भूमिका
“सरकारी काम-काज के अंतर्गत किसी कार्यालय से आधिकारिक तौर पर किसी कर्मचारी, सार्वजनिक उपक्रमों, निजी संगठनों तथा जन-साधारण को पत्र लिखना शासकीय या सरकारी पत्र कहलाता है।”
विशेषताएँ
१. यह पत्र निश्चित ढाँचे में ढला होता है। इसकी सामग्री तथ्यपरक, संयत, स्पष्ट और शुद्ध होती है।
२. यह पत्र नितान्त औपचारिक होता है। इसमें प्रेषक के निजी विचार का कोई स्थान नहीं होता है। उसे केवल विषय से सम्बद्ध बात कहनी है – वह भी तर्कसंगत और विधि-विधान सम्मत। पत्र की सामग्री यथार्थपरक, तथ्यों, नियमों और उपनियमों से आबद्ध होती है।
३. ऐसे पत्र की भाषा और शैली संयत, स्पष्ट, सरल, शुद्ध, सिक्केबंद और टकशाली होती है। किसी भी शब्द का प्रसंगगत केवल एक अर्थ निकलता है, कोई दूसरा अर्थ नहीं।
४. सरकारी-पत्र अन्य पुरुष शैली में लिखे जाते हैं।
५. संक्षिप्तता सरकारी पत्रों की मूल विशेषता है। यदि पत्र लम्बा हो तो परिच्छेदों में बंटा होता है, जो आपस में युक्ति-युक्त क्रम में होते हैं। अनुच्छेद ( Paragraph ) एक की संख्या नहीं दी जाती, शेष पैरा को : २- से प्रारम्भ करके आगे जितने पैरा है ३-, ४-, ५– इत्यादि संख्या दी जाती है।
पुरुषवाचक सर्वनाम के भेद | ||
उत्तम पुरुष
|
मध्यम पुरुष
|
अन्य पुरुष
|
सरकारी पत्र के भाग
१. पत्र संख्या या क्रमांक
२. प्रेषक का नाम, पदनाम और शासकीय पता
३. प्राप्तकर्ता या प्रेषिती का पदनाम और शासकीय पता
४. प्रेषक विभाग या अनुभाग का नाम, स्थान और दिनांक
५. विषय
६. अभिवादन
७. पत्र का मुख्य भाग
८. औपचारिक समाप्ति
९. हस्ताक्षर
१०. पदनाम
११. संलग्नक
१. पत्र संख्या या पत्रांक :-
- सबसे ऊपर दाहिनी तरफ लिखा जाता है।
२. प्रेषक का नाम पदनाम तथा शासकीय पता :-
- पत्र संख्या लिखने के बाद उससे थोड़ा नीचे बायीं तरफ सबसे ऊपर प्रेषक का नाम, पदनाम और सरकारी पता लिखा जाता है।
- प्रेषक के नाम के आगे शासकीय स्तर (IAS, PCS) लिखे जा सकते हैं, परन्तु अब व्यवहार में अप्रचलित हो गया है।
- नाम के आगे शैक्षिक योग्यता ( A., LL.B.) नहीं लिखा जाता है।
- प्रथम (प्रेषक), द्वितीय (नाम), तृतीय (पदनाम) के बाद अर्धविराम (,) लगाया जाता है और अंतिम पंक्ति (शासकीय पता) के बाद पूर्ण विराम (।) लगाया जाता है।
३. प्राप्तकर्ता या प्रेषिती का पता :-
- प्रेषक के नीचे बायीं तरफ प्रेषिती का पदनाम और शासकीय पता लिखा जाता है। प्रेषिती का नाम और उसके शासकीय स्तर को नहींलिखा जाता है।
पार्श्व स्थान या खाड़ी रेखा
|
४. प्रेषक विभाग अथवा अनुभाग का नाम, स्थान एवं दिनांक :-
- पार्श्व स्थान में प्रेषक-कार्यालय के विभाग अथवा अनुभाग का नाम लिखा जाता है। इसके ठीक सामने दाहिनी तरफ स्थान एवं दिनांक लिखा जाता है।
५. विषय :-
- विषय का उल्लेख अत्यंत सूक्ष्म शब्दों में यथा सम्भव एकाकी वाक्य में किया जाना चाहिए। विषय लिखने के बाद उसके नीचे बीच में एक छोटी रेखा या बिन्दुओं की रेखा खींच देनी चाहिए।
- किसी शासकीय-पत्र में ‘विषय’ का लिखा जाना उसी प्रकार महत्वपूर्ण है, जैसे किसी शरीर में आत्मा।
- विषय के बाद पत्र का मुख्य भाग आरम्भ होता है जिसमें अभिवादन भी शामिल है।
६. अभिवादन :-
- अभिवादन लिखने के बाद अल्पविराम (,) लगाया जाता है। अभिवादन के लिए ‘महोदय’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
- यह अभिवादन ‘पद’ को सम्बोधित होता है, ‘पद’ शब्द पुल्लिंग है अत: ‘महोदय’ शब्द का प्रयोग किया जाता है न कि महोदया।
७. पत्र का मुख्य भाग :-
- अभिवादन के बाद पत्र का मुख्य भाग लिखा जाता है। प्रथम परिच्छेद (पैरा) की संख्या नहीं लिखी जाती है जबकि आगे २-, ३-, ४-, ५- इत्यादि पैरा संख्या लिखी जाती है।
- ऐसे पत्र शासकीय पत्र जो सचिवालय (केन्द्रीय / राज्यस्तरीय) से जारी हों :-
- केन्द्र/राज्य शासन द्वारा अपने किसी कनिष्ठ अधिकारी को प्रेषित शासकीय पत्र का प्रथम औपचारिक वाक्यांश, “मुझे यह कहने का निदेश हुआ है, कि ….” से ही आरम्भ किया जाना चाहिए। इस वाक्यांश का प्रयोग यशा सम्भव, केवल एक बार ही किया जाना चाहिए। यदि आश्वश्यकता पड़े तो, “मुझे यह कहना है कि ….‘, ‘मुझे यह स्पष्ट करना है कि ….‘, ‘मुझे यह अनुरोध करना है कि….’ आदि वाक्यांश प्रयुक्त करने चाहिए।
- इस निर्धारित पद्धति का तात्पर्य यह है कि संघीय या राज्य स्तरीय सचिवालय से जो भी शासकीय पत्र निम्नतर अधिकारियों को प्रेषित किये जाते हैं वे व्यक्तिगत स्तर पर नहीं लिखे जाते बल्कि राष्ट्रपति या राज्यपाल (जैसी स्थिति हो) को ओर से लिखे जाते हैं।
- ऐसे शासकीय पत्र जो किसी अधीनस्थ कार्यालयों से शासन को जारी किये जाने हो, चाहे वे केन्द्रीय शासन हो या प्रदेशीय शासन या किसी अन्य कार्यालय को भेजे जाते हों :-
- ऐसे पत्रों को प्रथम औपचारिक वाक्यांश, “मुझे यह निवेदन करना है, कि ….” होता है। यदि आवश्यकता पड़े तो अन्य प्रस्तरों में “मुझे यह कहना है, कि …” “मुझे यह अनुरोध करना है, कि ….” इत्यादि वाक्यांश का प्रयोग किया जाता है।
- परीक्षा में :-
- यदि केन्द्रीय/राज्य मंत्रालय का नाम, पत्र संख्या विषय दिया गया हो परन्तु प्रेषक अधिकारी का नाम न दिया गया हो :— तो शुरुआत इस तरह — “उपर्युक्त विषयक, श्री ‘क’ के पत्र संख्या… दिनांक … के संदर्भ में मुझे यह कहने का निदेश हुआ है, कि …….।”
- किन्तु यदि प्रेषक अधिकारी का नाम दिया गया हो तो उसका नाम अवश्य लिखा जाना चाहिए।
८. औपचारिक समाप्ति :-
- औपचारिक समाप्ति के प्रतीक के रूप में “भवदीय” लिखा जाता है।
९. हस्ताक्षर :-
- पत्र की औपचारिक समाप्ति के बाद उस अधिकारी के हस्ताक्षर के लिए स्थान इंगित किया जाता है, जिसकी तरफ से शासकीय पत्र भेजा जा रहा है। ऐसा करते समय कोष्ठक में उसका नाम स्पष्ट रूप से लिखा जाता है।
- हस्तार कर्ता अधिकारी के केवल पदनाम को लिखा जाना चाहिए न कि आदर सूचक शब्द अर्थात् श्री / श्रोमती / सुश्री आदि का प्रयोग नहीं किया जाता है।
- यथा-स्थान न तो सरकारी पर स्तर (IAS, PCS) ही जिया जाना चाहिए और न ही शैक्षिक योग्यता (A., LL.B.)।
१०. पदनाम :-
- पदनाम लिखते समय केवल सूक्ष्म शब्दों में प्रयुक्त पदनाम लिखा जाता है, न कि पूर्ण नाम।
अशुद्ध | शुद्ध |
(कर्पूरी ठाकुर) जिलाधीश, बिजनौर।
|
(कर्पूरी ठाकुर) जिलाधीश। |
(रामलखन) कृषि निदेशक, उत्तर प्रदेश। |
(रामलखन) कृषि निदेशक। |
११. संलग्नक :-
- अंतिम चरण में, किसी शासकीय पत्र के साथ यदि कोई सम्बद्ध पत्रजात भेजे जाते हैं तो उनका भी उल्लेख शासकीय पत्र के अन्त में बायें हाथ पार्श्व रेखा के समीप किया जाता है।
- इन संलग्नकों का संक्षिप्त नाम और क्रम संख्या दी जाती है।
१२. संख्या एवं दिनांक उपरोक्तानुसार या संख्या एवं तद्दिनांक :-
- यह लिखकर छोड़ दिया जाता है, क्योंकि इसको पहले ही इंगित किया जा चुका होता है।
१३. प्रतिलिपि निम्नलिखित को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित :-
- कई बार शासकीय पत्रों को सूचना और कार्यवाही के लिए विभिन्न अधिकारियों व कार्यालयों को प्रेषित किया जाता है। ऐसी स्थिति में उपर्युक्त वाक्यांश लिखकर क्रमशः प्राप्तकर्ता लोगों के शासकीय पता लिखा जाता है। इसको भेंजने के लिये उपर्युक्त अधिकारी से कनिष्ठ अधिकारी पृष्ठांकन करता है।
१४. आज्ञा से :-
- यदि पृष्ठांकन आवश्यकता होती है तब कनिष्ठ अधिकारी अपने हस्ताक्षर करता है, उसके नीचे उसका नाम लिखा जाता; तत्पश्चात् पदानाम लिखकर पूर्ण विराम लगा दिया जाता है।
प्रारूप
सरकारी व अर्ध-सरकारी पत्र : समानता और अन्तर
समानता
१. दोनों पत्रों की विषयवस्तु सदैव शासकीय प्रयोजनार्थ होती है।
२. दोनों के माध्यम से निर्णय लेने और क्रियान्वित करने की प्रक्रिया सरल, सुगम और तीव्र होती है।
३. दोनों पत्र अभिलेखीय महत्त्व के होते हैं।
४. दोनो पत्रों में व्यक्तिगत तथ्य या सूचनाओं का सदैव अभाव होता है।
५. दोनों पत्रों से शासन की कार्यकुशलता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
अन्तर
आधार | सरकारी-पत्र | अर्ध-सरकारी पत्र |
उद्गम | पद से होता है। | अधिकारी / व्यक्ति के स्तर से होता है। |
संचलन | सदैव पद से पद को प्रेषित होता है। ऐसे में तीन स्थितियाँ हो सकती हैं — क. समान पदों के बीच ख. वरिष्ठ से कनिष्ठ पद के बीच ग. कनिष्ठ से वरिष्ठ पद के बीच | प्रायः समान स्तर के अधिकारियों के बीच अथवा किसी अशासकीय व्यक्ति को भी सरकारी कार्य हेतु प्रेषित। |
विषय-वस्तु | शासकीय प्रयोजन और पदीय दायित्वों की पूर्ति से सम्बन्धित | शासकीय प्रयोजन हेतु ध्यानाकर्षण, विचार-विमर्श और गोपनीय मामलों में वार्ता से सम्बन्धित |
भाषा-शैली | औपचारिक भाषा में, रूढ़ व अन्य पुरुष शैली में तटस्थ भाव से लिखा जाता है। वैयक्तिक भावों का कोई स्थान नहीं। | अनौपचारिक भाषा में व्यक्तिगत और मैत्री व आत्मीय भाव से उत्तम व मध्यम पुरुष शैली में लिखा जाता है। |
प्रेषिती | पत्र को प्रेषिती कार्यालय का नियत प्राधिकारी खोलता है। | व्यक्तिगत होने के कारण पत्र को सदैव प्रेषिती ही खोलता है। |
सम्बोधन व समापन | इसमें मात्र औपचारिक शब्दावली ‘महोदय’ सम्बोधन और समापन के लिये कोई औपचारिक शब्द नहीं होता है। | इसमें अनौपचारिक शब्द शब्द ‘प्रिय श्री …’ ; ‘प्रिय महोदय’ से सम्बोधन और समापन के लिये आदरसूचक ‘सादर / ससम्मान /सद्भावनाओं सहित’ जैसे शब्द का प्रयोग किया जाता है। |
उद्देश्य | अधिकारी अपने पदीय दायित्व का निर्वहन तटस्थ भाव से करते हैं। | अधिकारी व्यक्तिगत रुचि लेते हुए शासकीय समस्याओं का निर्वहन करते हैं। |
सरकारी पत्र ( Official Letter )
कार्यालय आदेश ( Office Order )
अधिसूचना / विज्ञप्ति ( Notification )
कार्यालय ज्ञाप ( Office Memorandum )