वाक्य

मौखिक अथवा लिखित अभिव्यक्ति में हम प्रायः एक के बाद एक कई वाक्यों का प्रयोग करते हैं और इन्हीं वाक्यों के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक सम्प्रेषित करते हैं। भाषा-व्यवहार में कभी हम एक ही वाक्य से अपनी पूरी बात कह देते हैं, तो कभी हमें अनेक वाक्यों के प्रयोग की आवश्यकता पड़ती है। प्रत्येक वाक्य अपने आप में पूरा अर्थ देता है, चाहे वह कितना ही छोटा हो।

वाक्य क्या है?

भाषा की सबसे छोटी ध्वनि-इकाई ‘वर्ण’ है। यही वर्ण मिलकर ‘शब्द’ का रूप लेते हैं। जब शब्द का प्रयोग वाक्य में किया किया जाता है तब वह ‘पद’ कहलाता है। यही पद एक व्यवस्थित क्रम में आकर ‘वाक्य’ बनते हैं। भाषा व्यवहार की लघुतम इकाई को ‘वाक्य’ कहते हैं।

यदि शब्द भाषा की प्रारम्भिक अवस्था है, तो वाक्य, उसका विकास। शब्द तो साधन हैं, जो वाक्य की संरचना में सहायक होते हैं। वाक्य वह सार्थक ध्वनि है, जिसके माध्यम से लेखक लिखकर तथा वक्ता बोलकर अपने भाव या विचार पाठक या श्रोता तक सम्प्रेषित करता है। वाक्य की उपयोगिता व्याकरण में तो है ही, सर्वसाधारण के दैनिक जीवन में भी कम नहीं। अतः, सामान्य जीवन में वाक्य का विशेष महत्त्व है। अतः —

वाक्य पदों के समूह की उस इकाई को कहते हैं जो व्याकरणिक दृष्टि से पूर्ण हो तथा जिसमें एक क्रिया अवश्य होती है।

वाक्य के सम्बन्ध में पाँच बातें ध्यान देने योग्य हैं—

  1. इसमें एक से अधिक पद होते हैं।
  2. वास्तविक प्रयोग में संदर्भ के अनुसार कभी-कभी गौण शब्दों को छोड़कर केवल उस एक शब्द या उन कुछ शब्दों के वाक्य भी मिलते हैं, जो प्रश्न या विषय से सीधे संबद्ध होते हैं और जिनके आधार पर पूरे वाक्य की कल्पना श्रोता या पाठक सहज ही कर लेता है। वक्ता या लेखक भी पूरे वाक्य में से ही एक या कुछ पदों को वाक्य का उस प्रसंग में प्रतिनिधि मानकर प्रयोग करता है।
  3. वाक्य व्याकरणिक दृष्टि से पूर्ण होता है, अर्थात् व्याकरणिक दृष्टि से उसमें कोई कमी नहीं रहती; कर्ता, क्रिया या अन्य अपेक्षित शब्द पूरे होते हैं। जैसे— ‘राम घर’ या ‘राम जा रहा’ आदि में कमी है, अतः ये वाक्य नहीं हैं। यदि प्रयुक्त वाक्य में अपेक्षित अवयवों की कमी होती है (जैसे— और तुम्हारा?) तो आसन्न प्रसंग से उसकी पूर्ति हो जाती है। उदाहरणार्थ ‘और तुम्हारा’ का अर्थ हो सकता है ‘तुम्हारा नाम क्या है?’
  4. अर्थ या भाव की दृष्टि से वाक्य में पूर्णता हो भी सकती है, नहीं भी।
  5. प्रत्येक वाक्य में एक क्रिया अवश्य होती है।

वाक्य की विशेषताएँ

वाक्य की प्रमुख विशेषताएँ अधोलिखित हैं—

  • स्पष्टता– वाक्य-संरचना स्पष्ट होनी चाहिए है।
  • भाव या विचार प्रेरण-सामर्थ्य– वाक्य में पाठक या श्रोता के सोये भावों या विचारों को जागरित करने की सामर्थ्य होना चाहिए।
  • पदक्रम- वाक्य में पदों या शब्दों का एक सुनिश्चित क्रम या तारतम्य होना चाहिए।
  • संक्षिप्तता- वाक्य संक्षिप्त होना चाहिए और यह तभी सम्भव है जब व्यर्थ पदों या शब्दों का प्रयोग न किया जाये।
  • माधुर्य- साहित्यिक दृष्टि से माधुर्य भी वाक्य-संरचना की एक विशेषता है। वाक्य जितना ही कर्णप्रिय हो, हृदय को आनन्दित करे और मस्तिष्क को सन्तुलित करे, वह उतना ही अच्छा समझा जायेगा।

अतः वाक्य की संरचना जितनी ही स्पष्ट, भाव प्रेषण-सामर्थ्यवान, संयत, निर्दोष,और सन्तुलित होगी, मन को उतना ही मुग्ध करेगी।

वाक्य के अंग

वाक्य के दो अंग होते हैं—

  • एक, उद्देश्य
  • दूसरा, विधेय

उद्देश्य

जिसके बारे में कुछ बताया जा रहा है, वह उद्देश्य है। अर्थात् वाक्य का वह अंश उद्देश्य कहलाता है, जिसके बारे में वाक्य के शेष अंश में कुछ कहा गया हो; जैसे —

  • लड़का गया ।
  • कुत्ता मर गया ।
  • छात्र पास हो गये।

स्थूल टंकित पद उद्देश्य हैं।

उद्देश्य में केन्द्रीय शब्द (प्रायः कर्ता) के साथ उसके विस्तार भी आ सकते हैं; जैसे—

  • उस व्यक्ति का लड़का गया।
  • मोहन का कुत्ता मर गया।
  • उस स्कूल के सभी छात्र पास हो गये।

स्थूल टंकित पद-समूह उद्देश्य के विस्तार हैं।

विधेय

उसके (उद्देश्य) बारे में जो कुछ बताया जा रहा है, वह विधेय है; अर्थात् वाक्य का वह अंश विधेय होता है, जो वाक्य के उद्देश्य के बारे में सूचना देता है; जैसे—

  • गिलास टूट गया।

इस वाक्य में ‘गिलास’ के बारे में सूचना दी जा रही है अतः यह वाक्य का ‘उद्देश्य’ है। ‘टूट गया’ हमें गिलास के सम्बन्ध में हुई क्रिया या घटना को इंगित करता है अतः यह ‘विधेय’ हुआ।

कुछ और उदाहरण लेते हैं—

  • लड़का गया।
  • कुत्ता मर गया।
  • छात्र पास हो गये।

विधेय के केन्द्र में क्रिया होती है तथा उसके साथ उसके विस्तार भी आ सकते हैं—

  • लड़का आज गया।
  • कुत्ता धीरे-धीरे मर गया।
  • छात्र अन्तिम परीक्षा में पास हो गये।

उद्देश्य और विधेय स्वयं कई घटकों से मिलकर बनते हैं। ये घटक एक विशेष क्रम में व्यवस्थित रहते हैं और इनके बीच कोई-न-कोई व्याकरणिक सम्बन्ध रहता है। उदाहरणार्थ- ‘राकेश ने अमित को बुलाया’ वाक्य में वाक्य का कर्ता (राकेश) पहले आया है, फिर वाक्य का कर्म (अमित) और अंत में क्रिया घटक (बुलाया) आया है। इसे ‘पदक्रम’ कहते हैं।

आकांक्षा, योग्यता और क्रम

एक शुद्ध वाक्य में आकांक्षा, योग्यता और क्रम का होना आवश्यक है।

आकांक्षा

वाक्य में आकांक्षा से पद-विशेष की पूर्ति होती है। वाक्य के एक पद को सुनकर दूसरे पद को सुनने या जानने की जो स्वाभाविक जिज्ञासा उठती है, उसको आकांक्षा कहते हैं।

उदाहरण के लिए एक वाक्य लेते हैं—

  • ‘दिन में काम करते है?’

इस वाक्य को सुनकर हम प्रश्न करते हैं- ‘कौन लोग काम करते हैं?’ यदि हम कहें कि ‘दिन में सभी काम करते हैं’, तो ‘सभी’ कह देने से प्रश्न का उत्तर मिल जाता है और वाक्य ठीक हो जाता है। अतः, इस वाक्य में ‘सभी’ शब्द की आकांक्षा थी, जिसकी पूर्ति करने पर वाक्य पूरा हो गया।

योग्यता

वाक्य-रचना में यह ध्यान रखना चाहिए कि उद्देश्य और विधेय के अर्थों में परस्पर विरोध न हो; जैसे—

  • ‘मोहन आग से खेत सींचता है।’

व्याकरण की दृष्टि से उपर्युकेत वाक्य तो ठीक है, पर वाक्य में भावबोध कराने की योग्यता नहीं है, क्योंकि आग से खेत सींचने का काम नहीं होता, सींचने का काम तो जल से होता है। अतएव, यह कहना उपयुक्त होगा कि—

  • ‘मोहन पानी से खेत सींचता है।’

इसीतरह यदि हम कहें कि—

  • ‘मोहन जल से खेत सींचता है।’

वाक्य में जल और पानी पद पर विचार कीजिए। जल और पानी एक-दूसरे के पर्याय हैं पर जल शब्द का प्रयोग पवित्र धार्मिक कार्य को प्रकट करनेवाले वाक्यों में करते हैं जबकि पानी शब्द का प्रयोग सामान्य अर्थबोध के लिये। उदाहरणार्थ—

  • माण्डवी स्नान करने के बाद तुलसी को प्रतिदिन जल अर्पित करती है।
  • सोहन को पानी पिला दो।

एक और उदाहरण लेते हैं—

  • ‘कृषक लकड़ी से खेत जोतता है।’

इस वाक्य में ‘योग्यता’ का अभाव है, क्योंकि ‘लकड़ी से’ खेत जोतने का कार्य नहीं होता। ‘लकड़ी के स्थान पर ‘हल’ का प्रयोग होता, तो वाक्य की योग्यता संगत होती।

अतः सही वाक्य है—

  • ‘कृषक हल से खेत जोतता है।’

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है—

“वाक्य में योग्यता का तात्पर्य है, पदों के अर्थबोधन का सामर्थ्य। जब वाक्य का प्रत्येक पद या शब्द अर्थबोधन में सहायक हो, तो समझना चाहिए कि वाक्य में योग्यता वर्तमान है।”

क्रम

वाक्य में क्रिया ओर कर्ता यथास्थान होना चाहिए। क्रिया को कर्ता से पहले नहीं होना चाहिए और न ही उसकी क्रिया पाँच-छह वाक्यों के बाद लिखना है। यदि ऐसा किया जायेगा, तो भावबोध में बाधा होगी। इसलिए कर्ता और क्रिया को अपनी-अपनी जगह पास ही होना चाहिए।

वाक्य में क्रम, आकांक्षा और योग्यता के विधान को पूर्णता प्रदान करता है। वाक्यों में प्रयुक्त पदों या शब्दों की विधिवत् स्थापना को ‘क्रम’ कहते हैं।

उदाहरणार्थ—

  • ‘रोटी मैंने खायी।’

यह वाक्य ठीक नहीं है, क्योंकि ‘रोटी’ शब्द को ‘मैंने’ के बाद आना चाहिए।

अतः, पदक्रम के अनुसार सही वाक्य है —

  • ‘मैंने रोटी खायी।’

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