योजक चिह्न (-)

भाषाविज्ञान की दृष्टि से हिन्दी भाषा की प्रकृति विश्लेषणात्मक है, संस्कृत की तरह संश्लेषणात्मक नहीं। अतएव, हिन्दी में सामासिक पदों या शब्दों का अधिक प्रयोग नहीं होता। संस्कृत में योजक चिह्न (Hyphen) का प्रयोग नहीं होता। उदाहरणार्थ— “नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्ग सीतासमारोपितवामभागम्। पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥” हिन्दी में इसका अनुवाद इस प्रकार होगा— जिनके शरीर के कोमल

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विस्मयादिबोधक चिह्न (!)

हर्ष, विषाद, विस्मय, घृणा, आश्चर्य, करुणा, भय इत्यादि भाव व्यक्त करने के लिये विस्मयादिबोधक चिह्न (Sign of Exclamation) का प्रयोग होता है। विस्मयादिबोधक चिह्न में प्रश्नकर्ता उत्तर की अपेक्षा नहीं करता। इसका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है— संबन्धित लेख—

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प्रश्नवाचक चिह्न (?)

प्रश्नवाचक चिह्न ((Sign of interrogation) का प्रयोग अधोलिखित अवस्थाओं में होता है— निम्नलिखित स्थितियों में प्रश्नसूचक चिह्न का प्रयोग नहीं होता— संबन्धित लेख—

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अल्पविराम (,)

हिन्दी में प्रयुक्त विराम चिह्नों में अल्पविराम का प्रयोग सबसे अधिक होता है। अतएव, इसके प्रयोग के सामान्य नियम जान लेने चाहिए। ‘अल्पविराम’ (Comma) का अर्थ है, थोड़ी देर के लिए रुकना या ठहरना। हर लेखक को अपनी विभिन्न मनोदशाओं से गुजरना पड़ता है। कुछ मनोदशाएँ ऐसी हैं, जहाँ लेखक को अल्पविराम का उपयोग करना

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अर्ध विराम (;)

अर्ध विराम (Semi colon) का प्रयोग सीमित स्थितियों में ही होता है। किसी नियम के बाद में आने वाले उदाहरण सूचक ‘जैसे’ के पूर्व; उदाहरण के लिए— संबन्धित लेख—

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पूर्ण विराम (।)

पूर्ण विराम (।) का अर्थ है, पूरी तरह रुकना या ठहरना। सामान्यतः जहाँ वाक्य की गति अन्तिम रूप ले ले, विचार के तार एकदम टूट जायें, वहाँ पूर्ण विराम (Full stop) का प्रयोग होता है; जैसे— इन वाक्यों में सभी एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं। सबके विचार अपने में पूर्ण हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्येक वाक्य

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विराम चिह्न : प्रयोग और नियम

विचारों-भावों को संप्रेषण योग्य बनाने या निहित आशय को स्पष्ट करने के उद्देश्य से वाक्यों में यथास्थान कुछ विराम चिह्नों का प्रयोग होता है, जिन्हें विराम चिह्न कहते हैं। विराम चिह्नों की आवश्यकता ‘विराम’ का शाब्दिक अर्थ होता है, ठहराव। लेखन मनुष्य के जीवन की एक विशेष मानसिक अवस्था है। लिखते समय विचार या भाव

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