प्रतिवेदन ( Report )

भूमिका

“प्रतिवेदन एक विवरण है जो किसी प्रश्न के उत्तर या जाँच के फलस्वरूप प्रस्तुत किया जाता है।”

प्रतिवेदन का शाब्दिक अर्थ है – ‘जाँच-पड़ताल के बाद तैयार किया गया विवरण।’

यह किसी पारम्परिक रूप में उच्च अधिकारी या अधिकारियों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें किसी निर्दिष्ट विषय पर पूरी पूछताछ की ठोस और पूरी जानकारी रहती है। साथ ही मामले को सुलझाने या उसका सुधार करने या उसके बारे में कुछ निष्कर्ष निकालकर संस्तुति या सुझाव दिया जाता है।

रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये किसी विशेष व्यक्ति या किसी समिति को नियुक्त किया जाता है। साथ ही प्रतिवेदन प्रस्तुत करने की एक अवधि निर्धारित रहती है।

इस तरह प्रतिवेदन के सम्बन्ध में निम्न तथ्य निकलकर सामने आते हैं :

  • कोई विशिष्ट कारण या प्रसंग होता है जिसकी जाँच-पड़ताल आवश्यक हो।
  • प्रतिवेदन तैयार किये जाने के सम्बन्ध में किसी नियोक्ता द्वारा एक अधिकृत समिति / आयोग का गठन किया जाता है। यह ध्यान रहे कि समिति या आयोग के कई सदस्य भी हो सकते हैं और एक-सदस्यीय भी। यदि बहु-सदस्यीय आयोग या समिति हो तो एक असका अध्यक्ष होता है।
  • यह समिति या आयोग या व्यक्ति एक निश्चित समय-सीमा के भीतर प्रश्नगत प्रकरण की जाँच कर उसका प्रतिवेदन तैयार करता है।
  • अपने जाँच-पड़ताल, साक्ष्य, सुझाव आदि के साथ प्रतिवेदन ( Report ) को नियोक्ता के समक्ष प्रस्तुत करता है।

प्रतिवेदन के प्रकार

  • औपचारिक प्रतिवेदन
  • अनौपचारिक प्रतिवेदन

औपचारिक प्रतिवेदन

  • ये प्रतिवेदन सरकार या किसी संस्था या किसी विशिष्ट अधिकारी के आदेशानुसार किसी कार्य-विशेष के बारे में तैयार किया जाता है। इसमें निष्कर्षों के साथ-साथ सुझाव और संस्तुतियाँ भी दी जाती है।

  अनौपचारिक प्रतिवेदन

  • ये प्रतिवेदन एक व्यक्ति द्वारा दुसरे व्यक्तियों के पास भेजे जानेवाले पत्रों की भाँति तैयार किये जाते हैं। इसके लेखन में कोई निश्चित नियम नहीं होते है।

प्रतिवेदन के विषय-क्षेत्र

  1. किसी कार्यालय अथवा संस्था में अनेक विषयों से सम्बन्धित जो पूछताछ, जाँच, छानबीन की जाने का विवरण प्रतिवेदन है।
  2. विद्यालय या कॉलेज स्तर पर जो विभिन्न कार्यक्रम और समारोह आदि के पूर्ण हो जाने के बाद क्रमवार उसका विवरण प्रस्तुत किया जाता है वह प्रतिवेदन है।
  3. किसी क्षेत्र में हुए दंगे-फसाद या विवाद का विवरण या निष्कर्ष देना प्रतिवेदन है।
  4. किसी भी विभाग द्वारा प्रस्तुत जाँच सम्बन्धित विवरण भी प्रतिवेदन क्षेत्र के अंतर्गत आते है।

प्रतिवेदन का विशेषताएँ

  1. प्रतिवेदन प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक होते हैं।
  2. प्रतिवेदन किसी एक विषय या घटना पर केन्द्रित होता है।
  3. प्रतिवेदन में निष्पक्ष और तटस्थ विवेचन होता है।
  4. प्रतिवेदन का मंतव्य या निष्कर्ष या संस्तुति होनी आवश्यक है।
  5. इसकी भाषा सरल, स्पष्ट और सहज होती है।
  6. यह पक्षपात रहित एवं तर्कपूर्ण होता है।
  7. प्रतिवेदन संक्षिप्त होता है साथ ही अनावश्यक बातों का प्रयोग नहीं होना चाहिए।

प्रतिवेदन और रिपोर्ट

  1. समाचार पत्रों, दूरदर्शन या आकाशवाणी के रिपोर्टर द्वारा भेजी जाने वाली घटना रिपोर्ट कहलाती है न कि प्रतिवेदन।
  2. रिपोर्ट सूचनात्मक होती हैं और रिपोर्ट में किसी विशेष योग्यता के अपेक्षा नहीं होती है।
  3. प्रतिवेदन में मामले की जाँच पर आधारित विवरण, सुझाव और निष्कर्ष आदि तथ्य सम्मिलित होते है। साथ ही प्रतिवेदक को उस विषय से संबंधित जाँच करने में सक्षम होना चाहिए।

प्रतिवेदन के मुख्य तत्त्व

  1. निश्चित अवधि :- प्रतिवेदन को निश्चित अवधि के भीतर प्रस्तुत करना होता है क्योंकि इसमें विषय का सामयिक महत्व होता है।
  2. प्रमाण और तथ्य :- प्रतिवेदन की प्रमाणिकता दिए गए साक्ष्यों तथा तथ्यों पर ही निर्भर है।
  3. घटना या विशेष स्थिति :- यह प्रतिवेदन का प्रमुख तत्व है। जब किसी विवादित प्रश्न, दुर्घटना, समस्या, स्थिति आदि की जानकारी पर कार्रवाई करनी होती है तो प्रतिवेदन लिखा जाता है।
  4. सूक्ष्म निरिक्षण और पूर्ण जाँच-पड़ताल :- प्रतिवेदन के माध्यम से ही समस्या के मूल रूप से जाना जा सकता है क्योंकि समस्याओं के महत्वपूर्ण पक्ष को इसके बिना उजागर करना कठिन हो जाता है।
  5. मनोनीत प्रतिवेदक:- किसी भी घटना या स्थिति की जानकारी करने के लिए किसी व्यक्ति को मनोनीत किया जाता है ताकि प्रतिवेदन का सही प्रारूप प्राप्त किया जा सके।
  6. सुझाव और सिफ़ारिशें :- सुझाव एवं सिफारिशों के माध्यम से ही प्रतिवेदक अपने विचारों को अभिव्यक्त करता या करती है।

प्रतिवेदन लेखन प्रक्रिया

  1. प्रतिवेदन प्रक्रिया के प्रथम चरण में संबद्ध विषय का गहन अध्ययन करते हुए उसके उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए।
  2. उद्देश्यों के अनुरूप कार्य की रूपरेखा बनाना चाहिए।
  3. प्रतिवेदन संबधी विषय में संबद्ध तथ्य, चित्र, सूचना, आँकड़ों आदि के प्रमाण एकत्रित करना। निष्कर्ष और सिफारिशों सुझावों या अनुशंसाओं की रूप रेखा तैयार करते हुए एक कच्चा प्रारूप तैयार करना चाहिए।
  4. अंत में सभी संबद्ध कागजातों को शामिल करते हुए प्रतिवेदन का टंकण कराके, व्यक्ति या समिति के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर के साथ प्रस्तुत करना चाहिए |

महत्त्व

प्रतिवेदन औपचारिक अथवा अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है।

औपचारिक प्रतिवेदन प्रायः किसी संस्था अथवा उच्चाधिकारी के आदेशानुसार किसी प्रकरण विशेष से जुड़े होते हैं, जिसमें निष्कर्ष, सुझाव तथा संस्तुतियाँ इत्यादि शामिल होती हैं। कभी-कभी किसी दुर्घटना इत्यादि के सन्दर्भ में इसी जाँच रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही की जाती है अतः उनकी निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।

अनौपचारिक प्रतिवेदन प्रायः नागरिक जीवन अथवा किसी विद्यालय इत्यादि में आयोजित होने वाले किसी कार्यक्रम इत्यादि से संदर्भित होते हैं जिसमें सुझाव अथवा संस्तुतियों की अपेक्षा नहीं होती बल्कि उसमें कार्यक्रम के सफल आयोजन हेतु एक रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है।

प्रतिवेदन के अंग

  1. पूर्व कथन — समिति की आवश्यकता, समिति के सदस्य, समिति का कार्यकाल, कितनी बैठक हुई, आदि।
  2. जाँच की पद्धति — किन व्यक्तियों से, किन-किन जगहों पर जाकर तथ्य और आँकड़े एकत्र किये गये।
  3. निष्कर्ष — क्या और किनका दोष। जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व का निश्चयन
  4. वर्तमान या भविष्य के लिये सुझाव

उदाहरण और प्रारूप

उदाहरण

प्रतिवेदन का उदाहरण-१

 

प्रतिवेदन का उदाहरण-२

प्रारूप

प्रतिवेदन का प्रारूप

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