेद, जिह्वा से जीभ, दुग्ध से दूध, दंत से दाँत, दुर्बल से दुबला, धूम्र से धुआँ, नग्न से नंगा, निद्रा से नींद, नृत्य से नाच, पत्र से पत्ता, पुराण से पुराना, पौष से पूस, पृष्ठ से पीठ, बधिर से बहरा, मृत्यु से मौत, मित्र से मीत, मुख से मुँह, रात्रि से रात, लौह से लोहा, लक्ष से लाख, व्याघ्र से बाघ, शय्या से सेज, शत से सौ, श्वास से साँस, सप्त से सात, सर्प से साँप।
विदेशी शब्द
विदेशी शब्द तुर्की, अरबी, फ़ारसी आदि एशिया की भाषाओं से, और अंग्रेज़ी फ्रेंच पुर्तगाली आदि यूरोपीय भाषाओं से आये हैं। उदाहरण —
तुर्की से – उर्दू, कालीन, काबू, कैंची, करता, कुर्की, कुली, खच्चर, गलीचा, चाकू, चिक, चम्मच, चकमक, चेचक, तलाश, तोप, तोशक, दरोगा, बारूद, बहादुर, बेगम, लफंगा, लाश, सराय, सुराग।
अरबी से – अजब, अजीब, अदालत, अक्ल, अल्लाह, असर, आखिर, आदमी, इनाम, इजलास, इज्जत, इलाज, ईमान, उम्र, एहसान, औरत, औसत, कब्र, कमाल, कर्ज, किस्मत, कीमत, किताब, कुरसी, ख़त, ख़त्म, खिदमत, ख्याल, जिस्म, जुलूस, जलसा, जवाब, जहाज, जलेबी ज़िक्र, तमाम, तकदीर, तारीख, तकिया, तरक्की, दवा, दावा, दिमाग़, दुकान, दुनिया, नतीजा, नहर, नकल, फकीर, फिक्र, फैसला, बहस, बाकी, मुहावरा, मदद, मजबूर, मुकदमा, मौसम, मौलवी, मुसाफ़िर, यतीम, राय, लिफ़ाफ़ा, वारिस, शराब, हक, हज़म, हाजिर, हिम्मत, हुक्म, हैज़ा, हौसला, हकीम, हलवाई।
फ़ारसी से – आबरू, आतिशबाजी, आफ़त, आराम, आमदनी, आवारा, आवाज़, उम्मीद, उस्ताद, कमीरा, कारीगर, किशमिश, कुरता, कुश्ती, कूचा, ख़ाक, खुद, खुदा, ख़ामोश, खुराक, गरम, गज, गवाह, गिरफ्तार, गिर्द, गुलाब, चादर, चालाक, चश्मा, चेहरा, जहर, जलसा, जुलूस, ज़ोर, जिन्दगी, जागीर, जादू, जुरमाना, जोश, तबाह, तमाशा, तन्खाह, ताज़ा, तेज़, दंगल, दफ़तर, दरबार, दवा, दिल, दीवार, नापसंद, नापाक, पाजामा, परदा, पैदा, पुल, पेश, बारिश, बीमार, बुख़ार, बर्फीं, मज़ा, मलाई, मकान, मज़दूर, मुश्किल, मोरचा, याद, यार, रंग, राह, लगाम, लेकिन, वापिस, शादी, सितार, सरदार, समोसा, साल, सरकार, हफ्ता, हज़ार।
चीनी – चाय, लीची।
जापानी – झम्पान, रिक्शा।
पुर्तगाली – अनन्नास, आलपिन, कमरा, गमला, गिरजा, चाबी, तौलिया, नीलाम, पपीता, पाव (रोटी), फ़ीता, पादरी, बंबा, बाल्टी, फीता, आलमारी, संतरा, साबुन।
फ्रेंच – अंग्रेज, कारसूत, कूपन, फ्रांसीसी।
डच – तुरुप, बम (टाँगे का)।
रूसी – रूबल, वोदका, स्पुतनिक।
अंग्रेज़ी – विदेशी शब्दों में पढ़े-लिखे लोगों की शब्दावली में अंग्रेज़ी के ढेरों शब्द पाये जाते हैं। इनमें कुछ तो साधारण जनता में भी प्रचलित हैं। उदाहरण- अपील, कोर्ट, मजिस्ट्रेट, जज, पुलिस, टैक्स, कलक्टर, डिप्टी, आफ़िसर, वोट, पेन्शन, कापी, पेंसिल, पेन, पिन, पेपर, लाइब्रेरी, स्कूल, कालेज; अस्पताल, डाक्टर, कंपाउंडर, नर्स, आपरेशन, वार्ड: प्लेग, मलेरिया, कालरा, हार्निया, डिपथीरिया, कैंसर; कोट, कालर, पैंट, हैट, बुशशर्ट, स्वेटर, हैट, बूट, जम्पर, ब्लाउस; कप, प्लेट, जग; लैम्प, सूटकेस, गैस, माचिस; केक, टाफ़ी, बिस्कुट, टोस्ट, चाकलेट, जैम, जेली; ट्रेन, बस, कार, मोटर, लारी, स्कूटर, साइकिल, बैटरी, ब्रेक, इंजन; यूनियन, रेल, टिकट, पार्सल, पोस्ट कार्ड, मनी आर्डर, स्टेशन, आफिस, क्लर्क, गार्ड, एजंट।
देशज (देशी)
देशज (देशी) का अर्थ है अपने ‘देश में, उत्पन्न जो शब्द न विदेशी है, न तत्सम हैं और न तद्भव हैं। ऐसे शब्द दो प्रकार के हैं :
- एक वे जो अनार्य भाषाओं (विशेषतः द्रविड़ भाषाओं) से अपनाये गये हैं।
- दूसरे वे जो लोगों ने ध्वनियों की नकल में गढ़ लिये हैं।
उदाहरण :
द्रविड़ भाषाओं से – उड़द, ओसारा, कच्चा, कज्जल, कटोरा, काच, काका, केड, कुटी, कुप्पी, केतकी, घुण, चंदन, चक्का, चिकना, चूड़ी, झंडा, झूठ, टंटा, टोपी, ठेस, डंका, नीर, पापड़, पिंड, पेट, भंगी, माला, मीन, मुकुट, लाठी, लोटा, सूजी। इधर, इडली, डोसा, सांभर, पिल्ला आदि अनेक शब्द आ गये हैं।
अपनी गठन से – अनुकरणात्मक या ध्वन्यात्मक शब्द – अंडबंड, ऊटपटाँग, कड़क, किलकारी, खटपट, खर्राटा, गड़गड़, चटक, चटपटा, चिड़चिड़ा, चुटकी, छिछला, झंकार, टंकार, ठठेरा, भभक, भोंपू, कटकटाना, खटखटाना, खुरचना, घुड़की, सनसनाहट, हिनहिनाना।
संकर शब्द
कुछ संकर शब्द भी होते हैं, जिनमें दो-दो भाषाओं के तत्त्वों का मिश्रण होता है; जैसे — बेअदब, बेकाबू, बेघर आदि। संकर शब्द भी दो प्रकार से निर्मित होते हैं –
एक, भाषा के उपसर्ग या प्रत्यय और दूसरी भाषा का शब्द मिलकर बने शब्द : उदाहरणार्थ —
- उपसर्ग से : बे (फ़ारसी उपसर्ग) – बेअदब, बेअसर, बेकाबू, बेखटके, बेघर, बेचैन।
- प्रत्यय से : दार (फ़ारसी प्रत्यय) – इलाक़ेदार, चौकीदार, तहसीलदार, थानेदार, समझदार।
द्वितीय, समास पद्धति के आधार पर दो भाषाओं से निर्मित शब्द : उदाहरणार्थ — खेल-तमाशा, मालगाड़ी, रेलगाड़ी।
खेल-तमाशा |
खेल + तमाशा |
हिन्दी + अरबी |
मालगाड़ी |
माल + गाड़ी |
अरबी + हिन्दी |
रेलगाड़ी |
रेल + गाड़ी |
अंग्रेज़ी + हिन्दी |
टिकट घर |
टिकट + घर |
अंग्रेज़ी + हिन्दी |
कपड़ा मिल |
कपड़ा + मिल |
हिन्दी + अंग्रेज़ी |
लाठीचार्ज |
लाठी + चार्ज |
हिन्दी + अंग्रेज़ी |
बजट सत्र |
बजट + सत्र |
अंग्रेज़ी + हिन्दी |
बीमा पॉलिसी |
बीमा + पॉलिसी |
हिन्दी + अंग्रेज़ी |
रोज़गार समाचार |
रोजगार + समाचार |
फ़ारसी + संस्कृत |
इन शंकर शब्दों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विदेशी शब्दों का हिन्दीकरण एक समृद्ध शब्द सम्पदा का गुण है। हिन्दी का प्रयोग विभिन्न ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है जिसके कारण अन्य भाषा के प्रभावों से संकर शब्दों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रस्तुत हैं कुछ और उदाहरण —
थानेदार (हिन्दी + फ़ारसी), वोटदाता (अंग्रेजी + तत्सम), फ़ैशनपरस्त (अंग्रेजी + फ़ारसी), बदहज़मी (फ़ारसी + अरबी), परदानशीन (अरबी+फ़ारसी), लाजशरम (हिन्दी+फ़ारसी), मोटरगाड़ी (अंग्रेजी + देशज)।
गठन का आधार
गठन या बनावट के आधार पर शब्दों के तीन भेद किये गये हैं – रूढ़, यौगिक और योगरूढ़।
रूढ़ शब्द
रूढ़ शब्द का गठन एक सार्थक इकाई से हुआ हो, जिसके अर्थवान खंड न हो सकें, जैसे – खंड, बल, चाल, रूप, भेद, सुन, भीड़, कुछ, मैं।
यौगिक शब्द
यौगिक शब्द जिनका गठन एक से अधिक सार्थक इकाइयों से हुआ हो; जैसे — पीलापन, दूधवाला, रामलाल, दीनबन्धु, उपमंत्री, अपकार, मच्छरदानी, कर्मचारी। ऐसे शब्द उपसर्ग (अप, अधि, अधः, उप, अनु, आदि), प्रत्यय (त्व, मान्, चर, कार, पन, आनी, आलु, आदि) और समास द्वारा बनते हैं।
योगरूढ़ शब्द
योगरूढ़ शब्द यौगिक तो होते हैं, परन्तु जिनका अर्थ रूढ़ हो जाता है। यौगिक होते हुए भी ये शब्द एक इकाई हो जाते हैं; जैसे – दशरथ, हनुमान, पंकज, गिरधारी, नीलकंठ, त्रिनेत्र, लंबोदर, लालफीताशाही।
प्रयोग-क्षेत्र का आधार
प्रयोग-क्षेत्र के आधार पर शब्दों के दो भेद हैं — सामान्य शब्द और पारिभाषिक शब्द।
सामान्य शब्द
सामान्य शब्द सामान्य भाषा में, जीवन के साधारण क्षेत्रों में प्रयुक्त होते हैं। उदाहरण — चलना, फिरना, भरा, खाली, उलटा, टेढ़ा, पानी, दाल, रोटी, चाय, शरबत, लिखाई, पढ़ाई, दुकान, दफ्तर, गाड़ी, बस, साइकिल, टाँगा, धोती, पाजामा, कोट, कालर, किताब, पुस्तक, कलम, स्याही, कागज़ सामान्य शब्द हैं।
पारिभाषिक शब्द
पारिभाषिक शब्द विशिष्ट क्षेत्रों जैसे विज्ञान, दर्शन, अर्थशास्त्र, विधि, यान्त्रिकी, आयुर्वेद आदि में प्रयुक्त होते हैं।
पारिभाषिक शब्द शासन में – वरीयता, वरिष्ठता, शासन, प्रशासन, अनुशासन, आय-व्ययक, अधिनियम, नियम, विनियम, विधि, उपविधि, विधान, प्रावधान, सचिव, निदेशक, न्यायाधीश, न्यायमूर्ति, वादी, प्रतिवादी।
विज्ञान में – संकरण, परासंक्रमण, अणुसंकरण, परागण, परनिषेचन, पारसंयुग्मन, सम्बन्धन, सहसम्बन्धन, पराबैंगनी, एक्स-रे, अणुसूत्र, केन्द्रक, तुल्यभार, विद्युद्दर्शी।
आयुर्वेद में – जाति जैविकी, प्रजातीय एकक, अल्परक्तता, रक्तचाप, अस्थिद्विभंग, रेशेदार, विभंग, पैत्तिक ज्वर, सतत ज्वर, विरामी ज्वर, इत्यादि।
अर्थशास्त्र में – अनिवार्य अर्जन, शाहजोग चेक, धनादेश, अर्थव्यवस्था, अधिशेष, प्रतिभू, अभ्यर्पणमूल्य।
इसी प्रकार प्रत्येक ज्ञान-विज्ञान की शाखा में विशिष्ट शब्दों का प्रयोग होता है।
रूप या प्रयोग का आधार
रूप या प्रयोग के आधार पर कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनका वाक्य में प्रयोग होने पर रूप बदलता है और कुछ ऐसे हैं जिनका रूप नहीं बदलता। उदाहरण :
‘मुझे अपने कमरे में अभी तक क्यों सोने दिया।’
इस वाक्य में, अपना, कमरा, सोना और देना शब्द वाक्य में पड़कर बदल गये हैं। यही शब्द किसी और वाक्य में मुझसे, अपनी, कमरों, सोया, दी या देता के रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं। ऐसे शब्दों को विकारी शब्द कहते हैं।
अभी, तक, क्यों, कल, आज आदि बहुत से शब्द ऐसे हैं जिनका रूपान्तर नहीं होता । इन्हें अविकारी शब्द कहते हैं।
इस तरह रूप और प्रयोग की दृष्टि से शब्दों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा गया है : विकारी शब्द और अविकारी शब्द। इनको पुनः आठ उप-भागों में विभाजित किया गया है –
- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया : ये चार प्रकार विकारी हैं।
- क्रियाविशेषण, समुच्चयबोधक, सम्बन्धबोधक और विस्मयादिबोधक शब्द अविकारी हैं।
उदाहरण –
- संज्ञाएँ – ब्राह्मण, जयचंद, रामनगर, हाथ, पाँव, कमरा, लड़का, लड़की, किताब, पुलिस, सफाई, ममता, बालपन, ढेर, कर्म, सरदी, सिरदर्द।
- सर्वनाम – मैं, तू, वह, यह, इसे, उसे, जो, जिसे, कौन, क्या, कोई, सब, विरला।
- विशेषण – अच्छा, बुरा, नीला, पीला, भारी, मीठा, बुद्ध, सरल।
- क्रियाएँ – सोना, जागना, उठना, बैठना, लेना, देना, रहना, रखना, दिलाना, पिलाना, लिखवाना, सुलाना, करवाना, चलना, चलाना।
- क्रियाविशेषण – आज, कल, अब, कब, परसों, यहाँ, वहाँ, इधर, उधर, कैसे, क्यों। सम्बन्धबोधक – में, से, पर, के ऊपर, के नीचे, के आगे, से आगे, की ओर।
- समुच्चयबोधक – और, परन्तु, या, इसलिए, तो, यदि, क्योंकि।
- विस्मयादिबोधक – आहा! हा! हाय! ओह! वाह वाह! राम राम! या अल्लाह!
तद्भव-तत्सम शब्द संग्रह
स्वर वर्ग
‘अ’
तद्भव — तत्सम
- अँगरखा – अंगरक्षक
- अँगारा – अंगार
- अँगिया – अंगिका
- अँगीठी – अग्निष्ठिका, अग्निस्थिका
- अँगुली, उँगली – अंगुलि
- अँगूठा – अंगुष्ठ
- अँगूठी – अंगुष्ठिका
- अँगौछा – अंगप्रौंछा
- अँजली – अंजलि
- अंझा – अनध्याय
- अँतड़ी – अंत्र
- अंडा – अंडक
- अंडी – एरंडी
- अंधा – अंध
- अँधेरा – अंधकार
- अँबिया (टिकोरा) – आम्रिका
- अंस – अंश
- अकड़ना – आकड़न
- अकाज – अकार्य
- अकेला – एकल
- अखरोट – अक्षोट
- अखाड़ा – अक्षवाट, अक्षवाटक
- अगम – अगम्य
- अगहन – अग्रहायण
- अगाड़ी – अग्र
- अगार – आगार
- अगुआ, अगुवा – अग्रपद, अग्रणी
- अगुरु (अगरु) – अगर (बत्ती)
- अचंभित – स्तंभित
- अचरज – आश्चर्य
- अचवन – आचमन
- अचानक – अज्ञातक
- अच्छत – अक्षत
- अच्छर, आखर – अक्षर
- अजान – अज्ञान
- अटारी – अट्टालिका
- अट्ठाईस – अष्टाविंशति
- अट्ठानबे – अष्टिनवति
- अट्ठासी – अष्टाशीति
- अठखेली – अष्टकीड़ा, अष्टकेलि
- अठारह – अष्टादश
- अठावन – अष्टपंचाशत
- अड़सठ – अष्टाषष्टि
- अढ़ाई (ढाई) – अर्धतृतीय
- अलसी – अतसी, अतीसी
- अथवा – किंवा
- अदरक – आर्द्रक
- अधरम – अधर्म
- अधूरा – अर्धपूरक
- अनाज – अन्नाद्य
- अनाड़ी – अनार्य
- अनी – अणि
- अनूठा – अनुत्थ
- अपना – आत्मनः, आत्मनाम्
- अपाहज – अपादहस्त
- अफीम – अहिफेन
- अब – अद्य
- अबरक – अभ्रक
- अबेर-सबेर – अवेला-सवेला
- अमचूर – आम्रचूर्ण
- अमावस – अमावस्या
- अमी, अमिय – अमृत
- अमोल – अमूल्य
- अम्मा – अम्बा
- अरंड – एरंड
- अरपन – अर्पण
- अलग – अलग्न
- अलोना – अलवण, अलवणल
- असगंधा – अश्वगंधा
- असाढ़ – आषाढ़
- असीस – आशीष
- अहीर, अहिर – आभीर
- अहेर – आखेट
- अहेरी – आखेटिक
- अहुँट – अर्धचतुर्थ (३१/२)
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‘आ’
तद्भव – तत्सम
- आँक – अंक
- आँकना – अंकन
- आँख – अक्षि
- आँच – अर्चि
- आँचल, अँचरा – अंचल
- आँत – आंत्र
- आँब – आमा
- आँवला – आमलकः (आमलक)
- आँवा (आँवाँ) – आपाक
- आँसू – अश्रु
- आक – अर्क
- आग – अग्नि
- आगे – अग्रे
- आग्याँ – आज्ञा
- आज – अद्य
- आजा – आर्यक
- आजी – आर्यिका
- आठ – अष्ट
- आढ़त – आढ्यत्व
- आधा – अर्ध / अर्द्ध
- आधीन – अधीन
- आन – अन्य
- आप – आत्मा, आत्म
- आभूसन – आभूषण
- आम – आम्र
- आमड़ा, अमड़ा – आम्रातक
- आयसु – आदेश
- आरसी – आदर्शिका
- आरात्रिक – आरती
- आलस – आलस्य
- आलीस – चत्वारिंशत (जैसे – चालीस, बयालीस)
- आवन – पंचाशत (जैसे – इक्यावन, बावन)
- आवाँ – आपाक
- आस – आशा
- आसरा – आश्रय
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‘इ’ और ‘ई’
तद्भव – तत्सम
- इक्ट्ठा – एकत्र, एकस्थ
- इकतीस – एकत्रिंशत्
- इकतालीस – एकचत्वारिंशत
- इकसठ – एकषष्ठि
- इक्कीस – एकविंशति
- इक्यावन – एकपंचाशत्
- इक्यासी – एकाशीति
- इतना – इयत्
- इतवार – आदित्यवार
- इधर – इतस्
- इमली – अम्लिका
- इलायची – एला
- इस – एतस्य
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तद्भव – तत्सम
- ईंट – इष्टका
- ईधन – इन्धन
- ईख – इक्षु
- ईर्षा, इरखा – ईर्ष्या
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‘उ’ और ‘ऊ’
तद्भव – तत्सम
- उँगली – अंगुलि
- उगना – उद्गत
- उगलना – उद्गलन
- उघाड़(ना) – उद्घाटन
- उछंग (गोद) – उत्संग
- उछाह – उत्साह
- उजड्ड – उज्जड
- उजला, उजाला – उज्ज्वल
- उठ – उत्तिष्ठ
- उठान – उत्थान
- उड़ – उड्ड
- उड़िया – ओड्रिक
- उतावला – उत्तापल
- उधार – उद्धार
- उन – एकोन (जैसे – उनतीस)
- उन्चास (उनचास) – ऊनपंचाशत्
- उन्तालीस (उनतालिस) – ऊनचत्वारिंशत्
- उन्तीस (उनतीस) – ऊनत्रिंशत्
- उन्नीस – ऊनविंशति
- उपजना – उत्पद्यते
- उपरोक्त – उपर्युक्त
- उपला – उत्पलक
- उपास – उपवास
- उबटन – उद्वर्तन (उर्द्वत्तन)
- उबालना – उद्वालन
- उभर(ना) – उद्भर
- उमेठ(ना) – उद्वेष्टते
- उलाहना – उपालंभ
- उल्लू – उलूक
- उस – अमुष्य
- उसास – उच्छ्वास
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तद्भव – तत्सम
- ऊँचा – उच्च
- ऊँट – उष्ट्र
- ऊखल – उद्खल
- ऊन – उर्ण, ऊर्णा
- ऊसर – उषर, ऊषर
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‘ए’ और ‘ऐ’
तद्भव – तत्सम
- एक – एक
- एकलौता – एकल पुत्रः
- एका – ऐक्य
- एड़ – एडूक
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तद्भव – तत्सम
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‘ओ’ और ‘औ’
तद्भव – तत्सम
- ओंठ – ओष्ठ
- ओखल – उद्खल
- ओझा – उपाध्याय
- ओर – अवर
- ओला – उपल
- ओस – अवश्याय, अवश्या
- ओसार – अपसार
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तद्भव – तत्सम
- औगुन – अवगुण
- औंधा – अवमूर्ध
- और – अपर
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‘क’ वर्ग
‘क’
तद्भव – तत्सम
- कंकड़ – कर्कर
- कंगन – कंकण
- कंगाल – कंकाल
- कंघी – कंकती
- कंठी – कंठिका
- कंधा – स्कंध
- कँवल – कमल
- कई – कति
- कचड़ा – कच्चर (कच्चरक)
- कचहरी – कृत्यगृह (कृत्यगृहिका)
- कचौड़ी – कच्चपूरिका
- कछुआ – कच्छप
- कछौटी – कक्षपट्टिका
- कटहरा / कटघरा – काष्ठगृह
- कटहल – कंटफल
- कठपुतली – काष्ठपुत्तलिका
- कड़ाह – कटाह
- कड़ाही – कटाहिका
- कड़ुआ – कटुक, कटु
- कतवार (कूड़ा) – कटवर
- कदम (वृक्ष) – कदम्ब
- कन – कण
- कपड़ा – कर्पट, कर्पटक
- कपास – कर्पास
- कपूत, कुपूत – कुपुत्र
- कपूर – कर्पूर
- कब – कदा
- कबूतर – कपोत
- करवट (आरा) – करपत्र
- करीर – करील
- करोड़ – कोटि
- कर्तब (करतब) – कर्त्तव्य
- कटारी – कर्तरी (कर्तरिका)
- कल – कल्य
- कलेश – क्लेश
- कलोल, किलोल – कल्लोल
- कसेरा – कांस्यकार
- कसौटी – कषपट्टिका
- कह – कथ्
- कहना – कथन
- कहाँ – कुत्रस्थ, कुत्र
- कहानी – कथानिका
- कहार – स्कंधभार
- काँख – कक्ष
- काँच – काच
- काँटा – कण्टक
- काँप – कम्प
- काँपना – कम्पन
- काँसा – कांस्य
- का – कृत
- काज, कारज – कार्य
- काजल – कज्जल
- काट (काट्) – कर्त
- काटना – कर्तन
- काठ – काष्ठ
- काढ़ – कर्ष
- काढ़ा – क्वाथ (क्वाथक)
- कातिक – कार्तिक
- कान – कर्ण
- काना – काणः
- कान्ह, कान्हा, किसन, कन्हैया – कृष्ण
- काम, करम – कर्म
- कायर – कातर
- कितना – कियत्
- किरकिरी – कर्कर
- किवाड़ – कपाट
- किस – कस्य
- किसान – कृषाण/कृषक
- कीड़ा – कीटक, कीट
- कीरी – कोटिका
- कुंजी – कुञ्चिका
- कुँवर – कुमार
- कुँवारा – कुमारकः
- कुँवारी – कुमारी
- कुँआ/कुआँ – कूप
- कुटुम – कुटुम्ब
- कुत्ता – कुक्कुर
- कुछ – कश्चित्
- कुढ़ – क्रुध्य(ति)
- कुदार, कुदाल – कुद्दाल
- कुम्हड़ा – कुष्माण्ड
- कुम्हार – कुम्भकार
- कुल्हड़ – कुल्हरिका (कुल्हरक)
- कुल्हाड़ा – कुठार (कुठारक)
- कूची – कूर्चिका
- कूड़ा – कूट
- कूदना – कूर्दन
- कूर – क्रूर
- कृ – कर
- कृप्या – कृपया
- केंचुली – कंचुलिका
- केकड़ा – कर्कट
- के – कृते / कार्ये
- केला – कदली
- केवट – कैवर्त्त (कैवर्त)
- केहरी – केसरी
- कैथा (कैथ) – कपित्थ
- कैसा – कीदृश
- कोई – कोऽपि
- कोख – कुक्षि
- कोट – कोष्ठ
- कोठा – कोष्ठक
- कोठारी – कोष्ठागारिक
- कोठी – कोष्ठिका
- कोढ़ – कुष्ट (कुष्ठ)
- कोढ़ी – कुष्ठी
- कोदों – कोद्रव
- कोना – कोण
- कोयल – कोकिल
- कोस – क्रोश
- कोहनी, कुहनी – कफोणि
- कोह – क्रोध
- कोही – क्रोधी
- कौड़ी – कपर्दिका
- कौन – का पुनः
- कौआ – काकः
- कौर – कवल
- क्या – किम्
- क्यारी – केदारिका
- क्यों – किपुनः
|
‘ख’
तद्भव – तत्सम
- खंडहर – खंडगृह
- खजूर – खर्जूर
- खटराग – षट्राग, षड्राग (षट्/षड्+राग)
- खत्री – क्षत्रिय
- खपड़ा – खर्पर
- खप्पर – खर्पर, कर्पर
- खम्भा – स्कम्भ
- खरल – खल
- खलित – स्खलित
- खाँड़ – खंड
- खाँसी – कास
- खाई – खाति
- खाज – खर्जू
- खाजा – खाद्य
- खाट – खट्वा
- खान – खनि
- खाना – खादन
- खार – क्षार
- खिच(ड़ी) – कृसरान्न
- खीर – क्षीर
- खुजली – खर्जु
- खुर – क्षुर
- खेत – क्षेत्र
- खेती – क्षेत्रित
- खोंता – खगायतन
- खैर – खदिर
- खोज – खोद्य
- खोदना – क्षोदन
- खोपड़ा – खर्पर
|
‘ग’
तद्भव – तत्सम
- गँवार – ग्राम + कार, ग्रमीण
- गड्डा – गर्त
- गड़रिया – गड्डलिका
- गढ़ी – गडिका
- गधा, गदहा – गर्दभ, गर्धभक
- गनेश – गणेश
- गलना – गलन
- गवैया – गायक
- गहरा – गंभीर, गभीर
- गाँठ – ग्रन्थि
- गाँव – ग्राम
- गागर – गर्गर
- गाजर – गार्जर
- गाड़ी – गंत्री
- गाढ़ा – गाढ
- गाभिन – गर्भिणी
- गाय – गो
- गाल – गल्ल
- गाहक – ग्राहक
- गिनना – गणन
- गिरगिट – गलगति
- गीध, गिद्ध – गृध्र
- गुंफ – गफ
- गुड़िया – गुटिका
- गुन – गुण
- गुफा – गुहा
- गुसाईं, गोसाईं – गोस्वामी
- गुझिका – गुह्यिका
- गूँजना – गुञ्जन
- गूजर – गुर्जर
- गेंद – कंदुक
- गेरू – गैरिक
- गेहूँ – गोधूम
- गोत – गोत्र
- गोद – क्रोड
- गोबिन्द, गोविन्द – गोपेन्द्र
- गोबर – गोमय, गोमल
- गोरा – गौर
- गोह – गोधा
- गौना – गमन
- ग्याँन – ज्ञान
- ग्यारह – एकादश
- ग्वाल – गोपाल
|
‘घ’
तद्भव – तत्सम
- घड़ा – घट
- घड़ी – घटिका
- घर – गृह
- घरनी – गृहिणी
- घाट – घट्ट
- घाम – घर्म
- घाव – घात
- घिन – घृणा
- घिसना – घृषण
- घी – घृत
- घुँघची – गुञ्जा
- घूँघंट – गुंठन
- घोड़ा – घोटक
- घोड़ी – घोटिका
- घोल – घूर्ण
|
‘च’ वर्ग
‘च’
तद्भव – तत्सम
- चँवर, चौंर – चामर
- चँवरी, चौंरी – चमर
- चकवा – चक्रवाक
- चक्का, चाक – चक्र
- चख – चक्षु
- चना – चणक
- चबाना – चर्वण
- चमड़ा, चाम – चर्म
- चमार – चर्मकार
- चरित – चरित्र
- चाँद – चंद्र
- चाँदनी – चन्द्रिका
- चाँदी – रजत
- चाम – चर्म
- चार – चत्वारि
- चालीस – चत्वारिंशत्
- चाहे – चक्षते
- चिकना – चिक्कण
- चिड़िया – चटिका
- चितेरा – चित्रकार
- चिन्ह – चिह्न
- चीता – चित्रक
- चुनना – चिनोति
- चून, चूना – चूर्ण
- चूमना – चुम्बन
- चूर, चूरन – चूर्ण
- चूल्हा – चुल्हक
- चैत – चैत्र
- चोंच – चञ्चु
- चोर – चौर
- चोरी – चौरिका, चौर्य
- चौंतीस – चतुस्त्रिंशत्
- चौक – चतुष्क
- चौखट – चतुष्काठ
- चौथा – चतुर्थ
- चौथाई – चतुर्थ भागिक
- चौदह – चतुर्दश
- चौपाया – चतुष्पद
- चौबीस – चतुर्विंशति
- चौबे – चतुर्वेदी
- चौरासी – चतुरशीति
- चौंरी – चमरी
- चौंसठ – चतुष्षष्ठि
- चौहत्तर – चतुस्सप्तति
|
‘छ’
तद्भव – तत्सम
- छः – षष्, षट्
- छकड़ा – शकट (शकटक)
- छक्का – षट्क
- छठा, छठ – षष्ठ
- छत – छत्र
- छति – क्षति
- छत्तीस – षट्त्रिंशत
- छप्पन – षट्पञ्चाशत
- छप्पय – षट्पद
- छब्बीस – षट्विंशति
- छियालीस – षट्चत्वारिंशत्
- छीट (छींट) – चित्र
- छीन – क्षीण
- छाँह – छाया
- छाजन – छाद्य, छादन
- छाता – छत्रक
- छिन – क्षण
- छिलका – शल्क (शल्कल)
- छूरा – क्षुरक
- छुरी – क्षुरिका
- छेद – छिद्र
- छेनी – छेदनी
- छोटा – क्षुद्र
- छोड़ना – क्षोडन
- छोभ – क्षोभ
|
‘ज’
तद्भव – तत्सम
- जंगला – वातायन
- जंतर – यंत्र
- जड़ – जटा
- जत्था – यूथ
- जनम – जन्म
- जनेऊ – यज्ञोपवीत
- जब – यदा
- जम – यम
- जमाई – जामातृ
- जमुना – यमुना
- जम्हाई – जृम्भिका
- जल् – ज्वल
- जलना – ज्वलन
- जवान – युवान
- जहाँ – यत्र
- जाँघ – जंघा
- जाँता – यंत्रक
- जागना – जाग्रति
- जाड़ा – जाड्य
- जाना – याति
- जानना – ज्ञान
- जामुन – जंबूफल
- जजमान – यजमान
- जिस – यस्य
- जीभ – जिह्वा
- जुआ, जूआ – द्यूत
- जुगति – युक्ति
- जूँ – यूक
- जूझ – युध्य
- जूस – यूष
- जूही – यूथी
- जेठ – ज्येष्ठ
- जैसा – यादृश
- जो – यः
- जोगी – योगी
- जोड़ा – युग्म
- जोत – ज्योति
- जोधा – योद्धा
- जोबन – यौवन
- जौ – यव
- जौहर – जतुगृह
|
‘झ’
तद्भव – तत्सम
- झट – झटिति
- झण्डा – ध्वज (ध्वजदडक)
- झड़(ना) – शद्
- झनकार – झणत्कार
- झरना – निर्झर
- झरोखा – जालक
- झख – झष
- झा – अध्यापक
- झाड़ – झाट
- झाँवाँ – झामक
- झीना – जीर्ण
- झूठा – जुष्ट
|
‘ट’ वर्ग
‘ट’ और ‘ठ’
तद्भव – तत्सम
- टकसाल – टंकशाला
- टसर (रेशम) – त्रसर
- टाँक – टंक
- टिटिहरी – टिट्टिभी
- टूट – त्रुट्
- टूटना – त्रुट्यते
|
तद्भव – तत्सम
- ठंडा – स्तब्ध
- ठग – स्थग
- ठप – स्थाप्य
- ठाँव – स्थान
- ठाकुर – ठक्कुर
- ठाढ़ – स्तब्ध
|
‘ड’ और ‘ढ’
तद्भव – तत्सम
- डंक – दंश
- डर – दर
- डसना – दंशन
- डाँड़ – दण्ड
- डाइन – डाकिनी
- डाढ़ – दंष्ट्रा
- डाह – दाह
- डीठ – दृष्टि
- डोलना – दोलन
- डेढ़, डेढ़ा – द्वयर्द्ध
- ड्योढ़ा – द्वयर्द्ध
|
तद्भव – तत्सम
- ढाई – अर्धतृतीय
- ढीठ – धृष्ट
- ढील (ढीला) – शिथिल
- ढौंचा – अर्धपञ्च
|
‘त’ वर्ग
‘त’
तद्भव – तत्सम
- तंदुल, चावल – तण्डुल
- तकुआ, तकला – तर्कु
- तपसी – तपस्वी
- तब – तदा
- तमचूर – ताम्रचूर्ण
- तमोली – ताम्बूलिक
- तरनी – तरणी
- तलवार – तरवारि
- ताँबा – ताम्र
- ताकना – तर्कन
- ताला – तालक
- तालाब – तडाग
- -तालीस – चत्वारिंशत
- ताव – ताप
- तिगुना – त्रिगुण
- तिनका – तृण
- तिपाई – त्रिपाद
- तिरछा – तिरश्च
- टीका, टिकली – तिलक
- तिस – तस्य
- तिहाई – त्रिभागिका
- तीखा – तीक्ष्ण
- तीज – तृतीय
- तीजा – तृतीयक
- तीतर – तित्तिर
- तीता – तिक्त
- तीन – त्रीणि
- तीरथ – तीर्थ
- तीस – त्रिंशत्
- तीसरा – त्रिसृत
- तुझ – तुभ्यम्
- तुम – तुषमे/त्वम्
- तुम्हारा – तुष्म
- तुम्हें – तुष्मे
- तुरत, तुरंत – त्वरित
- तू – त्वं (वैदिक तु)
- तेइस – त्रिविंशति
- तेरह – त्रयोदश
- तेरा – तव + केर
- तेल – तैल
- तैंतालीस – त्रिचत्वारिंशत्
- तैंतीस – त्रित्रिंशत्
- तैसा – तादृश
- तोंद – तुंद
- तो – ततः
- तोड़ना – त्रोटन
- त्यों – तदा एवम्
- त्यौहार – तिथिवार
|
‘थ’
तद्भव – तत्सम
- थंभ – स्तम्भ
- थन – स्तन
- थल – स्थल
- था – स्थित
- थान – स्थान
- थाना – स्थानक
- थामना – स्तम्भन
- थोड़ा – स्तोक
- थाली – स्थाली
- थूनी – स्थूण
- थूरना – थवर्ण
|
‘द’
तद्भव – तत्सम
- दंडक – डंडा
- दई – दैव
- दबना – दमन
- दरशन, दरसन – दर्शन
- दरस – दर्श
- दस – दश
- दसवाँ – दशम
- दहला – दश
- दही – दधि
- दाँत – दन्त
- दाई – धात्री, धाया
- दाख – द्राक्षा
- दाढ़ – दंष्ट्रा (दंष्ट्र)
- दाढ़ी – दंष्ट्रिका
- दाद – दद्रु
- दामाद – जामाता
- दाहिना – दक्षिण
- दीठ – दुष्टि
- दीया – दीपक
- दीवाली – दीपावली
- दुआर – द्वार
- दुख – दुःख
- दुपट्टा – द्विपट
- दुपहरी – द्विप्रहरी
- दुबला – दुर्बल
- दुमुँहा – द्विमुख
- दूज – द्वितीया
- दूजा – द्वितीय
- दूध – दुग्ध
- दूना – द्विगुण
- दूब – दूर्वा
- दूबे – द्विवेदी
- दूल्हा, दुलहा – दुर्लभ
- दूसरा – द्विसृत
- दृग – दृक्
- देखना – दृश + प्रेक्षण
- देवर – द्विवर
- देस – देश
- दो – द्वौ
- दोना – द्रोण, द्रोणक
- दोपहर – द्विप्रहर
- डोरा – दोरक
- डोली – दौलिका
- दोहरा — द्विधा-सृत
|
‘ध’
तद्भव – तत्सम
- धनिया – धनिका
- धरती – धरित्री
- धरम – धर्म
- धान – धान्य
- धीरज – धैर्य
- धुआँ – धूम, धूम्र
- धुन – ध्वनि
- धूल – धूलि
- धोना – धावन
|
‘न’
तद्भव – तत्सम
- नंगा – नग्न
- नंदोई – ननांदृपति
- नखत – नक्षत्र
- नथ – नस्ता
- नया – नव
- नब्बे – नवति
- नरसों – अन्यपरश्व
- नवासी – नवाशीति
- नस – नस्या
- नहना – नखहरण
- नहा – स्ना
- नहान – स्नान
- नहीं – न हि
- नांघना – लंघन
- नाई – नापित
- नाक – नासिका
- नाक – नक्र
- नाखून – नख
- नाघना – लंघन
- नाच – नृत्य
- नाती – नप्तृ
- नाथ – नस्ता
- नारियल – नारिकेल
- नाह – नाथ
- निगलना – निर्गलन
- निठुर – निष्ठुर
- निडर – निर्दर
- निन्नानवे – नवनवति
- निबाह – निर्वाह
- निभाना – निर्वहण
- निहाई – निघाति
- नीचा – नीच्य
- नीचे – नीचैः
- नींद – निद्रा
- नीबू – निम्बक (निम्बूक)
- नीम – निम्ब
- नेउता, नेवता – निमंत्रण
- नेवला – नकुल
- नेह – स्नेह
- नैन – नयन
- नैहर – ज्ञातिगृह
- नोचना – लुंचन
- नोन – लवण
|
‘प’ वर्ग
‘प’
तद्भव – तत्सम
- पंख – पक्ष
- पंगत – पंक्ति
- पंजा – पंचक
- पंछी – पक्षी
- पंदरह, पंद्रह – पंचदश
- पकवान – पक्वान्न
- पका, पक्का – पक्व
- पखान(ना) -प्रक्षाल
- पखवारा – पक्ष + वार
- पगहा – प्रग्रह
- पचपन – पंचपंचाशत्
- पच्छिम – पश्चिम
- पछतावा – पश्चाताप
- पठा (भेज्) – प्रस्था (पयति)
- पड़ना – पतन
- पड़िवा, परिवा – प्रतिपदा
- पड़ोस – प्रतिवेश, प्रतिवास
- पड़ोसी – प्रतिवेशी, प्रतिवासी
- पढ़ – पठ
- पढ़ना – पठन
- प्रण – पण
- पतला – प्रतनु
- पतोहू – पुत्रवधू
- पत्तल, पत्ता, पात – पत्र
- पत्थर – प्रस्तर
- पनसारी, पंसारी – पण्यशालिक
- पन्ना – पर्ण
- पपड़ी – पर्पटी
- पबज्या – प्रव्रज्या, परिव्रज्या
- पर – उपरि
- परकोटा – परिकूट
- परख – परीक्षा
- परछाईं, परछाहीं – प्रतिच्छाया
- परनाला – प्रणाल
- परपोता – परपौत्र, प्रपौत्र
- परपोती – परपौत्री, प्रपौत्री
- परमारथ – पारमार्थ
- परस – स्पर्श
- परसों – परश्व
- पराठा – पर्पट
- पलंग – पर्यंक
- पलड़ा – पटल
- पहाड़ा – प्रस्तारक
- पुआल – पलाल
- पल्ला – पल्लव
- पसीना – प्रस्विन्न, प्रस्वेद
- पहचान – प्रत्यभिज्ञान
- पहनना – परिधान
- पहर – प्रहर
- पहला – प्रथम, प्रथिल
- पहुँच – प्रभुत्व
- पहेली – प्रहेलिका
- पाँक – पंक
- पाँच – पञ्च
- पाँड़े – पंडित
- पाँत – पंक्ति
- पाँव – पाद
- पाख – पक्ष
- पाठा, पट्ठा – पुष्ट
- पाती – पत्रिका
- पान – पर्ण
- पाना – प्रापण
- पानी – पानीय
- पापड़ – पर्पट
- पारा – पारद
- पाव – पाद (चतुर्थांश)
- पास – पार्श्व
- पाहन, पहाड़ – पाषाण
- पाहुन – प्राघूर्ण (प्राघुण)
- पाहुना – प्राघूर्णक
- पिंजरा, पिंजड़ा – पञ्जर (पंजरक)
- पिटारा – पिटक
- पिया, पिय – प्रिय
- पियारा (प्यारा) – प्रिय
- पिसन – पिषण
- पिसान – पिष्टान्न
- पीछे – पश्चात्
- पीठ – पृष्ठ
- पीठी – पिष्टिका
- पीड़ा – पीडा
- पीढ़ा – पीठ
- पीढ़ी – पीठिका
- पीतल – पित्तल
- पीपल – पिप्पल
- पीला – पीत
- पीहर – पितृगृह
- पुआ, पूवा – पूप, पूपक
- पुजारी – पूजाकारी
- पुतली – पुत्तलिका
- पुन, पुन्न – पुण्य
- पुराना – पुराण, पुरातन
- पुरखा – पुरुष
- पुरुषारथ – पुरुषार्थ
- पुहुप – पुष्प
- पूरन – पूर्ण
- पूरब – पूर्व
- पूँछ – पुच्छ, पश्च
- पूछ्, पूछ – पृच्छ
- पूछना – पृच्छन
- पूँजी – पुंज
- पूत – पुत्र
- पूनो – पूर्णिमा
- पूरा – पूर्ण
- पूरी, पूड़ी – पूलिका (पूपालिका)
- पूस – पुष्य, पौष
- पैंतालीस – पंचचत्वारिंशत्
- पैंतीस – पंचत्रिंशत्
- पैदल – पदाति
- पैर – पदिर, पद
- पोखर, पोखरा – पुष्कर
- पोता – पौत्र
- पोती – पौत्री
- पोथी – पुस्तिका
- पौन – पवन
- पौना – पादोन
- प्यास – पिपासा
- प्रगट, परगट – प्रकट
- प्रथवी – प्रथिवी, पृथिवी, पृथ्वी
- पैठ् – प्रविष्ट्
|
‘फ’
तद्भव – तत्सम
- फंद, फंदा – बंध, पाश
- फटकरी – स्फटिक
- फन – फण
- फरसा – परशु
- फरुआ – परशु
- फाँस – पाश
- फाँसी – पाशिका
- फागुन – फाल्गुन
- फुरती – स्फूर्ति
- फूटना – स्फुटन
- फूल – फुल्ल
- फूलना – फुल्लन
- फेफड़ा – फुप्फुस
- फोड़ा – स्फोट, स्फोटक
|
‘ब’
तद्भव – तत्सम
- बँटना – बंटन
- बंदर – वानर
- बकरा – वर्कर
- मौलसिरी – बकुलश्री
- बखान – व्याख्यान
- बगुला – वक
- बच्चा – वत्स
- बछड़ा – वत्स
- बजरंग – वज्रांग
- बजर – वज्र
- बटेर – वर्त्तक
- बट्टा – वार्त (वार्त्त), वटक
- बड़, बर, बरगद – वट
- बड़ा – वृत्तक (वृतक)
- बड़ा – वर्द्धन
- बड़ा, बरा (दही बड़ा) – वटक
- बढ़ – वर्ध
- बढ़ई – वर्द्धकि (वर्धकिन)
- बढ़ना – वर्धन
- बत्ती – वर्तिका
- बत्तीस – द्वात्रिंशत्
- बनारस – वाराणसी
- बनिजारा, बनजारा – वाणिज्यकार (वाणिज्यकारक)
- बनिया – वणिक
- बबूल – बब्बूर
- बयालीस – द्वाचत्वारिंशत्
- बयासी – द्वाशीति
- बरखा – वर्षा
- बरस – वर्ष
- बरसना – वर्षण
- बरात – वरयात्रा
- बसन – वसन
- बसना – वसति
- बसेरा – वासगृह
- बहत्तर – द्वासप्तति
- बहन, बहिन – भगिनी
- बहनोई – भगिनीपति
- बहरा, बहिरा – बधिर, वधिर
- बहुत – बहुत्व, प्रभूत
- बहू – वधू
- बहेड़ा – विभीतक (विभीटक, विभीतिक)
- बहेलिया – व्याध
- बाँका – वक्र
- बाँचना – वाचन
- बाँझ – वंध्या, बंध्या
- बाँध – बंध
- बाँधना – बंधन
- बाँस – वंश
- बाँसुरी – वंशी
- बाँह – बाहु
- बाईस – द्वाविंशति
- बाग (घोड़े की) – वल्गा
- बाघ – व्याघ्र
- बाघिन – व्याघ्रिणी
- बाजा – वाद्य
- बाट – वर्त्म
- बाड़ी, बारी – वाटिका
- बाढ़, बढ़ – वर्द्ध
- बात – वार्ता
- बादल – वारिद
- बानवे – द्वानवति
- बायन, बयना, बैना – उपायन, वायन
- बायाँ – वाम
- बार – वार
- बार – द्वार
- बारह – द्वादश
- बारहखड़ी – द्वादशाक्षरी
- बालम – वल्लभ
- बालू – बालुका
- बावन – द्वापंचाशत
- बावला – वातुल
- बावली, बावड़ी – वापी
- बासठ – द्वाषष्ठि
- बाहर – बहिर्
- बिंदी – बिंदु
- बिकना – विक्रयण
- बिगाड़ – विकार
- बिछुड़ना, बिछड़ना – विच्छेद
- बिच्छू – वृश्चिक
- बिजली – विद्युत् (विद्युतिका)
- बिनती – विनति, विज्ञप्तिका
- बिरवा – विटपक
- बींधना – वेधन
- बीड़ा (पान) – वीटक
- बीघा – विग्रह
- बीच – वर्त्म
- बीत – व्यतीत
- बीस – विंशति
- बुआ – पितृश्वसा
- बुड्ढा, बूढ़ा – वृद्ध
- बुरा – विरूप
- बूँद – बिन्दु
- बूझना – बुध्यते
- बूटी – वृत्तिक
- बेंत – वेत्र
- बेर – बदरी
- बेल – बिल्व
- बैजनाथ – वैद्यनाथ
- बैठ् – उपविष्ट्
- बैस – उपविष्ठ
- बैसाख – वैशाख
- बैसाखी – द्विशाखिका, विसाख
- बैन – वचन
- बैल – बलीवर्द, बलद
- बोना – वपन
- बौना – वामन
- बोहनी – बोधन
- ब्याह – विवाह
- ब्रह्म – ब्रह्म
- ब्रम्हा – ब्रह्मा
- ब्राम्हण, ब्राम्हण, बाम्हन, बाभन – ब्राह्मण
|
‘भ’
तद्भव – तत्सम
- भंडार – भांडागार
- भंडारी – भांडागारिक
- भगत – भक्त
- भट्ठी – भ्राष्ट्रिका
- भतार, भरतार – भर्ता, भर्तृ
- भतीज – भ्रातृव्य
- भत्ता – भृति, भरण
- भभूत – विभूति
- भरोसा – वराशा
- भला – भद्र
- भांजा – भागिनेय
- भाई – भ्रातृ
- भाँग – भंग
- भांड – भण्ड/भट्ट
- भाँड़ा – भाण्डक
- भाड़ा – भाटक
- भात – भक्त
- भादों, भादौं – भाद्रपद
- भानजा, भांजा – भागिनेय
- भाप – वाष्प
- भाभी – भ्रातृभार्या
- भाला – भल्ल
- भालू – भल्लुक
- भावज – भ्रातृजाया
- भिखारी – भिक्षाकारी
- भी – अपि
- भीख – भिक्षा
- भुवाल – भूपाल
- भीतर – अभ्यन्तर
- भूँक – बुक्क
- भूख – बुभुक्षा
- भूसन – भूषण
- भूसा – बुष (बुषक, बुशक)
- भेजा – मज्जा
- भेड़िया – वृक
- भेस – वेष
- भैंस – महिषी
- भैसा – महीष
- भोज(पत्र) – भुर्ज
- भोज – भोज्य
- भौंरा, भँवरा – भ्रमर
- भौंह, भौं – भ्रू
|
‘म’
तद्भव – तत्सम
- मँचिया – मंचिका
- मंजन – मज्जन
- मँझ – मध्य
- मँड़वा, माँड़व – मंडप
- मंडी – मंडप
- मकड़ी – मर्कटी
- मक्कार – माकर
- मक्खन, माखन – म्रक्षण
- मक्खी – मक्षिका
- मग – मार्ग
- मगर – मकर
- मच्छर – मत्सर
- मछली – मत्स्य
- मजीठ – मञ्जिष्ठ
- मझधार (मँझधार) – मध्यधार
- मट्टी, मिट्टी, माटी – मृत्तिका
- मढ़ना – मंडन
- मदमाता – मदमत्त
- मदारी – मंत्रकारी
- मनका – मणिक, मणिका
- मानिक – माणिक्य
- मरना – मरण
- मशहरी, मसहरी – मशकहरी
- मसा – मशक
- मसान – श्मशान
- महँगा – महार्घ
- महावत – महापात्र
- महुआ – मधूक
- माँ – माता
- माँग – मार्ग
- माँगना – मार्गण
- माँड़ – मंड
- माई – मातृ
- माखन – म्रक्षण
- माथा – मस्तक
- मानुस – मनुष्य
- मामा – मामक (मातुल)
- मामी – मामिका (मातुला)
- मिट्टी – मृत्तिका
- मिठाई – मिष्टि, मिष्टान्निका
- मिर्च – मरिच (मारिच)
- मिष्ठान्न – मिष्टान्न
- मीठा – मिष्ट
- मीत – मित्र
- मीनमेख – मीनमेष
- मुँदरी – मुद्रिका, मुद्रा
- मुँह – मुख
- मुआ – मृत
- मुक्ताहल (मोती) – मुक्ताफल
- मुखिया – मुख्य
- मुझे – मह्यम्
- मुट्ठी – मुष्टि
- मूँग – मुद्ग
- मूँछ – श्मश्रु
- मूड़ – मुंड
- मूँदना – मुद्रण
- मूठ – मुष्टि
- मूसल – मुषल
- मृ – मर
- में – मध्ये
- मेख – मेष
- मेढक – मंडूक
- मेह – मेघ
- मैल – मल
- मोती – मौक्तिक
- मोर – मयूर
- मोल – मूल्य
- मौत – मृत्यु
- मौर, मौड़ – मुकुट
- मौर (मंजरी) – मुकुल
- मौर (सिर) – मौलि
- मौसी – मातृश्वसा
|
‘अन्तःस्थ’ वर्ग
‘य’
तद्भव – तत्सम
- यह – एष (एषः), एतद्
- यग्य, जग्य – यज्ञ
- यहाँ – अत्र
- ये – एते
- यों – एवम्
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‘र’
तद्भव – तत्सम
- रंच – न्यंज
- रँभाना – रम्भण
- रखना – रक्षण
- रगड़ना – घर्षण
- रत्ती – रक्तिका
- रमना – रमण
- रसोई – रसवती
- रस्सी – रज्जु
- रस्सी – रश्मि
- रहट, रहँट – अरघट्ट
- राख – क्षार
- राखी – रक्षा
- राज – राज्य
- राजपूत – राजपुत्र
- रात – रात्रि
- रानी – राज्ञी
- राल – लाला
- राव, राय – राजा (राजन्)
- रास (घोड़े की) – रश्मि
- रास (ढ़ेर) – राशि
- रिझाना – रञ्जन
- रीछ – ऋक्ष
- रीछनी – ऋक्षिणी
- रीठा – अरिष्ट
- रीता – रिक्त
- रीस – ईर्ष्या
- रूख – वृक्ष
- रूखा – रूक्ष
- रुखाई – रुक्षता
- रुग्ण – रोगी
- रूठा – रुष्ट
- रुपया – रूप्यक
- रैन – रजनी
- रोआँ – रोम
- रोटी – रोटिका
- रोड़ा – लोष्टक
- रोना – रुदन
- रोपना – रोपण
|
‘ल’
तद्भव – तत्सम
- लँगड़ा – लंग
- लंगूर – लांगूली
- लंगोट – लिंगपट्ट
- लकड़ी – लगुड़
- लखपति – लक्षपति
- लगना – लगन
- लच्छन – लक्षण
- लच्छा – लवगुच्छ
- लछमी – लक्ष्मी
- लटकना – लटन
- लड़का – लड + का
- लड़ना – रणन
- लम्बा – लम्बक
- लहसुन – लशुन
- लाख (संख्या) – लक्ष
- लाख (पदार्थ) – लाक्षा
- लाज – लज्जा
- लाठी – लगुड + यष्टि, यष्टिका
- लालच – लालसा
- लिपटना – लिप्त
- लीख – लिक्षा
- लीलार – ललाट
- लूक – उल्का
- लेई – लेपिका
- लोग – लोक
- लोढ़ा – लोष्ठ
- लोथ (लाश) – लोष्ठ, लोत्र
- लोन – लवण
- लोमड़ी – लोमशा
- लोयन – लोचन
- लोहा – लौह
- लोहार – लौहकार
- लौंग – लवंग
|
‘व’
तद्भव – तत्सम
- वह – असौ, तद्
- वहाँ – तत्र
- विकट – विकृत
- विछोह – विक्षोभ
- बैराग – वैराग्य
|
‘ऊष्म’ वर्ग
‘श’
तद्भव – तत्सम
- शक्कर – शर्करा
- शिस्य – शिष्य
- शीशम – शिंशपा
- श्राप – शाप
|
‘स’
तद्भव – तत्सम
- सँड़सी – संदंशिका
- संभल – सफल
- संशुष्क – सूख
- सकना – शक्यते
- सगा – स्वक
- सगुन – शकुन, सगुण
- सच, साँच, साच – सत्य
- सजन, साजन – स्वजन
- सजाना – सज्जापन
- सतसई – सप्तशती
- सतहत्तर – सप्तसप्तति
- सताना – संतापन
- सत्त – सत्व
- सत्ताईस – सप्तविंशति
- सत्तावन – सप्तपंचाशत्
- सत्तासी – सप्ताशीति
- सत्तासी – सप्ताशीति
- सत्तू – सक्तु, शक्तुक
- सत्रह – सप्तादश
- सनीचर – शनैश्चर
- सपना – स्वप्न
- सपूत – सुपुत्र
- सत्ता – सप्तक
- सब – सर्व
- सबद – शब्द
- समझ – संबुद्धि (सम्बुद्ध)
- समेटना – समावर्तन
- सयाना – सज्ञान
- सरसों – सर्षप
- सरग – स्वर्ग
- सरजू – सरयू
- सरबस – सर्वस्व
- सराध – श्राद्ध
- सराह – श्लाघ
- सलाई – शलाका
- सलोना – सलावण्य
- सवा – सपाद
- सवेला – सबेर
- ससुर – श्वसुर
- ससुराल – श्वशुरालय
- सहिजन – शोभांजन
- सहरी – शफरी
- सहेली – सह हेलनी
- साँईं – स्वामी
- सांकल – शृंखला
- साँचा – संचक
- साँझ – संध्या
- साँड़ – षण्ड (शंड)
- साँप – सर्प
- साँवला – श्यामल
- साँवाँ (चावल) – श्यामक
- साँस – श्वास
- साईं – स्वामी (स्वामिन्)
- साखी – साक्षी
- साग – शाक
- साझा – सांश, सहार्ध्य
- साठ – षष्ठि
- साढ़ू – श्यालीवाट
- साड़ी – शाटी, शाटिका
- साढ़े – सार्द्ध, सार्ध
- सात – सप्त
- सातवाँ – सप्तम
- साथ – सार्थ
- सार्थी – सारथि, सारथी
- साला – श्याल (श्यालक, श्याला)
- साली – श्याली
- सावन – श्रावण
- सास – श्वश्रू (श्वश्रु)
- साही – शल्यकी
- साहू – साधु
- सिंगार – शृंगार
- सिंघाड़ा – शृंगाटक
- सिकड़ी – शृंखला
- सिक्ख – शिष्य
- सितार – सप्ततार
- सियार – शृगाल
- सिर – शिर
- सिल – शिला
- सींग – शृंग
- सीख – शिक्षा
- सीढ़ी – श्रेढी, श्रेणी
- सीधा – सिद्ध
- सीधा – शुद्ध
- सीना – सीवन
- सीला – शीतल
- सीस – शीर्ष
- सुअर – शूकर
- सुआ – शुक
- सुघड़ – सुघट्ट
- सुथरा – सुस्थिर
- सुन – शृणु
- सुनार, सोनार – स्वर्णकार
- सुन्न – शून्य
- सुमिरन – स्मरण
- सुरत – स्मृति
- सुहाग, सोहाग – सौभाग्य
- सूँड़ – शुण्ड, शुण्डा
- सूअर – शूकर
- सूई – सूचिका
- सूखा – शुष्क
- सूत – सूत्र
- सूना – शून्य
- सूप – शूर्प
- सूरज – सूर्य
- सेंध – संधि
- सेज – शय्या
- सेठ – श्रेष्ठी, श्रेष्ठि
- सेम – शिम्बा
- सेमर, सेमल – शाल्मलि
- सैंतालीस – सप्तचत्वारिंशत्
- सैंतीस – सप्तत्रिंशत्
- सोंठ – शुंठि (शुंठी)
- सोंध – सुगंध
- सोखना – शोषण
- सोता – स्रोत (स्रोतक)
- सोना – स्वर्ण
- सोलह – षोडश
- सोहन – शोभन
- सौंप – समर्पय
- सौ – शत
- सौत – सपत्नी
- सौंफ – शतपुष्प
- सौरी – सूतिगृह, प्रसूतिगृह
|
‘ह’
तद्भव – तत्सम
- हँसली, हँसुली – अंसली
- हँसिया – असिद + क
- हँसी – हास्य
- हड्डी, हाड़ – अस्थि
- हड़ताल – हट्टताल
- हथौड़ा – हस्त
- हरड़ – हरीतकी
- हरा – हरित
- हलका – लघुक
- हल्दी – हरिद्रा, हरिद्रिका
- हाट – हट्ट
- हाथ – हस्त
- हाथी – हस्तिन्, हस्ती
- हार – हार
- हार – हारि
- हारिल – हारीत
- हिरन – हरिण, हिरण
- हिया – हृदय
- हिलना – हिल्लन
- हींग – हिंगु
- हीरा – हीरक
- हुलास – उल्लास
- हेठा – अधस्तात
- हेठी – अधःस्थिति
- होंठ, ओंठ – ओष्ठ
- हो – भू
- होली – होलिका
|
तद्भव-तत्सम विशेष संग्रह
गिनती या अंक
#
- पहला – प्रथमः – 1st.
- दूसरा – द्वितीयः – 2nd.
- तीसरा – तृतीयः – 3rd.
- चौथा – चतुर्थ: – 4th.
- पाँचवां – पंचमः – 5th.
- छठा – षष्ठः – 6th.
- सातवाँ – सप्तमः – 7th.
- आठवाँ – अष्टमः – 8th.
- नौवाँ – नवमः – 9th.
- दसवाँ – दशमः – 10th.
- ग्यारहवाँ – एकादशः – 11th
- बारहवाँ – द्वादशः – 12th.
- तेरहवाँ – त्रयोदशः – 13th.
- चौदहवाँ – चतुर्दशः – 14th.
- पंद्रहवाँ – पञ्चदशः – 15th.
- सोलहवाँ – षोडशः – 16th.
- सोलहवाँ – सप्तदशः – 17th.
- अठारहवाँ – अष्टादशः- 18th.
- उन्नीसवाँ – ऊनविंशः – 19th.
- बीसवाँ – विंशः – 20th.
- तीसवाँ – त्रिंशः – 30th.
- चालीसवाँ – चत्वारिंशः – 40th.
- पचासवाँ – पञ्चाशः – 50th.
- सौवाँ – शततमः – 100th
|
जानवरों या जन्तुओं के नाम
तद्भव – तत्सम
- ऊँट – उष्ट्र
- कछुआ – कच्छप
- कुत्ता – कुक्कुर
- केकड़ा – कर्कट
- गधा, गदहा – गर्दभ, गर्धभक
- गधी (गदही) – गर्दभी
- गाय – गो
- घोड़ा – घोटक
- घोड़ी – घोटिका
- चीता – चित्रक
- नेवला, नेउर – नकुल
- बंदर – वानर
- बकरा – वर्कर
- बाछा, बछड़ा, बछरू – वत्स (वत्सक)
- बाघ – व्याघ्र
- बिच्छू – वृश्चिक
- बिलार (बिल्ली) – विडाल, विड़ाल
- बैल – वृषभ
- भालू – भल्लूक
- भैंस – महिषी
- भैंसा – महिष
- मकड़ी – मर्कटी
- मूस – मूष
- मेंढक – मंडूक
- रीछ – ऋक्ष
- रीछनी – ऋक्षिणी
- लोमड़ी – लोमशा
- साँड़ – षण्ड
- साँप – सर्प
- सिंघ – सिंह
- सियार – शृंगाल
- सुअर – शूकर
- हथिनी – हस्तिनी
- हाथी – हस्ति
- हिरन – हरिण
|
शरीर के अंग
तद्भव – तत्सम
- अँगुरी, अँगुली, उँगली – अंगुलि
- अँगूठा – अंगुष्ठ
- आँख – अक्षि
- आँत – आंत्र
- आँसू – अश्रु
- कंधा, काँधा – स्कंध
- कान – कर्ण
- कोख – कुक्षि
- कोहनी – कफोणि
- खोपड़ा – खर्पर
- गला – गलक
- गाल – गल्ल
- चरन – चरण
- जीभ – जिह्वा
- तोंद – तुंद
- दाँत – दंत
- दाढ़ी – दंष्ट्रिका
- नाक – नक्र
- पाँव – पाद
- पीठ – पृष्ठ
- पैर – पद
- फेफड़ा – फुप्फुस
- भौंह – भ्रू
- मुँह – मुख
- मूँछ – श्मश्रु
- सिर – शिर
- हड्डी, हाड़ – अस्थि
- हाथ – हस्त
- होंठ, ओंठ – ओष्ठ
|
चिड़ियों के नाम
तद्भव – तत्सम
- उल्लू – उलूक
- कोयल – कोकिल
- कोयला – कोकिला
- कौआ (कौवा), काग – काक (काकः)
- गिद्ध – गृध्र
- चिड़ा – चटक
- चिड़िया – चटिका
- टिटिहरी – टिट्टिभी
- बगुला – वक
- मक्खी – मक्षिका
- मोर – मयूर
- सुआ (सुवा), सुग्गा – शुक
- हारिल – हारीत
|
सब्जी, फल, वृक्ष व मसालों के नाम
तद्भव – तत्सम
- अखरोट – अक्षोट
- अजवायन, अजावाइन – यवानी, यवानिका
- अदरक – आर्द्रक
- अमचूर – आम्रचूर्ण
- आँवला – आमलकः (आमलक)
- आम – आम्र
- इमली – अम्लिका
- इलायची – एला
- ईख – इक्षु
- कटहल – कंटफल, कंटकफल, काष्टफल
- कपास – कर्पास
- कपूर – कर्पूर
- करेला – कारवेल्ल
- कुम्हड़ा – कुष्माण्ड (कुष्मांडक)
- केला – कदली
- कैथा (कैथ) – कपित्थ
- खजूर – खर्जूर
- जामुन – जंबुल (जंबु)
- धनिया – धन्याक, धनिका
- नारियल – नारिकेल
- नीबू (नींबू) – निम्बूक
- नीम – निम्ब
- पान – पर्ण
- पीपल – पिप्पल
- बेल – बिल्व
- महुआ – मधूक
- मूँग – मुद्ग
- जौ – यव
- लहसुन – लशुन
- लौंग – लवंग
- साग – शाक
- सौंफ – शतपुष्प
- हल्दी – हरिद्रा
- हींग – हिंगु
|
सगे-सम्बन्धियों के नाम
तद्भव – तत्सम
- अम्मा – अम्बा
- जेठ – ज्येष्ठ
- दामाद – जामाता
- देवर – द्विवर
- नाती – नप्तृ (नप्तृक)
- पूत – पुत्र
- बहन, बहिन – भगिनी
- बहनोई – भगिनीपति
- बाप – वप्ता
- बुआ – पितृश्वसा
- भतीज – भ्रातृव्य
- भांजा – भागिनेय
- भाई – भ्रातृ
- भाभी – भ्रातृभार्या
- माँ – माता
- माई – मातृ
- मामी – मामका (मातुल)
- मामी – मामिका (मातुला)
- मौसी – मातृष्वसा (मातृष्वसिका)
- ससुर – श्वसुर
- साला – श्याल (श्यालक, श्याला)
- साली – श्याली
- सास – श्वश्रू
- सौत – सपत्नी
|
विशेष्य और विशेषण
विलोम या विपरीतार्थक शब्द
अनेक शब्दों के एक शब्द